अब केन्द्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के एक और अधूरे कार्य को पूर्ण करने का संकल्प लिया है। डा. कलाम का सपना था कि गांवों और शहरों को एक जैसी सुविधाएं प्रदान कर गांवों को भी विकास के मार्ग पर अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा करना। कलाम एक दूरदृष्टि वाले महापुरूष थे, इसलिए वह भारत के मौन परंतु सक्रिय राजनेता थे। इधर-उधर की अनर्गल बातों को करने या कहने का उनके पास समय ही नही होता था। अब केन्द्र सरकार श्यामा प्रसाद मुखर्जी ररबन मिशन के अंतर्गत ‘स्मार्ट विलेज’ बसाने की तैयारी कर रही है। इस योजना के अंतर्गत लगभग 5200 करोड़ रूपया खर्च करके ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सामाजिक विकास के लिए उपयुक्त ढांचे का निर्माण किया जाएगा। गांवों का विकास करके उन्हें आधुनिकता के स्तर पर लाना वास्तव में ही केन्द्र सरकार का एक स्वागत योग्य कदम है। यूं तो अब से पूर्व भी ऐसी बहुत सी योजनाएं बनी हैं, पर देखा यह गया है कि शहरों के विकास के नाम पर जमीनों का अधिग्रहण करके गांव उजाड़ दिये गये। सैकड़ों गांवों को दिल्ली का विकास खा गया और ऐसे ही हजारों गांवों को देश के अन्य महानगरों का विकास निगल गया। जब अधिग्रहण की कार्यवाही की जाती है तो शहरों के सेक्टरों के मध्य आने वाले इन ग्रामों को विकास की सारी सुविधायें प्रदान करने की बातें की जाती हैं, परंतु बाद में ये गांव एक संदूक सी में बंद कर दिये जाते हैं, और विकास उन्हीं सेक्टरों का होता है जो इन गांवों की भूमि पर विकसित किये जाते हैं। कहने का अभिप्राय ये है कि गांवों की भूमि पर सेक्टर किसी और नाम से बसाये जाते हैं और फिर यही सेक्टर उस मूल गांव की पहचान को मिटा डालते हैं, जिसकी भूमि पर ये बसाये गये होते हैं।
अब केन्द्र सरकार जिस नीति के अंतर्गत स्मार्ट ग्राम बसाये जाने की योजना बना रही है, उसके लिए सर्वप्रथम तो स्मार्ट विलेज का हिंदी रूपांतरण किया जाना अपेक्षित है। ‘श्यामाप्रसाद मुखर्जी’ जैसे लोग ‘हिंदी, हिंदू, हिन्दुस्तान’ के समर्थक थे, परंतु पता नही क्या बात है कि भाजपा को अपने नारे भी इंगलिश में ही सूझते हैं और अपनी योजनाओं का नामकरण भी अंग्रेजी में ही सूझता है।
हमें गांवों में संस्कार आधारित शिक्षा लागू करने के लिए आदर्श विद्यालयों की व्यवस्था करनी चाहिए, इन विद्यालयों में संस्कारशालाओं का निर्माण किया जाए, जिनमें कुछ संन्यासी और वेदोपनिषदादि आर्षग्रंथों के विद्वानों को रखा जाए। संस्कृत को ‘मृत भाषा’ बनने से रोकने के लिए संस्कृत के विद्वानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाए। ये विद्वान गांव-गांव जाकर बच्चों में संस्कारों का निर्माण करें। भारत और भारतीयता को बचाने के लिए यह प्रयास यदि नही किया गया तो ये ‘स्मार्ट विलेज’ भारत के लिए ‘हर्ट विलेज’ सिद्घ होंगे। आधुनिकता का अभिप्राय पश्चिमी संस्कृति से जोड़ देना नही है। आधुनिकता का अभिप्राय है-संस्कारों में ढाल देना और शिक्षा, सुरक्षा, संस्कार, स्वास्थ्य आदि की पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध कराना है। ग्रामीण आंचल के विषय में यह ध्यान रखना चाहिए कि इसी आंचल में वास्तविक भारत निवास करता है। जिसमें लोग प्रकृति के अनुकूल रहते और चलते हैं। आधुनिकीकरण करते-करते गांवों से शहर, कुएं, नहर समाप्त किये गये नदियों का स्वरूप शहरों के गंदे नालों ने बिगाड़ा तो प्रकृति के साथ मनुष्य ने अपने युगों पुराने परंपरागत सदभावपूर्ण संबंधों को तनावपूर्ण बना लिया। जिससे आज का विकास प्रकृति के प्रकोप के कारण विनाश में परिवर्तित होता जा रहा है।
हमारी अर्थव्यवस्था में गौ का महत्वपूर्ण योगदान होता था। प्राचीन समाज में पंडित की दक्षिणा हो, चाहे कन्या के लिए दान हो, सबमें गौदान चलता था। कहीं चैक की व्यवस्था नही थी, कहीं एटीएम नही था, कहीं बैंक नही था, कहीं सीए नही था, ये सब नही थे तो भ्रष्टाचार भी नही था। कारण यह था कि हमारी अर्थव्यवस्था भी प्रकृति के अनुकूल थी। जब रूपया आया तो ये सभी चीजें आती गयीं और अंत में आ गया सबका बाप भ्रष्टाचार। अब यह भ्रष्टाचार जाने का नाम ही नही ले रहा है।
गांवों के विषय में सरकारी योजना का हम पुन: स्वागत करते हैं परंतु अपना सुझाव भी देना चाहते हैं कि गांवों को भारत के पुरातन और अधुनातन का बेजोड़ संगम बनाने की दिशा में कार्य किया जाए। प्रधानमंत्री मोदी की भावना अच्छी हैं, उनका प्रयास अच्छा है, पर बस ध्यान यह रखना है कि गांव उजड़ें नही, गांवों की मौलिकता जीवित रहे और प्रकृति के साथ उनका संबंध अटूट रहे। ए.सी. रेफ्रीजरेटर, गैस चूल्हा के शहर बसाकर देख लिये गये हैं, जिन्होंने व्यक्ति को बीमार कर दिया है, उसकी मानसिकता को बीमार कर दिया है। अब गांवों में यह सब कुछ ना हों, ऐसे स्मार्ट गांव यदि बसाये गये तो अति उत्तम होगा।
प्राचीन भारत गांवों में बसाया गया था, तो उसका कारण यह था कि प्रकृति के साथ मनुष्य को छेड़छाड़ करने का अवसर न मिले। महानगर बसते ही व्यक्ति की विवशता हो जाती है कि वह प्रकृति पर प्रहार करे, और फिर प्रकृति की व्यवस्था यह है कि वह स्वयं से छेड़छाड़ करने वाले के साथ प्रतिशोध का व्यवहार करती है। हमारे पूर्वजों ने तो इस रहस्य को समझा पर हम नही समझ रहे हैं। अच्छा हो ‘स्मार्ट विलेज’ बसाने में इस तथ्य का ध्यान रखा जाए।
मुख्य संपादक, उगता भारत