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अपने हंगामे से संसद के मानसून सत्र को एक तरह से नकाम करने के बाद विपक्षी दलों का उत्साहित होना समझ से परे है यह उत्साहित होने की नहीं बल्कि चिंतन-मनन करने की बात है कि आखिर इससे उसे हासिल क्या हुआ???
इसमें संदेह है कि सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई विपक्षी नेताओं की बैठक में इस सवाल पर कोई विचार-विमर्श होगा? चूंकि इस बैठक में विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे इसलिए उसकी ओर सबका ध्यान जाना स्वाभाविक है लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस तरह की बैठकें पहले भी हो चुकी है और यह सब जानते हैं कि नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा है ……
विपक्षी दलों और खासकर कांग्रेस का स्वर कुल मिलाकर यही रहता है कि मोदी सरकार के कारण लोकतंत्र खतरे में है तीन-चार दिन पहले ही सोनिया गांधी ने कहा कि जब मौलिक अधिकारों और संविधान को कुचला जा रहा हो तब चुप रहना पाप है उन्होंने यह भी कहा कि देश के लोकतंत्र को फिर से सही स्थिति में लाने की जरूरत है बेहतर हो कि उन्हें यह भी आभास हो कि सबसे पहले कांग्रेस को पटरी पर लाने की जरूरत है ……
उन्हें इसका भी आभास हो तो बेहतर कि मोदी सरकार के बारे में वह 2014 के बाद से ही इसी तरह के बयान दे रही है इन घिसे-पिटे बयानों की निरर्थकता किसी से छिपी नहीं यह हैरान करता है कि कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को अभी तक इसका भान नहीं कि आम जनता को इस तरह के झूठे बयानों में कहीं कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है ……
प्रश्न यह नहीं है कि विपक्ष एकजुट होता है या नहीं? प्रश्न यह है वह किन मुद्दों पर एकजुट होता है और देश के समक्ष कोई वैकल्पिक एजेंडा पेश कर पाता है या नहीं? विपक्ष वैकल्पिक एजेंडा पेश करना तो दूर रहा कोई ऐसा विमर्श भी नहीं गढ़ पा रहा जिस ओर देश की जनता आकर्षित हो सके ……
विपक्ष को यह समझना होगा कि उसका काम केवल समस्याओं को रेखांकित करना नहीं बल्कि उनका समाधान भी पेश करना होता है यह ऐसा करने के बजाय महज विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति का परिचय देता नजर आ रहा है इसी के तहत उसने मानसून सत्र में संसद नहीं चलने दी और जब वह तैय समय से पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करनी पड़ी तो विपक्ष की ओर से ऐसे विचित्र सवाल पूछे गए कि आखिर संसद क्यों नहीं चली? बात केवल इतनी ही नहीं वह संसद में हुड़दंग मचाने वाले सांसदों का बचाव भी कर रहा है और लोकतंत्र को लेकर चिंता भी जता रहा है !!