भारत में रह रहे अफगानी नागरिकों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन क्या दर्शाते हैं ?

बीते दिनों सोशल मीडिया में एक पोस्ट तेजी से वायरल हो रहा था जिसमें लिखा हुआ था कि, “इस्लामिक देशों में इस्लामिक आतंकवाद के डर से वहाँ के इस्लाम मानने वाले लोग भागकर अन्य देशों में शरणार्थी की तरह आते हैं और फिर कुछ दिनों बाद जिस देश में ये रहते हैं वहाँ हिंसक, जिहादी और अन्य तरह की अनैतिक घटनाओं को अंजाम देते हैं और यह सब कई वर्षों से चला आ रहा है.”

हम आपको यह सब इसलिए बता रहे हैं क्योंकि, अफगानिस्तान में इस्लामिक आतंकवादी संगठन तालिबानी ने कब्जा कर लिया है और अब अफगानी नागरिक भागकर भारत आ रहे हैं, इसके अलावा हजारों अफगानिस्तानी पहले ही भारत में रह रहे हैं. इन अफगानियों के भारत में रहने से किसी को कोई विशेष आपत्ति नही होनी चाहिए क्योंकि इन सभी के पास भारत में रहने का वीजा है जोकि भारत सरकार द्वारा ही प्रदान किया गया है.

लेकिन, भारत में रहने वाले इन अफगानियों ने इस देश को शायद धर्मशाला समझ रखा है क्योंकि अफगानिस्तान के कई शरणार्थियों ने नई दिल्ली में ‘संयुक्त राष्ट्र हाई कमिश्नर फॉर रेफ्यूजीज’ के सामने जाकर विरोध प्रदर्शन किया और इस दौरान इन लोगों ने मांग की कि सभी शरणार्थियों को रिफ्यूजी कार्ड दिए जाएँ, साथ ही किसी विकासशील देश में उन्हें बसाए जाने की योजना लाने की भी माँग की.

इतना ही नहीं, अपने देश में तालिबानी आतंकियों की प्रताड़ना से बच कर आए अफगान शरणार्थियों ने संयुक्त राष्ट्र कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज व भारत सरकार से सुरक्षा के आश्वासन की मांग भी की.

गौरतलब है कि, भारत में अफगानी शरणार्थियों के प्रमुख अहमद जिया गनी ने बताया है कि देश में फ़िलहाल 21,000 अफगान शरणार्थी हैं और इन सबके पास अब अपने देश (अफगानिस्तान) लौटने का कोई कारण ही नहीं बचा है साथ ही अफगान शरणार्थियों के पास नौकरी व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं.

इसलिए वे भारत सरकार से लॉन्ग टर्म वीजा अर्थात लंबे समय तक देश में रहने की अनुमति मांग रहे हैं, जबकि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि अफगानिस्तान से आने वाले लोगों को ई-वीजा दिया जाएगा जो कि मात्र 6 महीने के लिए ही मान्य रहता है.

वास्तव में, इन अफगानियों को लॉन्ग टर्म वीजा देने में किसी को भी समस्या नही होनी चाहिए थी लेकिन इतिहास गवाह है कि शरणार्थी के रूप में रहने वाले मुस्लिमों ने वहाँ के मूल लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है और आगे भी ये ऐसा ही करते रहेंगे.

पड़ोसी देश म्यांमार से लेकर आज जहाँ तक भी नजर डाली जाए वहां इस्लामिक आतंकवाद और जिहादी मानसिकता स्पष्ट दिखाई देती है ऐसे में किसी भी शरणार्थी को देश में एक सीमित समय तक रखना ही ठीक है क्योंकि देश के संसाधनों पर यहाँ के लोगों का अधिकार है न कि किसी अन्य देश से भागे हुए व्यक्ति का.

हालांकि, आज भले ही केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ई-वीजा देकर अफगानिस्तान के नागरिकों को भारत में शरण दे रही है लेकिन इस बात में कोई संदेह नही है कि यदि आने वाले सालों में ये लोग देश में ही रहे और केन्द्र में किसी अन्य पार्टी की सरकार आयी तो वह वोट बैंक की लालच में इन्हें नागरिकता देने में कोई गुरेज नही करेगी।

क्योंकि जिन लोगों ने म्यांमार के शांति प्रिय बौद्धों का जीना दूभर कर रहा था उन रोहिंग्या मुसलमानों की वकालत करने वाले यहां कई दल हैं तो फिर अफगानियों की वकालत करने के लिए भी तो ये लोग तैयार हो ही जाएंगें, इसलिए यदि सरकार इन्हें एक निश्चित अवधि के बाद अफगानिस्तान वापस लौटने या किसी इस्लामिक या अन्य देश की शरण लेने की बात स्पष्ट रूप से कहे तो इसमें ही इस राष्ट्र की अस्मिता, सुरक्षा और यहाँ की 100 करोड़ बहुसंख्यक आबादी की भलाई है.

मिथिलेश कुमार गुर्जर

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