राकेश सैन
बाजवा को जफ्फी डाल कर खुद सिद्धू भी विवादों में घिर चुके हैं और अब उन्होंने अपने इर्द-गिर्द चण्डाल चौकड़ी एकत्रित कर ली है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को सोचना चाहिए कि उसे कभी देश को इन प्रश्नों के उत्तर देने पड़े तो उसके पास क्या जवाब होगा ?
‘‘कश्मीर-कश्मीर के लोगों का देश है, 1947 में इंडिया को छोड़ते समय हुए समझौते के अनुसार और यूएनओ के फैसले की उल्लंघना करते हुए कश्मीर देश के दो टुकड़े कर दिए गए, जिस पर पाकिस्तान और भारत ने कब्जा किया हुआ है।’’ यह नासमझी भरे बयान जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के किसी नेता या किसी जमात या आतंकी संगठन के मुखिया के नहीं बल्कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के परामर्शदाता मालविन्द्र सिंह माली के हैं, जो उन्होंने 17 अगस्त को फेसबुक पर पोस्ट किए। माली के बयानों पर प्रदेश की राजनीति में भूचाल-सा आ गया है और विपक्षी दलों ने इसे शहीदों का अपमान व देश की एकता-अखण्डता और प्रभुसत्ता के लिए खतरनाक बताते हुए उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग की है। प्रदेश में जगह-जगह इसके खिलाफ प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही अपने लिए चार सलाहकार नियुक्त किए जिनमें अधिकतर का चरित्र व गतिविधियां सन्देह के घेरे में हैं। इन नियुक्तियों को देख कर यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि पंजाब कांग्रेस टुकड़े-टुकड़ेवादियों के चंगुल में फंस चुकी है
पूर्व पत्रकार व स्वयंभू मानवाधिकार कार्यकर्ता माली शुरू से ही सन्दिग्ध चरित्र के रहे हैं। चरम वाम विचारधारा में विश्वास रखने वाले माली 1970 में वामपन्थी विद्यार्थी संगठन पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (पी.एस.यू.) से जुड़े रहे हैं और 1990 में स्वयंभू मानवाधिकार संगठन पंजाब ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ गए। बाद में वे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति (एस.जी.पी.सी.) के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत गुरचरण सिंह टोहड़ा के सम्पर्क में आए। वे प्रदेश में कई कट्टरपन्थी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और इसके चलते गिरफ्तार भी हो चुके हैं। हिन्दू और भारत विरोध इनका प्रिय शगल रहा है और वह पंजाब में भी अलगाववाद का समर्थन करते रहे हैं। पंजाब के बारे में कश्मीर की भांति ट्वीट करते हुए माली ने 9 अगस्त, 2019 लिखा था- ‘‘पंजाबियों और सिखों का 15 अगस्त के दिन का नारा है- 47 की आजादी, पंजाब देश की बर्बादी है, पाकिस्तान से दुश्मनी नहीं और दोस्ती और खुली बैठक पक्की है। नेहरू, पटेल, वाजपेयी, इन्दिरा गान्धी, राजीव गान्धी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी मूलरूप से भारतीय राज्य नीतियों पर ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुयायी थे। उनके बीच मतभेद सिर्फ विधिज्ञ के थे। कभी खुद में आकलन, कभी पकड़ो और निगल जाओ। भारत को भारत संघ बनाने का उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र है। भारतीय राष्ट्रवाद हिन्दू पौराणिक कथाओं और इतिहास की ब्राह्मणवादी धारा पर आधारित है। इसलिए इनको भारत के लिए दुश्मन बनाना पड़ता है। वो किसी समय इस्लाम, ईसाई, सिख, कश्मीरी, पाकिस्तान और कम्युनिस्ट आतंकवादी हो सकता है जो देश की एकता, अखण्डता, राष्ट्रवाद को खतरे में डालता है। इस खाने के बिना बच्चे जिन्दा और समृद्ध नहीं हो सकते… और जो इस बोतल के अन्दर हैं वो एक दिन बिखरेगा। इस भारत की कब्र पर बन रहा हिन्दुस्तान राज्यों का संघ है…।’’
