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स्वास्थ्य

अच्छे स्वास्थ्य के लिए भारतीय भोजन प्रणाली अपनाना ही उचित

आलोक शुक्ला

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुमिता के अग्रवाल कहती हैं- ‘कोरोना काल में हम सबने शुद्ध खानपान और प्राकृतिक जीवन पद्धति के महत्व को गहराई व गंभीरता से समझा है। हर मौसम में जब संक्रमण काल (मौसम परिवर्तन का समय) आता है उस समय हमारे अस्पतालों-क्लीनिकों में बच्चों की भीड़ लग जाती है। इसमें एक बात जो हम सामान्य रूप से देखते हैं वह है अनियंत्रित खानपान और असंयमित दिनचर्या।

कोविड-19 ने पूरी दुनिया को जीवन शैली में परिवर्तन लाने के लिए बाध्य करते हुए व्यवस्थित दिनचर्या व संतुलित खानपान के लिए प्रेरित किया है। प्रकृति ने हमें कई तरह के पोषक तत्व वाले खाद्यान्न व फल दिए हैं पर आज काम की अधिकता और बढ़ती भौतिकता ने भोजन के तौर-तरीके पूरी तरह बदल डाले हैं। फास्ट फूड और कोल्ड ड्रिंक का चलन बढ़ गया है जिसका खामियाजा भी लोग भुगत रहे हैं। प्रकृति से बढ़ती दूरी, फ्लैट संस्कृति, गांवों से शहरों की ओर पलायन, व्यायाम से दूर रहने की प्रवृत्ति से सबसे अधिक बच्चे व युवा ही प्रभावित हो रहे हैं।

फास्ट फूड, जंक फूड की शुरूआत पश्चिमी देशों से हुई किंतु भारत ने इसका तेजी से अंधानुकरण किया। विदेशों में इनके फायदे- नुकसान के बारे में समय-समय पर जनता को बताया जाता है लेकिन भारत में इस बारे में न तो जागरूकता है और न ही कोई जानने का इच्छुक है जिसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। खानपान के मामले में पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण कर हम बच्चों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं।

जो बच्चे जमीन से जुड़कर रहते हैं, मिट्टी पर नंगे पैर चलते हैं या शुद्ध हवा में पलते हैं उनमें महानगरीय बच्चों की अपेक्षा कई गुना अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। कोविड महामारी ने भारत में कुपोषण की स्थिति को और भी चिंताजनक बना दिया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 27.2 के स्कोर के साथ 107 देशों की लिस्ट में 94वें नंबर पर है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 0-6 साल के 2.97 करोड़ बच्चे हैं जबकि बिहार में कुपोषित बच्चों की संख्या 1.85 करोड़ है। महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है जहां 70 से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इसके बाद गुजरात (45 हजार) और छत्तीसगढ़ (37 हजार) का स्थान आता है।

आयुर्वेद में बताया गया है कि क्या खायें, क्या न खायें, कब खायें, कैसे खायें, कौन से खाद्य पदार्थ के साथ क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए और क्यों नहीं खाना चाहिए। कौन सा भोजन लाभकारी है और कब नुकसानदेह- यह भी विस्तृत रूप से बताया गया है। इसे विज्ञान भी मान्यता देता है। आयुर्वेद के अनुसार उचित खाद्य चयन एवं उचित समय पर भोजन ग्रहण करने से शांत दिमाग के साथ संपूर्ण सेहत बनाए रखने में मदद मिलती है। भारतीय शास्त्रों में भोजन को उनके गुणों के आधार पर तीन प्रकार में विभाजित किया है सत्व ( सतोगुण), राजस ( रजोगुण ) एवं तामस (तमोगुण)। इनके प्रभावों पर भी विस्तृत चर्चा की गई है।

इसी संदर्भ में विश्व स्वास्थ संगठन की सिफारिशों को देखना चाहिए। संगठन ने व्यक्तियों और आबादियों के लिए पांच सिफारिशें की हैं- ऊर्जा संतुलन और स्वस्थ वजन प्राप्त करें, कुल वसा से ऊर्जा ग्रहण सीमित करें और वसायुक्त पदार्थों का सेवन कम करें, फलों और सब्जियों, फलियों, अनाज और गिरीदार फलों का सेवन बढ़ाएं, सामान्य चीनी का सेवन सीमित करें और नमक (सभी स्रोतों से सोडियम) का सेवन कम करें तथा यह सुनिश्चित करें कि नमक आयोडाइज्ड हो। आहार विशेषज्ञों का कहना है कि सफेद शक्कर बहुत हानिकारक है और उसकी जगह देशी तरीके से बनाए गुड़ को बच्चों के आहार के साथ ही बड़ों के आहार में भी शामिल करना चाहिए। बंगाल, छत्तीसगढ़ समेत कुछ राज्यों में खजूर के गुड़ और इनसे बनी मिठाइयों का चलन है जो नुकसान नहीं पहुंचातीं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि आहार में सब्जी और फल की कमी की वजह से प्रति वर्ष 2.7 लाख मौतें होती हैं। एक रिसर्च के अनुसार आर्गेनिक फूड खाने वाले लोगों में कैंसर होने का खतरा 25 प्रतिशत तक कम होता है। इस रिसर्च में पाया गया कि आर्गेनिक खाना ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, स्किन कैंसर और कॉलोनोरेक्टल कैंसर की संभावनाओं को काफी कम करता है।

पिछले डेढ़ वर्ष से कोहराम मचा रहे कोविड-19 से मुकाबले के लिए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के मौजूदा दिशा-निर्देशों में सुरक्षात्मक स्वास्थ्य उपायों और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए आयुर्वेदिक घरेलू उपाय अपनाने पर जोर देते हुए हर्बल चाय और तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, सूखी अदरक (सौंठ )और मुनक्के का काढ़ा जिसमें स्वाद के लिए गुड़ या नींबू का ताजा रस मिला हो, पीने की सलाह दी गई। दिशा-निर्देशों में ठंडा, जमे हुए एवं गरिष्ठ भोजन से बचने की सलाह दी गई है। इसके अतिरिक्त खुले में धूप लेना, योगासन, प्राणायाम के साथ पर्याप्त नींद पर भी जोर दिया गया है।

मुंबई की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुमिता के अग्रवाल कहती हैं- ‘कोरोना काल में हम सबने शुद्ध खानपान और प्राकृतिक जीवन पद्धति के महत्व को गहराई व गंभीरता से समझा है। हर मौसम में जब संक्रमण काल (मौसम परिवर्तन का समय) आता है उस समय हमारे अस्पतालों-क्लीनिकों में बच्चों की भीड़ लग जाती है। इसमें एक बात जो हम सामान्य रूप से देखते हैं वह है अनियंत्रित खानपान और असंयमित दिनचर्या। महत्वपूर्ण तथ्य यह सामने आता है कि जो बच्चे पार्क में, कॉलोनी के गार्डन में या स्कूल में एक-डेढ़ घंटे भी व्यायाम या छोटे-मोटे खेल खेलते हैं एवं फास्ट फूड से दूर रहते हैं वे अपेक्षाकृत बहुत कम बीमार पड़ते हैं जबकि फास्ट फूड खाने अथवा पौष्टिक आहार से दूर रहने, बंद कमरों में रहने, शारीरिक श्रम की अपेक्षा वीडियो गेम व मोबाइल पर व्यस्त रहने वाले बच्चों की इम्युनिटी कम होती जाती है।

अभिभावकों को इन बातों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।’ वे भारतीय भोजन शैली को सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं स्वास्थ्यवर्धक बताती हैं और कहती हैं कि दाल के साथ चावल खाना सभी प्रकार के एमिनो एसिड देता है वहीं दही में नेचुरल प्रोबायोटिक होते हैं। सब्जियों और फलों में विटामिन, मिनरल्स एवं कई पोषक तत्व होते हैं। अन्य खाद्यान्नों के साथ मोटा अनाज जैसे ज्वार, बाजरा आदि भारतीय पारंपरिक भोजन के अभिन्न अंग हैं, जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी हैं। उनका कहना है कि ‘देशी नस्लों की गायों का दूध और घी पौष्टिक व सुपाच्य होते हैं। इनका उपयोग हर आयु वर्ग के लोगों के लिए जरूरी है। कोल्ड ड्रिंक का प्रचलन अब गांव-गांव तक हो गया है। इसकी जगह गन्ने का रस, नींबू का पानी, ताजे फलों के जूस, लस्सी एवं छाछ के सेवन को बढ़ावा देना चाहिए। बच्चों के लिए स्कूलों में योग, हल्के-फुल्के व्यायाम को अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिए।’

भारत में जलवायु की विभिन्नता के कारण खान-पान भी अलग अलग है। पहाड़ी खाने काफी पौष्टिक होते हैं। दक्षिण भारतीय नाश्ते जैसे डोसा, इडली, सांभर और उत्तर भारत का पोहा ये सब अब हर प्रांत के लोगों की पसंद हैं क्योंकि इनमें तेल कम होता है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर, भिंड, मुरैना और महाराष्ट्र व राजस्थान में ज्वार, बाजरे का उपयोग अधिक होता है जो पौष्टिक एवं सुपाच्य होता है। पंजाब-हरियाणा में मक्के की रोटी व सरसों का साग समेत दूध, दही, लस्सी, मक्खन का उपयोग वहां के लोगों के स्वास्थ्य का राज है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में मांड़ वाला चावल का नाश्ता ग्रामीणों की पहली पसंद है, जिसे भोता भात कहते हैं। बदली हुई नई परिस्थितियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए हर क्षेत्र के पौष्टिक व्यंजनों का अपने आहार में समन्वित कर हम उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं।

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