ईश्वर कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को सद्बुद्धि दे
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे राहुल गांधी के बारे में सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि वे अपनी पार्टी को इस समय अपने पैरों पर खड़ा करने में असफल रहे हैं। राजनीतिक रूप से लड़खड़ाती कांग्रेस किसी ऐसे नेता की बाट जोह रही है जो उसे वर्तमान दलदल से बाहर निकाल सके, लेकिन राहुल गांधी हैं कि अपनी हर गतिविधि और अपने हर वक्तव्य से पार्टी को राजनीतिक दलदल में और अधिक धँसाते जा रहे हैं। अच्छी बात यह होती कि वह कांग्रेसियों के साथ मिल बैठकर आत्म मंथन करते और पार्टी किन कारणों से सत्ता से दूर हो गई ? -इस पर सही निष्कर्ष निकालते। वैसे भी देश को लोकतंत्र में हमेशा एक सशक्त और सक्षम विपक्षी नेतृत्व की भी आवश्यकता होती है। राहुल गांधी एक सशक्त और सक्षम विपक्षी नेतृत्व देने में असफल रहे हैं। वह अपनी छवि के प्रति गंभीर नहीं हैं ,जो निरंतर बिगड़ती ही जा रही है। ऐसी स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती । यह बहुत ही दुखद है कि संसद में विपक्ष के पास इस समय ना तो कोई अटल बिहारी वाजपेई हैं, ना सुषमा स्वराज हैं, ना ही शरद यादव हैं और ना ही चंद्रशेखर हैं, जो कभी शासक दल की बोलती बंद किया करते थे। ‘शोर मचाओ ब्रिगेड’ के आधार पर विपक्ष राजनीति करने की कोशिश करता है। जिसके नेता राहुल गांधी हैं । मुद्दों से भागते हैं और शोर-शराबे में देश की संसद को बंद किए रखने में ही अपनी राजनीति समझते हैं।
अभी कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के नीमच से एक आदिवासी युवक को सड़क पर घसीटने का वीडियो सामने आया तो वहीं दूसरी ओर उज्जैन में एक कबाड़ वाले से जबरन जय श्रीराम बोलने को कहे जाने की घटना भी सुर्खियों में रही। दोनों घटनाएं यदि सचमुच इसी रूप में घटित हुई हैं तो निंदनीय हैं। जिसकी कांग्रेसियों ने ही नहीं हर संवेदनशील व्यक्ति ने निंदा की है, परंतु यहां पर बात दूसरी भी है और वह ये कि इससे भी अधिक निंदनीय और घृणित घटनाएं इस देश में घटित हुई हैं। यदि उस समय भी राहुल गांधी या सेकुलर गैंग के अन्य लोग कुछ ऐसी ही कठोर टिप्पणी करते तो अच्छा लगता जैसी कि इन घटनाओं को लेकर एक वीडियो शेयर करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोगों की आजादी को लेकर सवाल खड़े करते हुए लिखा है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 15 और 25 भी बेच दिए गये हैं ?
राहुल गांधी को अब यह कौन समझाए कि प्रत्येक व्यक्ति सम्मान पूर्वक अपना जीवन यापन कर सके – इसकी गारंटी देने वाले इन दोनों अनुच्छेदों की नीलामी तो कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण के काल में ही हो चुकी थी। इन्हीं के रहते हुए कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं को भगाया गया। इन्हीं के रहते हुए पूर्वोत्तर भारत का ईसाईकरण करके हिंदू को अल्पसंख्यक बना दिया गया और इन्हीं के चलते देश के दूसरे भागों में भी मुस्लिम और ईसाई दोनों ने मिलकर देश के बहुसंख्यक समाज के लोगों का गला घोटने का कार्य किया। जिसे राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस ने धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर होने दिया। यद्यपि इसी काल में हिंदू इन सभी क्षेत्रों में अपमानपूर्ण जिंदगी जीता रहा। हिंदू का वह अपमानित जीवन इन्हें कभी दिखाई नहीं दिया। जिसकी ओर कांग्रेस के नेतृत्व ने देखना तक उचित नहीं माना । तब राहुल गांधी या उनके किसी भी परिवार के अध्यक्ष या प्रधानमंत्री की अंतरात्मा कहां चरने चली गई थी, जब यह सब घटनाएं घटित हो रही थीं ?
भारतीय संविधान ने भारतीय नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने के दृष्टिकोण से बिना किसी भेदभाव के मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य है कि भारत में समतामूलक समाज की संरचना हो और किसी भी वर्ग का तुष्टीकरण न करते हुए सबको साथ लेकर चलने की सरकारी योजनाएं निर्मित हों। जिससे देश की सरकारों पर भी किसी वर्ग विशेष के प्रति झुकाव रखने का आरोप ना लगे । जबकि कांग्रेस ने संविधान की मूल भावना के विरुद्ध काम करते हुए बहुसंख्यक का उत्पीड़न और अल्पसंख्यक का तुष्टीकरण करने का घृणास्पद खेल खेला। इस पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी क्या कहेंगे ?