सिद्धू की चण्डाल चौकड़ी में दूसरा नाम है बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हैल्थ साइंस के पूर्व रजिस्ट्रार प्यारे लाल गर्ग का जो वर्तमान में ‘पिण्ड बचाओ-पंजाब बचाओ कमेटी’ नाम से संगठन चला रहे हैं। प्यारे लाल गर्ग चण्डीगढ़ स्थित खालिस्तान समर्थक संगठन ‘केन्द्री श्री गुरु सिंहसभा’ के मंचों पर अक्सर दिखाई देते हैं। इस सभा ने 26 जनवरी, 2021 में लाल किले पर असामाजिक तत्वों द्वारा केसरी झण्डा फहराने और तिरंगे के अपमान का खुल कर समर्थन किया। केवल इतना ही नहीं 15 अगस्त, 2020 को यह सभा ‘पंजाब विनाश दिवस’ मना चुकी है और सिख युवाओं को भारत के खिलाफ भड़काने का काम करती रही है। प्यारे लाल गर्ग के संगठन ‘पिण्ड बचाओ-पंजाब बचाओ’ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए) के विरोध के दौरान खूब विषाक्त प्रचार किया।
सिद्धू के रत्नों में तीसरे हैं पंजाब के अतिरिक्त पुलिस प्रम्मुख मोहम्मद मुस्तफा का जो 1985 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आई.पी.एस.) के अधिकारी हैं। दिखने में धर्मनिरपेक्ष छवि के मुस्तफा वास्तव में सूक्ष्म इस्लामिक व वामपन्थी विचारधारा से प्रभावित हैं। वे मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के भी करीबी रहे परन्तु कैप्टन द्वारा दिनकर गुप्ता को पंजाब पुलिस प्रमुख नियुक्त करने के बाद वे सिद्धू के खेमे में चले गए। उन्होंने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया परन्तु असफल रहे। यहां रोचक तथ्य यह रहा कि सर्वोच्च न्यायालय में उनके केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट एजाज मकबूल ने की जो साल 2019 में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से श्रीराम मन्दिर केस में मन्दिर निर्माण के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर चुके हैं। मुस्तफा हिन्दुत्व व संघ के खिलाफ ट्वीट कर कई बार विवादों में आ चुके हैं। इनकी धर्मपत्नी रजिया सुल्ताना पंजाब सरकार में मन्त्री पद पर विराजमान हैं और राज्य के मुस्लिम बाहुल्य इलाके मालेरकोटला से विधायक चुनी जाती रही हैं।
बात करते हैं माली की, तो ज्ञात रहे कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों द्वारा किए गए हमले के बाद 26 अक्तूबर, 1947 को वहां के महाराजा हरिसिंह ने विलयपत्र पर हस्ताक्षर कर अपने राज्य को भारतीय गणराज्य में शामिल करने की घोषणा की थी। पाकिस्तानी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा उसके कब्जे में ही रह गया परन्तु 22 फरवरी, 1994 को संसद के दोनों सदनों में सभी दलों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पूरे राज्य को भारत का अभिन्न अंग बताया था, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर के साथ-साथ गिलगिट, बाल्टिस्तान व अक्साइचिन के इलाके भी शामिल हैं। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर पर विवादित बयान देकर कांग्रेस के नेता व सिद्धू के सलाहकार ने देश की एकता, अखण्डता व प्रभुसत्ता को चुनौती देने का दु:साहस किया है जिसको स्वीकार नहीं किया जा सकता। वैसे कहावत भी है कि जैसी संगत वैसी रंगत, आदमी अपने स्वभाव के लोगों का साथ ढूंढ़ ही लेता है। पाकिस्तानी सेना के जनरल कमर जावेद बाजवा को जफ्फी डाल कर खुद सिद्धू भी विवादों में घिर चुके हैं और अब उन्होंने अपने इर्द-गिर्द इसी गौत्र की चण्डाल चौकड़ी एकत्रित कर ली है तो किसी को अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को सोचना चाहिए कि उसे कभी देश को इन प्रश्नों के उत्तर देने पड़े तो उसके पास क्या जवाब होगा ?