पैरालम्पिक में भाविना की जीत और नारी शक्ति
योगेश कुमार गोयल
टोक्यो पैरालम्पिक में रजत पदक जीतकर भाविना ने साबित कर दिखाया है कि संघर्षों ने डरकर हार मानने का नाम जिंदगी नहीं है बल्कि इन संघर्षों का दृढ़ता से मुकाबला कर दूसरों के लिए मिसाल बनना ही असली जिंदगी है।
भारत की नारी शक्ति विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के अलावा अब खेलों में भी लगातार इतिहास रच रही है और देश की आधी आबादी को अपने-अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए पूरी हिम्मत और हौंसला प्रदान कर रही है। पिछले दिनों टोक्यो ओलम्पिक में भारत की महिला हॉकी टीम भले ही पदक जीतने में सफल नहीं हो सकी थी किन्तु सभी महिला खिलाडि़यों ने जिस बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया था, उससे समूचा राष्ट्र उनका मुरीद हो गया। ओलम्पिक में मीराबाई चानू, पीवी सिंधु तथा लवलीना बोरगोहेन ने तो पदक जीतकर खेलों की दुनिया में नारी शक्ति की बढ़ती ताकत का स्पष्ट अहसास कराया ही था। महिला खिलाड़ी ओलम्पिक के अलावा अन्य अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में भी शानदार प्रदर्शन कर रही हैं और अब 29 अगस्त को गुजरात के एक गांव में छोटी सी परचून की दुकान चलाने वाले हंसमुखभाई पटेल की 34 वर्षीया बेटी भाविना बेन पटेल ने टोक्यो पैरालम्पिक में भारत के लिए पहला पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। पैरालम्पिक खेलों में पदक जीतने वाली भाविना दूसरी भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। उनसे पहले पांच साल पूर्व रियो पैरालम्पिक में भारतीय पैरालम्पिक समिति (पीसीआई) की मौजूदा अध्यक्ष दीपा मलिक गोला फैंक में रजत पदक जीतकर पैरालम्पिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी थी।
गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर के एक छोटे से गांव में 6 नवम्बर 1986 को जन्मी भाविना की यह जीत भारत की नारी शक्ति के लिए इसलिए भी प्रेरणादायी है क्योंकि जिस भाविना को शुरू से ही पदक का दावेदार ही नहीं माना जा रहा था, उसने अपने हौंसले और जज्बे की बदौलत अपने पहले ही पैरालम्पिक में रजत जीतकर इतिहास रच डाला। हालांकि पैरालम्पिक की टेबल टेनिस क्लास 4 स्पर्धा के महिला एकल फाइनल मुकाबले में भाविना दुनिया की नंबर वन मानी जाने वाली बीजिंग तथा लंदन में स्वर्ण पदक सहित पैरालम्पिक में पांच पदक जीतने वाली और विश्व चैम्पियनशिप की छह बार की पदक विजेता चीन की झाउ यिंग से हार गई लेकिन भाविना भारत की ओर से टेबल टेनिस में पैरालम्पिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं और पैरालम्पिक के इतिहास में टेबल टेनिस स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली भी पहली भारतीय हैं। उल्लेखनीय है कि क्लास 4 वर्ग के खिलाडि़यों के शरीर में विकार मेरूदंड में चोट के कारण होता है और उनका बैठने का संतुलन सही रहता है तथा उनकी बांह और हाथ पूरी तरह से काम करते हैं।
विश्व रैंकिंग में 12वें नंबर की खिलाड़ी भाविना का सफर टोक्यो पैरालम्पिक में बहुत शानदार रहा, जो शुरूआत से ही दिग्गज मानी जाने वाली खिलाडि़यों को भी पछाड़ते हुए आगे बढ़ती रही। भाविना ने प्री-क्वार्टर फाइनल में विश्व की 8वें नंबर की खिलाड़ी को, क्वार्टर फाइनल में रियो पैरालम्पिक की स्वर्ण पदक विजेता और विश्व की दूसरे नंबर की खिलाड़ी बोरिस्लावा पेरिच रांकोविच को तथा सेमीफाइनल में चीन की स्टार खिलाड़ी और विश्व रैंकिंग में नंबर तीन मियाओ झांग को हराते हुए भारत के लिए रजत पदक जीतकर पैरालम्पिक में इतिहास रचा है। भाविका जब करीब एक वर्ष की ही थी, तभी वह पोलियो से ग्रस्त हो गई थी लेकिन परिवार के पास भाविना का अच्छा इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे। हालांकि जैसे-तैसे करके भाविना के पिता ने कुछ समय बीत जाने के बाद विशाखापट्टनम में उनकी सर्जरी कराई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तथा सर्जरी के बाद की जाने वाली एक्सरसाइज में लापरवाही बरतने के कारण भाविना सदा के लिए दिव्यांग बन गई और हमेशा के लिए उन्हें व्हीलचेयर को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना पड़ा लेकिन भाविना ने व्हील चेयर को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्होंने अपने गांव में ही 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्राचार से स्नातक की डिग्री भी हासिल की।
भाविना ने करीब 13 वर्ष पहले अहमदाबाद के वस्त्रापुर इलाके में नेत्रहीन संघ में खेलना शुरू किया था, जहां वह दिव्यांगों के लिए आईटीआई की छात्रा थी। वहां उन्होंने दृष्टिदोष वाले बच्चों को टेबल टेनिस खेलते देखा तो इसी खेल को अपनाने का निर्णय ले लिया और उसके बाद अहमदाबाद में रोटरी क्लब के लिए पहला पदक जीता। परिवार की आर्थिक स्थिति काफी डांवाडोल थी, इसलिए भाविना को अपना खर्चा चलाने के लिए एक अस्पताल में नौकरी भी करनी पड़ी। 2011 में पीटीटी थाईलैंड टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में भारत के लिए रजत पदक जीतकर वह दुनिया की दूसरे नंबर की खिलाड़ी बनी और अक्तूबर 2013 में भाविका ने बीजिंग में आईटीटीएफ पैरा टेबल टेनिस (पीटीटी) एशियाई क्षेत्रीय चैम्पियनशिप के महिला एकल वर्ग में भी रजत पदक जीता। आईटीटीएफ पीटीटी एशियाई क्षेत्रीय चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतने वाली वह पहली भारतीय पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी बनी थी। गुजरात के लिए जूनियर क्रिकेट खेल चुके निकुल पटेल से उनका विवाह हुआ, जो भाविना के दिव्यांग होने के बावजूद उसके बुलंद हौंसलों से अत्यधिक प्रभावित थे। हालांकि निकुल शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं, इसलिए उनके परिजन इस विवाह के सख्त खिलाफ थे लेकिन विवाह के कुछ महीनों बाद उन्होंने निकुल और भाविना के रिश्ते को अपना लिया था।
बहरहाल, टोक्यो पैरालम्पिक में रजत पदक जीतकर भाविना ने साबित कर दिखाया है कि संघर्षों ने डरकर हार मानने का नाम जिंदगी नहीं है बल्कि इन संघर्षों का दृढ़ता से मुकाबला कर दूसरों के लिए मिसाल बनना ही असली जिंदगी है। भाविना की ऐतिहासिक जीत पर प्रधानमंत्री ने उनकी जीवन यात्रा को प्रेरित करने वाला बताते हुए कहा भी है कि वह ज्यादा से ज्यादा युवाओं को खेलों की ओर आकर्षित करेगी। दरअसल बहुत छोटी सी उम्र में पोलियो हो जाने पर जीवन से हार मानने के बजाय भाविना ने अपने जीवन को जिस प्रकार नई दिशा दी और पैरालम्पिक में शानदार जीत दर्ज कराकर भारत की तमाम महिलाओं के लिए वह प्रेरणस्रोत बनी हैं, वह अपने आप में मिसाल है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)