संविधान का अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। इस संबंध में न्यायिक निर्णयों के अवलोकन से पता चलता है कि जाति, सम्प्रदाय व लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति को विशेष सुविधाएं देना और किसी की सुविधाओं को छीनना भी एक प्रकार की सांप्रदायिकता और जातिवाद ही कहा जाएगा। यदि इस प्रकार का आचरण राज्य करता है तो वह भी दोषी है। हम यह निसंकोच कह सकते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसा अनेकों बार और नहीं अपितु निरंतर होता रहा। इनकी आरक्षणवादी और तुष्टिकरण की सोच और नीति ने देश के सामाजिक ढांचे में अनेकों दीवारें खड़ी कर दीं। वोटों की राजनीति का खेल खेलती कांग्रेस सब कुछ जान कर भी अनसमझ बनी रही। क्या राहुल गांधी हमें यह बता पाएंगे कि कांग्रेस ने कभी ऐसी गलती नहीं की ?
अनुच्छेद 15 की दूसरी क्लॉज के अनुसार किसी भी भारतीय नागरिक को जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर दुकानों, होटलों, सार्वजनिक भोजनालयों, सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों, कुओं, स्नान घाटों, तालाबों, सड़कों आदि पर प्रवेश करने या चलने से कोई नहीं रोक सकता।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर संविधान वर्तमान संविधान से पूर्णतया असहमत और असंतुष्ट थे। क्योंकि वह जिस समतामूलक समाज की संरचना का सपना लेकर चले थे वह उन्हें इस संविधान के माध्यम से पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था। उन्होंने कांग्रेस के शासनकाल में ही आजादी के एकदम पश्चात 1953 में यह कह दिया था कि इस संविधान के द्वारा देश का भला नहीं हो सकता और यदि इसे जलाने की स्थिति आयी तो मैं पहला व्यक्ति होऊँगा जो इसे जलाने का काम करूंगा। कांग्रेस ने देश की सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिए संविधान की मूल आत्मा के साथ खिलवाड़ किया और उसने ऐसा प्रबंध किया कि यह विसंगतियां और भी अधिक जटिल होती चली गयीं। जाति, वर्ग और संप्रदाय की बहुलता देखकर किसी भी विधायी क्षेत्र से लोगों को टिकट देने की गलत परंपरा भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस ने ही डाली है। क्या राहुल गांधी कह सकते हैं कि उन्होंने यह ‘अपराध’ नहीं किया ? वास्तव में इस अपराध में लोगों की आजादी को बेचने का काम किया क्योंकि किसी भी विधायी क्षेत्र में जिस जाति, वर्ग या संप्रदाय की बहुलता होती है उसके अतिरिक्त दूसरे लोग अपने आपको उस वर्चस्व रखने वाले वर्ग, जाति या संप्रदाय का ‘बंधुआ गुलाम’ समझते हैं। उनमें से कोई भी प्रतिभा अपने आपको इस योग्य नहीं मानती कि वह देश की संसद या किसी भी राज्य की विधानसभा में जा सकती है। क्या कांग्रेस ने देश को आजादी इसी बंधुआ गुलामी के लिए दिलवाई थी ? यदि नहीं तो वह भारतीय समाज की इन विसंगतियों को दूर क्यों नहीं कर सकी ? जिन चीजों से हमें बहुत दूर निकल जाना चाहिए था, हम उनमें उल्टे लौट रहे हैं और देश में कबीलाई संस्कृति को फैलाकर ‘जंगलराज’ स्थापित कर रहे हैं। निश्चित रूप से इस उत्सव में उनकी कांग्रेस का विशेष योगदान रहा है। जाति आधारित जनगणना की मांग कराने को लेकर जो लोग सक्रिय हैं, वह अपनी जातीय पहचान और सोच को राष्ट्रीय सोच और पहचान से ऊपर रखने वाले लोग हैं। जिनसे हमें सावधान रहना चाहिए।
इसमें कांग्रेस की जिम्मेदारी से राहुल गांधी भाग नहीं समझ सकते।
निश्चित रूप से देश को 1947 में आजादी मिली, परंतु वर्गगत, जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति और बंधुआ मजदूर बनाकर लोगों को रखने की मानव की सोच से देश के नागरिकों को मुक्ति नहीं मिली। इस बात के लिए कांग्रेस से बड़ा दोषी कोई भी राजनीतिक दल नहीं हो सकता।
संविधान के अनुच्छेद 15 के नियम (3) के मुताबिक, अगर महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाए जा रहे हैं तो अनुच्छेद 15 ऐसा करने से नहीं रोक सकता। जैसे महिला आरक्षण या बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा।
नियम (4) के अनुसार राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े, एससी, एसटी, ओबीसी के लिए स्पेशल प्रोविजन बनाने की छूट है। जैसे सीटों का आरक्षण या फीस में छूट आदि।
