यूपी में भारत की सामरिक शक्ति को नई दिशा देने की है ताकत
अनिल सिंह
उत्तर पदेश की राजधानी लखनऊ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल उत्पादन का केंद्र बनने जा रहा है। रक्षा मंत्रालय के महत्वपूर्ण कदम से यूपी की आर्थिक एवं देश की सामरिक ताकत बढ़ेगी। अतीत के अनुभवों से सबक लेते हुए केद्र सरकार रक्षा आयुध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में प्रयत्नशील है। बजट की दिक्कतों के बावजूद भारत निर्यातक देश बनने की योजना पर काम कर रहा है। वर्तमान स्थिति का आकलन करें तो पांचवां सबसे बड़े रक्षा बजट वाला भारत अपनी रक्षा जरूरतों के उपकरणों एवं कलपुर्जों का 60 फीसदी हिस्सा दूसरे देशों से आयात करता है। भारत सैन्य जरूरतों की खरीद करने वाला सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। रक्षा आयुध के लिए अन्य देशों पर निर्भरता सामरिक एवं सैन्य दृष्टि के लिहाज से आदर्श स्थिति नहीं है। केंद्र सरकार आयात पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी तकनीक को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। पिछली सरकारों ने रक्षा आयुध एवं हथियारों के क्षेत्र में फोकस्ड रणनीति के साथ काम करने की बजाय यथास्थितिवाद को बनाये रखने पर जोर दिया। दुष्परिणाम रहा कि भारत रक्षा अनुसंधान ईकाइयां उन्नत तकनीक के स्वदेशी आयुध के उत्पादन की बजाय दूसरे देशों से आयातित कलपुर्जों को जोड़ने में ही अपनी उपयोगिता सिद्ध करती रहीं। देश में स्वदेशी तकनीक वाले उन्नत एवं मारक हथियारों को विकसित करने को लेकर दीर्घकालीन योजनाएं तैयार नहीं की गईं। भारत रक्षा आयुध क्षेत्र में अभी भी अमेरिका, फ्रांस, रुस जैसे बड़े हथियार निर्यातक देशों पर निर्भर है। यह स्थिति देश की सामरिक और अग्रिम सुरक्षा मोर्चे के लिए उपयुक्त नहीं है।
भारत सरकार रक्षा मामले में विदेशी निर्भरता को न्यूनतम करने तथा हथियार निर्यातक देश बनने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को अग्रणी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी है। संयुक्त एवं स्वदेशी उन्नत युद्ध हथियारों को विकसित एवं उत्पादित करने पर जोर दिया जा रहा है। इस क्रम में डीआरडीओ की ब्रहमोस एरोस्पेस उत्तर प्रदेश में अपनी नई निर्माण ईकाई के साथ कदम रखने जा रही है। भारत एवं रुस की संयुक्त परियोजना ब्रह्मोस का व्यवसायिक उत्पादन भी होगा। रक्षा के क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश के साथ देश के लिए भी बड़ी एवं गौरवांवित करने वाली उपलब्धि है। राज्य में डिफेंस कॉरिडोर के लखनऊ नोड में ब्रह्मोस एरोस्पेस ने नेक्स्ट जनरेशन ब्रह्मोस मिसाइल बनाने के लिए योगी सरकार से समझौता किया है। यूपीडा एवं ब्रह्मोस एरोस्पेस के बीच हुए समझौते के तहत ब्रह्मोस मिसाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट 200 एकड़ में विकसित की जायेगी। यह परियोजना देश की सैन्य मजबूती के साथ यूपी की आर्थिक एवं सामरिक ताकत में इजाफा करेगी। ब्रह्मोस एरोस्पेस नेक्स्ट जनरेशन की ब्रह्मोस मिसाइल के उत्पादन के लिए 300 करोड़ रुपये का निवेश लखनऊ रीजन में करेगी। परियोजना के सब सिस्टम में निर्माण से जुड़ी 200 से अधिक औदयोगिक इकाइयां भी अपने मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट की स्थापना करेंगी। उत्तर प्रदेश सरकार सितंबर महीने में इस परियोजना का शिलान्यास कराने की तैयारी कर रही है। लखनऊ में डीआरडीओ की इस ईकाई की स्थापना के साथ ही उत्तर प्रदेश डिफेंस हब बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर होगा। इस परियोजना ने राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ 15000 लोगों प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार भी पैदा होगा। यूपीडा जल्द ही अपेक्षित जमीन डीआरडीओ को उपलब्ध कराने जा रही है।
