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तालिबानी लड़कियों को चिकन-मीट समझते हैं, हर जवान लड़की को बना रहे हवस का शिकार: उदित राज, कांग्रेस नेता

 

अपने विवादित बयानों के लिए चर्चित कांग्रेस नेता उदित राज ने तालिबान के विरुद्ध पार्टी से अलग बयान देकर छद्दम धर्म-निरपेक्षों में खलबली मचा दी है। वैसे भी तालिबान वर्तमान पीढ़ी के लिए मुग़ल आतताइयों के उस इतिहास को जीवंत कर रहा है, जिसे अपनी कुर्सी की खातिर तुष्टिकरण पुजारी और छद्दम धर्म-निरपेक्षों से छुपाकर उन्हें महान बता दिया। मुग़ल आतताइयों के हमलों के समय हिन्दू महिलाओं की यही स्थिति थी, जो आज अफगानिस्तान में मुस्लिम महिलाओं की हो रही है।

इस सन्दर्भ में अनवर शेख की पुस्तक Islam, Sex & Violence चरितार्थ हो रही है। किसी भी गैर-मुस्लिम द्वारा इस्लाम अथवा पैगम्बर के विरुद्ध कुछ भी बोलने पर कट्टरपंथी हिंसक होते सबने देखा। लेकिन लेखक अनवर शेख के विरुद्ध बोलने या इनके विरुद्ध फतवा देने का किसी में साहस नहीं हुआ। इस्लाम के विरुद्ध, शेख की केवल एक यही पुस्तक नहीं और भी पुस्तकें हैं।

सोशल मीडिया पर इतिहास के अनेकों उन पृष्ठों का प्रसारण किया जा रहा है, जिन्हें भारतीय जनमानस से छुपाया गया, प्रस्तुत है सोशल मीडिया पर प्रसारित एक पृष्ठ :-
काबुल की दुर्दशा का कारण अमेरिका का पलायन नहीं, बल्कि अफगानी सेना का अपने ‘दीन’ के प्रति समर्पण है।
दीन के प्रति समर्पण को समझने के लिए हल्दीघाटी के युद्ध में घटी घटना अपने सैक्यूलरिस्ट बंधुओं के निमित्त ही यहां उद्धृत है। बदाउनी ने लिखा था – “हल्दीघाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर से संलग्न राजपूत, और राणा प्रताप के निमित्त राजपूत परस्पर युद्ध रत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद का पाना असंभव हो रहा था, तब अकबर की ओर से युद्ध कर रहे बदाउनी ने, अपने सेनानायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाए ताकि शत्रु को ही आघात हो, और वह ही मरे।”

कमांडर आसफ खान ने उत्तर दिया कि – “यह बहुत अधिक महत्व की बात नहीं है कि गोली किस को लगती है क्योंकि सभी (दोनों ओर से) युद्ध करने वाले काफिर ही हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मारेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।” (मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी, खंड II, अकबर दी ग्रेट मुगल : वी. स्मिथ हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ दी इंडियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर : सं.आर.सी. मजूमदार, खण्ड़ VII, पृ.132)

इसी संदर्भ में एक और ऐसी ही समान स्वभाव की घटना वर्णन उल्लेखनीय है। प्रथम विश्वव्यापी महायुद्ध में जब ब्रिटिश भारत की सेनाऐं क्रीमियां में नियुक्त थी तब ब्रिटिश भारत की सेना के मुस्लिम सैनिकों ने, जो उसी सेना के हिंदू सैनिकों के पीछे थे, हिंदू सैनिकों पर पीछे से गोलियां चला दी, फलस्वरुप बहुत से हिंदू सैनिक मारे गए।
मुस्लिम सैनिकों की शिकायत थी कि जर्मनी के पक्षधर, और जो क्रीमियां पर अधिकार किए हुए थे, उन तुर्कों के विरुद्ध वे युद्ध नहीं करना चाहते थे। इस घटना के बाद ब्रिटिशों ने ब्रिटिश भारत की सेना के हिंदू और मुसलमान सैनिकों को युद्धस्थल पर कभी भी एक पक्ष में, एक साथ, नियुक्त नहीं किया। इस घटना का वर्णन उस ब्रिटिश अफसर ने स्वयं ही लिखा था, जो इस अति विशिष्ट, तथा इस्लामी, घटना का स्वयं प्रत्यक्षदर्शी था। (दी इंडियन ऑफिस लाइब्रेरी, लंदन, एम.एस.एस. 2397)
देवबंद में स्थापित दारुल उलूम मदरसे के छात्रों ने आज तालिबान की शक्ल में अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया। इस्लाम का जिहादी मानसिकता का वैश्विक वैचारिक स्रोत का प्रतीक – दारूल उलूम, देवबंद नामक एक विशाल इस्लामी मदरसा व मस्जिद का परिसर किस तरह भूगर्भीय कम्पन व भू-स्खलन का केंद्र बिन्दु – एपीसेण्टर व त्रुटिरेखा – फाल्टलाईन बन सकता है। वह अफगानिस्तान के प्रकरण से स्पष्ट है। यह जो विश्वव्यापी इस्लामी धर्मान्धता का विषवृक्ष फैल रहा है, उसका जनक भारत स्थित देवबंद है, जो 7वीं सदी के इस्लाम का पुनर्निर्माण व इसे जीवित करने का यत्न कर रहा है।
वास्तविकता तो यह है कि वे हारे नहीं बल्कि स्वयं एक-एक राज्य सौंपते गए और अंत में काबुल भी सौंप दिए, क्योंकि यह उनके ‘दीन’ की बात थी। भले ही वे अमेरिका से वेतन ले रहे थे, लेकिन उनका ईमान तालिबानियों (अल्लाह के सैनिकों) के साथ था।
अमेरिका यह जान चुका था कि ओसामा और मुल्ला उमर के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान में उसका अपना काम तो पूरा हो चुका है। अब वह ऐसे लोगों का बोझ ढो रहा है, जो स्वयं तालिबान से लड़ने की इच्छा शक्ति नहीं रखते, बल्कि अपने मजहबी फरमान के आधार पर उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं।
अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, कब्जा करने के बाद अब तालिबान अपना नियम-कानून चलाना शुरू कर चुका है, तालिबान कितना खूंखार है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ज्यादातर लोग अफगानिस्तान छोड़कर भाग रहे हैं, इसी बीच कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा है कि ‘शायद ही कोई जवान लड़की बची हो जिसे तालिबानी हवस का शिकार न बना रहे हों, उन्होंने यह भी कहा कि ‘पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अन्याय व भ्रष्टाचार’ धर्म के आड़ में हुआ।
कब तक कोई देश, दूसरे का बोझ उठाएगा? वह भी उस परिस्थिति में जब सभी प्रयास मजहब के सामने राख में घी सुखाने की तरह बेकार हों। वास्तव में यह अमेरिका का पलायन नहीं मजहब की मूलगामी सोच का दूरगामी परिणाम है। जो सरकारें और जो देश इससे सबक नहीं लेंगे। उन्हें भी भविष्य में ऐसे ही परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए।