वास्तव में देश के ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के लोग मध्य काल के वह महान योद्धा हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया था। जिन्हें तुर्कों, मुगलों और ब्रिटिश शासकों के अत्याचारों से बचने के लिए जंगलों की शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। धीरे-धीरे ये लोग पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में पिछड़ते चले गए और एक समय ऐसा आया कि ये आर्थिक रूप से कंगाल होकर गरीबी और फटेहाली का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो गए । कांग्रेस ने कभी अपने मंचों से यह बताने का प्रयास नहीं किया कि जिन लोगों को तुर्को, मुगलों और ब्रिटिश शासकों ने उत्पीड़ित किया हम उनके सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करेंगे और सारे देशवासियों से अपेक्षा करते हैं कि इन सब को सम्मान की दृष्टि से देखा जाए। क्योंकि इनके पूर्वजों ने हमारे देश की स्वाधीनता के लिए दीर्घकालिक संघर्ष किया था। राहुल गांधी की कांग्रेस ने ऐसा इसलिए नहीं कहा क्योंकि इससे कांग्रेस की मुगलों ,तुर्कों और ब्रिटिश शासकों के प्रति वफादारी सवालों के घेरे में आ सकती थी । इसलिए राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि आज के ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लोग यदि आजादी के 75 वर्ष पश्चात भी अपने आपको अपमानित और उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं तो इसमें उनकी कांग्रेस का बड़ा योगदान है। क्योंकि वह कभी भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से नहीं देख पाई। वह केवल उन्हें वोटो के ढेर के रूप में ही देखती रही।
आर्टिकल 15 के नियम (4) को समर्थन प्रदान करने वाले नियम (5) के अनुसार अनुच्छेद 15 का कोई नियम राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोक सकता। कुछ समय पहले ही अनुच्छेद 15 में नया प्राविधान (6) जोड़ा गया है, जिसके अनुसार राज्य समय-समय पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की ओर भी ध्यान देगा।
संविधान के अनुच्छेद-25 से लेकर 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता की बात है। जस्टिस आर. एस. सोढ़ी के अनुसार अनुच्छेद-25 में हर किसी को किसी भी धर्म का पालन करने और मानने का अधिकार है। उसका प्रचार प्रसार और प्रवचन करने का भी अधिकार है।’
हम भी जस्टिस सोढ़ी की बातों का समर्थन करते हैं, परंतु कांग्रेस का इतिहास यहां भी दोगला है। जहां जहां हिंदुओं का धर्मांतरण करके तेजी से देश के जनसांख्यिकीय आंकड़ों को बिगाड़ा गया है, वहाँ वहाँ अनेकों लोगों को अपने मौलिक अधिकारों से हाथ धोना पड़ा है। अपनी धार्मिक स्वतंत्रता को अपनी आंखों के सामने नीलाम होते देखकर उन लोगों के दिल पर उस समय क्या गुजरी होगी जब स्वाधीन भारत में उन्होंने किसी लोभ ,लालच या भय के कारण अपना मतांतरण किया होगा ? इसे राहुल गांधी जी शायद समझ नहीं पाएंगे, क्योंकि वह सेकुलर नाम की बीमारी के कीड़े से ग्रस्त हैं।
जस्टिस सोढ़ी हमें यह बताते हैं कि यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। अगर सरकार को लगता है कि इस काम से लोक स्वास्थ्य, नैतिकता या फिर कोई भी ऐसी बात जो कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बाधक है, तब सरकार इस पर रोक लगा सकती है। धार्मिक स्वतंत्रा का यह अर्थ नहीं है कि किसी दूसरे पर अपना धर्म थोपा जाए या फिर दूसरे को किसी और धर्म के मानने के लिए बाध्य किया जाए या किसी और का बलात धर्म परिवर्तन किया जाए।
इसका अभिप्राय है कि केंद्र की वर्तमान सरकार को मतांतरण जैसी आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने के लिए अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 को असीमित स्वतंत्रता के साथ प्रयुक्त होने से रोकने की दिशा में काम करना चाहिए। हमें मालूम है कि यदि सरकार ने ऐसा किया तो राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस फिर सड़कों पर उस ”टुकड़े टुकड़े गैंग” – के लोगों को बरगलाने का काम करते हुए दिखाई देगी जो देश की एकता और अखंडता में तनिक भी विश्वास नहीं रखते। कहने का अभिप्राय है कि जिन लोगों ने अभी तक मतांतरण की बीमारी के चलते अनेकों कष्ट भोगे हैं या भोगने की तैयारी कर रहे हैं उन्हें यदि वर्तमान सरकार उन कष्टों से निकालने का भी काम करेगी तो भी कांग्रेसी ही होगी जो उसे प्रक्रिया का यह कहकर विरोध करेगी कि इससे देश के संविधान की हत्या हो रही है। लगता है कांग्रेस की मति भंग हो चुकी है। जिसे सच-सच दिखाई नहीं देता और झूठ को भी सच के रूप में प्रस्तुत करने का उसके नेता का राजनीतिक स्वभाव बन चुका है। ईश्वर कांग्रेस और उसके नेता को सद्बुद्धि दे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत