हिमालयन एनवायरमेंट स्टडीज एंड कंजर्वेशन आर्गेनाइजेश (एचईएससीओ) के प्रमुख डा. अनिल जोशी का मानना है कि विकास की गलत नीतियों के कारण उत्तराखंड के गांवों में आज भी विकास की किरणें नहीं पहुंच पाई हैं। राज्य बनने के डेढ़ दशक के गांवों की स्थिति नहीं सुधरी। पहले गांव सिर्फ बदहाल थे लेकिन अब बंजर भी होने लगे हैं। इसलिए मौजूदा विकास के मॉडल को बदलने के लिए जोशी ने उत्तराखंड में गांव बचाओ यात्रा शुरू की है।
अपनी यात्रा के उद्देश्यों के बारे में जोशी ने उत्तराखंड का अलग राज्य के रूप में गठन इसलिए किया गया था कि दूरदराज के इलाकों में विकास हो। स्थानीय वहां से पलायन रुके। स्थानीय स्तर पर बुनियादी सुविधाएं एवं रोजगार बढ़े। लेकिन इन डेढ़ दशकों में विकास का पहिला राज्य के आठ-दस शहरों में ही घूमता रहा। नतीजा यह हुआ कि राज्य के पहाड़ी गांवों से इन शहरों की तरफ पलायन होने लगा। डा. जोशी के अनुसार विकास के इस बेतरतीब मॉडल का सही मायने में किसी को फायदा नहीं हो रहा है। शहर में आबादी ज्यादा हो चुकी है। सुविधाएं कम पड़ रही है। वे बेतरतीव हो रहे हैं जबकि राज्य के गांव बंजर हो रहे हैं। लोग अपने घरों को ताला लगाकर भागने को विवश हैं। इससे राज्य के 16 हजार गांवों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।
मनुष्य ने अपने निहित स्वार्थ के दृष्टिगत पहाड़ों की शांत वादियों को भी नही छोड़ा है। पहाड़ों पर भी मनुष्य की बढ़ती हुई आबादी का प्रभाव सीधे सीधे देखा जा सकता है। जिससे आज ऐसी समस्याएं पैदा हो रही हैं कि संपूर्ण मानवता का भविष्य ही संकटमय नजर आने लगा है। हमारी सरकारों की नीतियां सचमुच ऐसी रही हैं, जिनसे मनुष्य विकास की ओर नही अपितु विनाश की ओर बढ़ रहा है। दुख की बात यह है कि सरकारें सबकुछ समझ कर भी ना समझने का प्रयास करती हैं, ऐसे में श्री जोशी की यात्रा के सकारात्मक परिणाम आने बड़े अस्पष्ट नजर आ रहे हैं, पर फिर भी उनका प्रयास स्वागत योग्य है।
देवेन्द्रसिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।