वैदिक संपत्ति: संप्रदायप्रवर्तन : गीता और उपनिषदों में मिश्रण
गतांक से आगे..
उपनिषदों की नवीनता का दूसरा प्रमाण तो बहुत ही स्पष्ट है। छान्दोग्य 3/17/ 6 में लिखा है कि ‘तद्वैतद् धोरआंगिरसः कृष्णाय देवकीपुत्राय’अर्थात् घोर आंगिरस के शिष्य देवकीपुत्र कृष्ण के लिए। इनमें देवकीपुत्र कृष्ण का नाम आया है।यह वाक्य कृष्ण के बाद ही लिखा गया है। हम प्रथम खण्ड में कृष्णकालीन महाभारतयुद्ध को लगभग 4100वर्ष पूर्व का सिद्ध कर आये हैं।इसलिए उपनिषद् का यह वाक्य उस समय के बाद का है। यह उस समय का है ,जब कृष्ण भगवान अवतार माने जा चुके थे और उनकी भक्ति अच्छी तरह प्रचलित हो चुकी थी। हमारा अनुमान है कि वैष्णव धर्म के आरंभ के बाद और गीता प्रचार के साथ उपनिषदों में यह अंश मिलाया गया है।कहने का मतलब यह कि ऐतिहासिक घटनाओं से भी सिद्ध होता है कि उपनिषदों में मिश्रण है ।
उपनिषदों में मिश्रण का यह प्रबल प्रमाण है कि उपनिषदत्काल हीं में श्रोतागण उनके सिद्धांतों को मोह में डालने वाले मानते थे। बृहदारण्यक 4 /5/14 में मैत्रेयी ने स्पष्ट कहा है कि ‘मा भगवन्मोहान्तम्’ अर्थात् मुझे मोह में न डालिये।मोह भ्रम को कहते हैं। भ्रम उत्पन्न करा देना देना यह नवीन धर्म प्रवर्तकों का सबसे पहला काम है । गीता में भी लिखा है कि अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि मुझे आपकी बातों से मोह होता है। जिन बातों से मोह पैदा हो – भ्रम उत्पन्न हो – वे बातें इस महान् ब्रह्मविद्या में कभी भी उपयोग नहीं हो सकती।पर ऊलजलूल बातों से तो भ्रम होता ही है।भ्रम को हटाने वाला तर्क ही है – न्यायशास्त्र ही है,पर उससे तो आसुर आचार्य घबराते हैं। कठोपनिषद् 2/9 में लिखा है कि ‘ नैषा तर्केण मतिरापनेया अर्थात् तर्क से है,यह मति प्राप्त होने योग्य नहीं है।जहां निरुत्तरकार ने कहा है कि ‘तर्क एवं ऋषिः’अर्थात् तर्क ही ऋषि है,जहां न्यायशास्त्र बना हुआ है और जहां मनु जैसे धर्माचार्य कहते हैं कि ‘यस्तर्केणानुसंधत्ते’ अर्थात् जो वैदिक ज्ञान तर्क से सिद्ध हो,वही धर्म है, वहां तर्क से घबराना और तर्क अप्रतिष्ठा का सिद्धांत बनाना उसी का काम हो सकता है, जिसका सिद्धार्थ लचर है, जो मोह- भ्रम -उत्पन्न कराने वाला है और जो नवीन अवैदिक सिद्धान्त प्रचलित करना चाहता है। अन्यथा जहां परस्पर विरोधी दो सिद्धांत उपस्थित हो,वहां बिना तर्क के कैसे जाना जा सकता है कि इनमें से कौन सत्य है और कौन असत्य ? कहने का मतलब यह है कि तर्क से घबराना और भ्रम उत्पन्न करना वैदिक शैली नहीं है।उपनिषदों के ऐसे भाग निस्सन्देह प्रक्षित है और आसुर हैं।
क्रमश:
प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन ; उगता भारत