सीख हम बीते युगों से नए युग का करें स्वागत
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सीआईए के एजेंट एडवर्ड स्नोडेन की ही तरह सोवियत रूस के खुफिया विभाग केजीबी के पूर्व एजेंट वसीली मित्रोखिन ने केजीबी के गुप्त दस्तावेजो को प्रकाशित किया था. पुस्तक का नाम “The Mitrokhin Archive II: The KGB and the World” इस प्रकार है जो 1999 में प्रकाशित किया गया था ।
अपनी पुस्तक में जो कि मरणोपरांत प्रकाशित हुआ था – पूर्व केजीबी अधिकारी वासिली मित्रोकिन ने लिखा है कि सोवियत खुफिया एजेंसी के पास इंद्रा गांधी की सरकार में व्यापक संपर्क था. पूर्व केजीबी एजेंट ने यहां तक दावा किया था कि हमारा सम्पर्क भारत सरकार के उच्च पदाधिकारियों , नेताओ और पत्रकारों तक था । पूर्व केजीबी जनरल ओलेग कलुगिन (Oleg Kalugin) ने कहा था कि “ऐसा लग रहा था कि पूरा देश ही बिकने के लिए खड़ा है , नेता , पत्रकार , साहित्यकार , अधिकारी । ( former KGB general Oleg Kalugin as saying. “It seemed like the entire country was for sale.”)
मित्रोखिन ने कहा कि भारतीय राजनेता दुनिया के सबसे बड़े धोखेबाज थे उससे भी जितना अधिकतम हो सकता है ।
उन्होंने कहा था कि 1970 अवधि के दौरान भारत में केजीबी ऑपरेशन सोवियत संघ के बाहर दुनिया में सबसे बड़ा तन्त्र था और केजीबी की अपनी गुप्त फाइलों के आधार पर The Mitrokhin Archive II के अनुसार, इसे संभालने के लिए रूस में एक नया विभाग भी बनाना पड़ा था।
मित्रोखिन ने लिखा कि 1975 के दौरान, भारत में सक्रिय तन्त्र पर कुल 10.6 मिलियन रूबल खर्च किए गए, जो कि श्रीमती गांधी के समर्थन को मजबूत करने और उसके राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए डिजाइन किया गया था।
इस पुस्तक का दूसरा खंड केजीबी के शीत युद्ध गतिविधियों का विवरण है जिसे शीर्ष खुफिया एजेंसी केजीबी के पूर्व एजेंट वासिली मिट्रोखिन द्वारा 2 दशकों के दौरान चोरी किया गया और 1992 में प्रकाशित कर दिया गया जब वह रूस से ब्रिटेन गए ।
वह बताते है कि 1961 के प्रारंभ में केजीबी ने फैसला किया था कि वह तीसरी दुनिया के युद्धक्षेत्र पर पूंजीवादी पश्चिम के विरुद्ध युद्ध करेंगे और सीधे “मुख्य शत्रु” संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ नहीं, किताब बताती है कि कैसे केजीबी ने चिली के नेता Salvador Allende वित्त पोषित किया और समर्थन किया ।
केजीबी ने उनका कोडनाम के LEADER रखा था । बाद में चिली की अर्थव्यवस्था ढह गई और उन्हें तख्तापलट में उखाड़ फेंका गया और मार दिया गया।
यही नही केजीबी पूर्व एजेंट ने ईरान और इराक में केजीबी ऑपरेशंस का भी विस्तृत विवरण दिया । उसने लिखा है कि मिस्र के गैमेल अब्दुल नासर को जीतने के बाद मध्य पूर्व में प्रभाव डालने की कोशिश की थी, लेकिन उनके उत्तराधिकारी अनवर सादत ने उन्हें खारिज कर दिया था।
यह सीरिया और यमन में केजीबी की सफलताओं को प्रदर्शित करता है लेकिन इजरायल के मामले में यह पूर्णतः विफल रहा है।
पुस्तक अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के समर्थन से दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद करने के लिए केजीबी के अभियान की जांच करती है, और इसके कुछ अभियानों का उदाहरण देता है
। Mitrokhin इंग्लैंड में अपने घर में जनवरी 2004 में निधन हो गया था । क्रिस्टोफर एंड्रयू, दोनों पुस्तकों के लेखक और खुफिया मामलों के एक विशेषज्ञ, ने कहा कि उनका संग्रह – जिनमें से कुछ को वर्गीकृत किया गया है यह सबसे बड़ा खुफिया coups में से एक था ।
भारत मे वामपंथ की जड़े बहोत ही गहरी रही है लेकिन अब जब भारत मे वामपंथी शक्तियां राजनैतिक रूप से शीत युद्ध के बाद कमजोर हो गई तो बाद में यही वामपंथी आज ‘सेक्युलरिज्म’, ‘दलित मुक्ति’, ‘मानवाधिकार’ , ओबीसी चिंतन , पर्यावरणविद , स्त्रीवाद के गिरोहों में शामिल हो गए । अब वामपंथी साहित्य ने दलित साहित्य , ओबीसी साहित्य , स्त्री विमर्श , पर्यावरणविद , आदि का स्थान ले लिया । जैसा कि आप लोग जानते ही होंगे एनजीओ प्रोपेगेंडा के बारे में कैसे peace international , amnesty international जैसे एनजीओज़ ने दूसरे देशों की विकास गति को रोकने का प्रयास किया जिनका भंडाफोड़ भी हुआ ।
होरोवित्ज ने अपने पचास वर्ष के अनुभव के आधार पर यह पुस्तक लिखी है। कम्युनिस्टों के पास अब किसी सामाजिक क्रांति का मोटा विचार भी शेष नहीं है। अंधा-अमेरिका विरोधा के नाम पर साम्यवादी लोग पहले भी अयातुल्ला खुमैनी जैसे तानाशाहों, अत्याचारियों का समर्थन करते रहते थे। अब वही उनका एकमात्र अवलंब है जिस कारण वे सिमी, जिलानी, तालिबान, सद्दाम, अहमदीनेजाद, जवाहिरी जैसे हर तरह के देसी-विदेशी इस्लामवादियों के साथ दिख रहे हैं ।