इस योजना के लखनऊ में स्थापित होने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका है। उत्तर प्रदेश अगले कुछ वर्षों में रक्षा उत्पादन हब के रूप में विकसित होने जा रहा है, जिसकी शुरुआत ब्रह्मोस के जरिये हो रही है। अब तक उत्तर प्रदेश में रक्षा उत्पादन का प्रमुख केंद्र कानपुर था। अब जल्द ही इस लिस्ट में लखनऊ भी शामिल हो जायेगा, जिसे एचएएल के बाद ब्रह्मोस एरोस्पेस का तोहफा मिलने जा रहा है। डिफेंस कॉरिडोर में आने वाले अन्य जिलों में भी निजी एवं सरकारी रक्षा ईकाइयां अपना मैन्युफैक्चरिंग और रिसर्च विंग खोलने की तैयारी कर रही हैं। यूपी का मजबूत होता आधारभूत ढांचा एवं कॉरिडोर रक्षा क्षेत्र के निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। ब्रह्मोस का उत्पादन शुरू होते ही लखनऊ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वैश्विक पटल पर स्थपित होगा। डीआरडीओ, डीपीएसयू, ओएफबी, एचएल, बीईएल और शिपयार्ड जैसी रक्षा अनुसंधान इकाइयां नये आयुध रिसर्च में जुटी हुई हैं। भारत ब्रह्मोस का उत्पादन रुस के सहयोग से कर रहा है। मैक 3 की स्पीड से 290 किमी तक मार करने वाली तथा 300 किलोग्राम वजन ले जा सकने में सक्षम ब्रह्मोस को जमीन, हवा, समुद्र तथा पानी के भीतर से भी छोड़ा जा सकता है। इस सुपरसोनिक मिसाइल का 65 फीसदी मशीनरी फिलहाल रूस से आयात हो रहा है। इसे हल्के, भारी वाहन के साथ सुखोई जैसे फाइटर जेट से लक्ष्य पर निशाना साधा जा सकता है। यह स्थान बदलने वाले लक्ष्य को भी भेदने तथा रडार को धोखा देने में सक्षम है। आने वाले एक दशक में भारत 2000 ब्रह्मोस मिसाइल के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इस मिसाइल के अपग्रेड ब्रह्मोस 2 की तैयारियां भी जारी हैं, जो 8 मैक स्पीड तथा 1000 किमी रेंज के साथ पहले से भी ज्यादा मारक और अचूक होगा।
लखनऊ में उत्पादन शुरू होने के बाद ब्रह्मोस एरोस्पेस कार्प जल्द ही दूसरे देशों को ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात करेगा। इस लिस्ट में फिलिपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया प्रमुख रूप से शामिल हैं। खाड़ी देशों समेत दक्षिण अफ्रीका भी ब्रह्मोस की आकांक्षा वाला देश है। रुस ने फीलिपींस को ब्रह्मोस बेचने पर अपनी सैद्धांतिक सहमति प्रदान कर दी है। भारतीय कैबिनेट की सुरक्षा कमेटी के मुहर का इंतजार है। सरकार की मंशा आयात कम कर निर्यात बढ़ाने एवं रक्षा तकनीक के अग्रणी देशों की तरह आत्मनिर्भर होने की है। रक्षा इकाइयों के साथ देश के निजी रक्षा कंपनियां भी भारत की निर्यात दायरा बढ़ाने में जुटी हुई हैं। वित्तीय वर्ष 2014-15 में 994.04 करोड़ रुपये के सापेक्ष भारत ने 2015-16 में 1379.42 करोड़ का रक्षा उपकरण निर्यात किया। 2017-18 में निर्यात का दायरा बढ़कर 4682 करोड़ हो गया, जिसे वर्ष 2025 तक बढ़ाकर 5 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत अभी अल्जीरिया, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, नेपाल, ओमान, रोमानिया, बेल्जियम, वियतनाम, म्यामांर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका और सूडान जैसे अपेक्षाकृत छोटे देशों को रडार, तटीय गश्ती जलयान, चीतल हेलीकॉप्टर, इलेक्टॉनिक प्रणालियां और कुछ कलपुर्जे का निर्यात कर रहा है। इनमें कई देशों की रक्षा जरूरतें अत्यंत न्यूनतम हैं। भारत अभी मिसाइल, टैंक, तोप और मारक हथियार की तकनीक में इस स्तर पर तरक्की नहीं कर सका है कि वह उसका बड़े स्तर पर उत्पादन करके दूसरे देशों को निर्यात कर सके। कई रक्षा उपकरणों बनाने के लिए भारत दूसरे देशों से आयातित होने वाले कलपुर्जों पर निर्भर है। वह अभी अपनी जरूरत के अनुसार उत्पादन कर रहा है। सरकारी एवं निजी रक्षा उपकरण उत्पादन ईकाइयों का पूरा जोर अगले पांच वर्षों में बड़े रक्षा उपकरणों का उत्पादन कर निर्यात को बढ़ाना है। ब्रह्मोस के साथ भारत कम दूरी वाले मारक मिसाइल आकाश के निर्यात की भी तैयारी कर रहा है। सेना पर खर्च होने वाले बजट की लिस्ट में भारत पांचवें स्थान पर है। पड़ोसी देश चीन का बजट भारत से लगभग ढाई गुना है। 2020 में भारत का रक्षा बजट 4710 अरब रुपये था, जिसे 2021 में मामूली बढ़ाकर 4780 अरब किया गया है, जिसमें 1350 अरब रुपये सैन्य सामान खरीद एवं रख-रखाव के लिए है। दूसरी तरफ चीन का रक्षा बजट 12500 अरब रुपये से ज्यादा है। रक्षा आयात और दूसरे देशों पर निर्भरता घटाए बिना भारत कभी भी चीन और अमेरिका जैसे देशों की श्रेणी में खड़ा नहीं हो सकता।