जीवन राग —————– नाचती हवाओं का संगीत
- संजय पंकज
चिड़ियों की चहक से नींद खुली तो आंखों को मलते हुए अपने छोटे से बगीचे में आ गया। अभी सूरज निकला नहीं था, पूरब का आसमान लाल भी नहीं हुआ था, कुछ तारे टिमटिमा रहे थे तब भी दिशाओं में धुंध उजाला फैल गया था, सामने का सब कुछ साफ-साफ दिखने लगा था। अचानक ही जो दृश्य दिखा तो मैं अपलक देखता ही रह गया। आंखें वहीं थम गईं, मन भी उसी दृश्य में अटक गया। भीतर बाहर स्पंदन होने लगा। बाहर मैं स्थिर था मगर भीतर झूम रहा था। सामने जहां मेरा पूरा अस्तित्व जम गया था, एक छोटे से पौधे की फुनगी पर उगा ललछौंहा कोमल किसलय थिरक रहा था। उसकी मुलायमियत मेरी पुतलियों में उतर गई। मेरा रोम रोम आह्लाद से आलोड़ित होने लगा। आनंद के सागर में मैं डूबने-उतराने लगा। मेरे चारों ओर आलोक का ज्वार-वलय उठने लगा। एक नवजात किसलय की थिरकन ने मेरी धड़कनों में संगीत भर दिया और नसों में उबाल ला दिया। तनिक भी हवा नहीं चल रही थी मगर रूह को राहत देने वाली ठंड थी। मैं मदहोशी में खो गया था और किसलय की मीठी थिरकन को देख रहा था। नजर इधर उधर गई तो देखा कि अनेक छोटे-छोटे पौधों की फुनगियों पर नाजुक नाजुक पत्तियां झूम रही थीं, थिरक रही थीं, नाच रही थीं। मैं कुदरत के करिश्मे पर दंग था!
प्रकृति ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती है। अखिल ब्रह्मांड को संभालने का दायित्व ईश्वर ने प्रकृति को सौंप दिया है और प्रकृति इस काम को बखूबी अंजाम देती रहती है। जगत को अपराध के लिए भी प्रकृति ही दंड देती है। यौवन, बुढ़ापा, रोग और साथ ही जीवन तथा मृत्यु का कारक भी प्रकृति होती है। ईश्वर अपने ऊपर कोई कलंक या दोष नहीं लगने देता है। हर कार्य और घटना का निमित्त कोई कारण बनता है। यह कारण अंततः प्रकृति ही है। प्रकृति जीवों को संचालित करने के लिए नाना प्रकार के उपक्रमों का प्रदर्शन करती है। जैसे कोई मां अपने बच्चों का जी बहलाने के लिए कई प्रकार के स्वांग रचती है; ठीक उसी तरह प्रकृति भी प्राणियों की प्रफुल्लता के लिए अनेकानेक दृश्यों को निर्मित करती रहती है। प्रकृति मां होती है। धूप, हवा, आग, पानी सब उसके सहयोगी और सहचर हैं। हवा दिखती नहीं मगर वह अपने पूरे अस्तित्व के साथ सदा उपस्थित रहती है। सारे जीव हवा की गोद में ही चलते-फिरते रहते हैं। विज्ञान भले ही कहे कि हमारे चारों ओर हवा का दबाव है लेकिन कोई दबाव कभी अनुभूत नहीं होता। अजीब अस्तित्व है हवा का भी! प्यार और खामोशी से सब के आसपास होती है हवा। वह किसीको रोकती नहीं लेकिन जब कभी वातावरण विश्रृंल होता है और प्रकृति उत्तप्त तथा उग्र होती है तो हवा का मिजाज भी बदल जाता है। गुदगुदाहट, मुलायमियत,राहत और सुकून देने वाली हवा जब कभी गर्म होती है लू के झोंके उठाती है। वासंती खुशबू बिखेरने वाली हवा बरसात के दिनों में बादलों को इधर-उधर उड़ाती है तो आसमान के रंग-बिरंगे दृश्यों को देखकर उसकी भूमिका में उसकी कला-अस्मिता उजागर होती है मगर देखते ही देखते आंधी, पत्थर, ओलों के बीच जब वह झंझावात बनती है तो उसकी पराकाष्ठा अकल्पनीय हो जाती है। उजड़ जाती हैं बस्तियां, तहस-नहस हो जाते हैं बाग- बगीचे, घोंसले तिनके तिनके बिखर जाते हैं। जीव जगत के अस्तित्व पर भारी संकट आ जाता है। सतत प्रवहमान और गतिशील स्थिर से अस्थिर तक हवा कितना बदल जाती है! लास्य और तांडव दोनों शिव-शक्ति में अंतर्भुक्त हैं। शिव का प्रतिनिधित्व करती है प्रकृति और प्रकृति लय-प्रलय दोनों रचती है। हर रूप में वंदनीय हैं शिव, पूजनीया है शक्ति! शिव-शक्ति के प्यार-दुलार भरे हिंडोले में पैंगे भरता है जीवन! प्रकृति की सहचरी-अनुचरी हवा सहलाती, दुलारती, झकझोरती,पछाड़ती जन्म से मृत्यु तक जीवन-जगत को स्पंदित और उद्वेलित करती रहती है। निराकार प्राण हवा ही तो है और जब निकलते हैं प्राण तो अस्तित्व का चैतन्य संपूर्णत: हो जाता है विलुप्त-विलीन! विभिन्न मुद्राओं में लगातार नाचती हवाओं का अद्भुत और शाश्वत होता है संगीत! संगीत का उत्कर्ष समस्त ग्रंथियों को खोलता हुआ विकुंठ करता है जीव जगत को! नाचती हवाओं के संगीत पर लयलीन होता जीवन सुंदर, आकर्षक, सम्मोहक,आनंदप्रद और चिरंतन है!
कभी मलय फिर गंधवह,होती झंझावात!
प्राणों को ले नाचती, हवा मधुर सौगात!!
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