 

कांग्रेस नेता उदित राज ने अपने ट्वीट में लिखा, धर्म के आड़ में जितना अन्याय व भृष्टाचार दुनिया में हुआ उतना किसी और कारण से नही। तालिबानी लड़कियों–महिलाओं को चिकन व मीट समझते हैं। जवान लड़की शायद ही बची हों जिसको उठाकर हबस का शिकार न बना रहे हो।

 

एक अन्य ट्वीट में उदित राज ने दो तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा, आज हमारें यहाँ धर्मनिरपेक्षता गाली हो गई है और पाखंड व झूठ राष्ट्रवाद। बाई ओर की फ़ोटो धर्मनिरपेक्ष अफ़ग़ान को दर्शाती है और दाईं कट्टरता की। उदित राज ने अपने ट्वीट में लिखा, धर्मान्धता क्या है अफगानिस्तान को देखकर समझा जा सकता। कुछ हद तक भारत उस ओर बढ़ चुका है। अब भी संभलने का समय है। इससे सबको लड़ना पड़ेगा केवल राजनैतिक दल पर नही छोड़ा जा सकता है। इस नफरत की आग में हिन्दू-मुस्लिम सब जल जाएंगे।

 

एक और हादसे के लिए तैयार रहिए । पाकिस्तान तालिबान को भारत के विरुद्ध प्रयोग करेगा । तुष्टिकरण वाली गद्दार पार्टियां भी मोदी को हटाने के लिए तालिबान और पाकिस्तान का साथ देंगी ।‌अगर दुर्भाग्य से non BJP Govt केंद्र में आ जाती है तो तालिबान का काम और भी आसान हो जाएगा इसलिए साथियों हर हाल में जागते ‌रहिये । ‌आने वाला समय बहुत ही खतरनाक है । सत्ता परिवर्तन का सीधा अर्थ हमारी मौत है ।

ईश्वर की लाठी बड़ी बेआवाज होती है। आज भी गजनी मे शिलालेख है जिस पर लिखा है…

“दुख्तरे हिंदुस्तान नीलामे 2 दीनार”

 

कभी जिस अफगानिस्तान मे हिन्द की बेटियां दो दो दीनार में नीलाम की गई थीं आज उन्हीं पठानों की बेटियां बिना कोई मोल लूटी  जा रही है। 

उदित राज ने अफगानिस्तान में वर्षों पहले की स्थिति की तुलना भारत से करने की कोशिश की। उन्होंने अपने ट्वीट में स्कर्ट पहनी कुछ छात्राओं की फोटो पोस्ट की थीं और उनके बारे में लिखा कि यह 1960 के दशक के अफगानिस्तान के कॉलेज का दृश्य है लेकिन धर्मांधता ने आज कहां पहुंचा दिया। उन्होंने आगे लिखा कि आज वहां महिलाएं गुलामी व बुर्का में कैद हो गई हैं और भारत भी इसी ओर बढ़ रहा है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, तालिबान ने महिलाओं के लिए सर से पैर के अंगूठे तक बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया है, यही नहीं महिलाओं की शिक्षा के दुश्मन तालिबान ने हेरात की यूनिवर्सिटी से लड़कियों को बाहर निकालना शुरू कर दिया है, काबुल यूनिवर्सिटी में महिलाओं को बगैर पुरूष के घर वापिस जाने से रोक दिया गया है, कंधार में महिला हेल्थ सेंटर बंद कर दिए गए हैं. अगर महिलाएं बिना बुर्के के घर से बाहर निकलेंगी तो तालिबान उन्हें कड़ी सजा देगा, सजा के तौर पर गोली भी मारता है.

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