तालिबान सिर पर आ चुका है और हिंदुओं को कोई होश नहीं है।

हिंदुओं के अंदर खतरे को भांप लेने की क्षमता


एकदम शून्य है… तालिबान सिर पर आ चुका है
और हिंदुओं को कोई होश नहीं है।

  • तालिबान की फोर्स में सबसे ज्यादा पश्तून नस्ल
    के लड़ाके हैं… पश्तून यानी पठान । अहमद शाह
    अब्दाली भी पश्तून ही था (आज के तालिबानियों
    का पूर्वज) 1761 में जब पानीपत का तीसरा युद्ध
    हुआ तब उस युद्ध के बाद हजारों हिंदू महिलाओं
    को अफगानियों ने गुलाम बना लिया था। हर
    अफगानी कैंप में 10-10 हिंदू महिलाएं बंदी थीं
    जिनके दोनों हाथ ऊपर बांध दिए गए थे ताकी वो
    बलात्कार किए जाते वक्त प्रतिरोध ना कर सकें।
    (सोर्स-किताब-पानीपत, लेखक- विश्वास पाटिल)

  • ये घटना इसलिए बताना जरूरी था कि अहमद
    शाह अब्दाली पानीपत की तीसरी लड़ाई में हावी
    नहीं हो पाता अगर उसकी सेना को यमुना पार
    करने का संकरा रास्ता किसी हिंदुस्तानी ने नहीं
    बताया होता। हिंदू दूरदर्शी नहीं होता है और
    हमेशा अपने नजदीकी और तुरंत मिलने वाले
    फायदे को देखता है। इस हिसाब से चंद सोने के
    सिक्कों के लिए किसी हिंदू ने ही अफगान
    हमलावर अहमद शाह अब्दाली को ये बता दिया
    था कि बाढ़ से उफनती यमुना को पार करने का
    पतला रास्ता कहां से है ?

-आज तालिबान पूरे ठाठ के साथ पूरी दम के
साथ काबुल पर काबिज हो चुका है और लूटी
हुई अमेरिकी राइफल हाथों में लिए हुए इन
तालिबानी लड़ाकों का सबसे बड़ा सपना यही
है कि काफिरों की सबसे बड़ी धरती हिंदुस्तान
को किसी तरह दारुल इस्लाम बना दिया जाए।
ये वही सपना है जो उसके पूर्वज अहमद शाह
अब्दाली और नादिरशाह ने देखा था ।

  • अब अब्दाली और नारिदशाह की विरासत
    संभालने वाले तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर
    काबिज हो चुके हैं और उनके पास साढे सात
    हजार की पूरी अफगान फोर्स है जो कि अमेरिका
    ने तैयार की थी और उनके पास अमेरिका के
    अत्याधुनिक हथियार और लड़ाकू विमान तक हैं।
    ऐसी स्थिति में अब भारत के ऊपर एक बहुत बड़ा
    खतरा मंडरा रहा है क्योंकि ये वो तालिबान है
    जिनको अपनी जिंदगी की कोई परवाह नहीं है।
    क्योंकि उनके पास जन्नत की हूरों का ऑफर है
    जो उन्हें आसमानी किताब से मिला हुआ है।
    लेकिन हिंदुओं को अपनी जान की फिक्र ही नहीं
    है क्योंकि उनको आने वाले खतरे का कोई
    अंदेशा ही नहीं है ।

-माफ करना… कटु शब्द हैं लेकिन हिंदू खाने….
मल मूत्र त्याग करने… और यौन लिप्सा की पूर्ति
को ही जीवन मान चुका है और इसीलिए उसे ये
भी होश नहीं है कि जिस विचारधारा से तालिबान
पैदा हुआ है वो देवबंदी विचारधारा का सबसे बड़ा
मदरसा भारत के उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में है।
जिसे देवबंद दारुल उलूम कहा जाता है ।

  • हिंदुओं को ये भी नहीं पता है कि तालिबान की
    स्थापना करने वाला मुल्ला उमर साल 1994 में
    यहीं भारत के उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के देवबंद
    से पढाई करके अफगानिस्तान गया था और फिर
    वहां तालिबान की स्थापना की थी।

  • हम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का धन्यवाद
    देते हैं जिन्होंने खतरे को भांपा और देवबंद में
    एटीएस को 2 हजार वर्ग मीटर की जमीन देकर
    एक कमांडों सेंटर बनाने की योजना तैयार की है।

-हिंदू उस शुतुर्मुर्ग की तरह है जिसने अपनी गर्दन
सेक्लुरिज्म और अहिंसा की रेत में छुपा ली है। उसे
लग रहा है कि वो सुरक्षित हो गया है। आज हम
लोग देख रहे हैं कि मीडिया में जो डिबेट्स हो रही
हैं उनमें अमेरिका को कोसा जा रहा है। अमेरिका
जिसने अफगानिस्तान में ना सिर्फ अपने 2 हजार
जवानों का बलिदान किया बल्कि अपने 60 लाख
करोड़ रुपए भी अफगानिस्तान में लगाए। जिसने
तालिबान को 20 साल तक रोक कर रखा उसको
पूरी दुनिया गाली दे रही है। गाली दो, अमेरिका से
कोई सहानुभूति नहीं है। लेकिन मीडिया की
डिबेट्स में विषय ये होना चाहिए था कि भारत पर
इसका असर क्या होगा ?

  • लेकिन टीवी स्टूडियो में बैठने वाले एंकरों ने ना
    कुरान पढी है… ना शरीयत… ना हदीस… और
    ना ही उन्हें इतिहास की जानकारी है। उन्हें ये भी
    नहीं पता होगा कि पठानों ने कब कब और
    कितनी बार हिंदुस्तान पर हमला किया है। इन
    अनपढ एंकरों से और कोई उम्मीद भी नहीं की
    जा सकती है। डिबेट्स में जब कोई सेना अधिकारी
    कोई सही बात कहने की कोशिश भी करता है तो
    उसको चुप करा दिया जाता है। और उससे ये
    सवाल पूछा जाता है कि अब अफगानिस्तान में
    महिलाओं की स्थिति क्या होगी ?

-टीवी डिबेट्स के अनपढ एंकर्स को शरीयत के बारे
में कुछ नहीं पता है। वो फालतू में ही महिलाओं पर
बहस कर रहे हैं । यहां हिंदुस्तान में कौन सा
तालिबान है। लेकिन यहां पर सारी मुस्लिम
महिलाएं बुर्का पहनकर ही बाजार जाती हैं। मुख्य
विषय बुर्का नहीं बल्कि भारत की सुरक्षा होनी
चाहिए थी जिस पर एक बार भी किसी टीवी
चैनल पर डिबेट नहीं हुई है ।

  • जो समझदार हिंदू हैं वो अल्पसंख्यक हैं यानी
    उनकी संख्या बहुत कम है। उनसे मुझे कोई
    शिकायत नहीं है लेकिन अधिकांश बाकी हिंदुओं
    से मैं ये कहना चाहूंगा कि कम से कम वोट सही
    पार्टी को देना ताकि अजीत डोवाल राष्ट्रीय सुरक्षा
    सलाहकार बने रहें क्योंकि कोई तो है जिसके
    पास खतरे को पहले से भांप लेने की क्षमता है।

प्रस्तुति : मनोज चतुर्वेदी ‘शास्त्री’

Comment: