जिस काम की आज आवश्यकता है, या जिस कार्य को आज ही पूर्ण हो जाना चाहिए-उसके लिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि वह आज ही पूर्ण हो जाना चाहिए। आज के कार्य को कल के भरोसे छोडऩा उचित नही, क्योंकि कल को जब सूर्यदेव आकर नमस्कार करेंगे तो उनके साथ ही कल के हमारे कार्य भी आ उपस्थित होंगे। इसलिए कल के कार्यों की सूची में आज के कार्यों को सम्मिलित करके कल की सूची को अनावश्यक लंबी मत करें। हां, यदि आज की कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि कार्य कल पर छोडऩा अनिवार्य और अवश्यम्भावी हो गया तो उसे कल पर छोड़ दें, लेकिन कल के विषय में उसे इतना ना छोड़ें कि आने वाला कल भी उस एक कार्य में ही व्यतीत हो जाए।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम से हमारे भीतर आज भी उबाल आ जाता है। उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य भारत की स्वराज्य प्राप्ति को बना लिया था। इसलिए अपने अपने भाषणों में जब वह ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्घ अधिकार है’ का उद्घोष करते थे तो लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। एक सभा में उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर एक सज्जन ने उनसे कहा कि आप जैसे विद्वान को राजनीति के झमेले में नही पडऩा चाहिए। आपको अपना अधिक समय किसी ऐतिहासिक खोज कर देना चाहिए, ताकि लोगों को नये नये तथ्यों से तथा सत्यों से परिचित कराया जा सके।
इस पर तिलक महोदय ने उस सज्जन से कहा कि अपने देश में ऐतिहासिक खोज करने वाले विद्वानों की कमी नही है। स्वराज्य की प्राप्ति के पश्चात कितने ही तिलक उस कार्य को पूर्ण करने के लिए उत्पन्न हो जाएंगे। आज तो पहन्ली प्राथमिकता स्वराज्य के लिए संघर्ष करने की है, उसी के लिए लडऩे की है, उसी के लिए पुरूषार्थ करने की है। यदि मैंने स्वराज्य की साधना को मध्य में छोडक़र ऐतिहासिक खोजों पर कार्य करना आरंभ कर दिया तो स्वराज्य अधिक आवश्यक कार्य यही है कि हम अपनी सारी योग्यता शक्ति और विद्वत्ता स्वराज्य की प्राप्ति में लगा दें। हमारी सारी शक्ति, सारी ऊर्जा बस एक ही केन्द्र पर व्यय हो। हमारा ध्यान बगुले की भांति केवल अपने शिकार पर ही होना चाहिए। हम भटकें नही अन्यथा सारे पुरूषार्थ पर पानी फिर जाएगा।
तिलक के ऐसे ओजस्वी विचारों को सुनकर वह सज्जन अपना सर्वस्व देश सेवा और स्वराज्य की साधना के लिए होम करके तिलक जी के साथ उनके स्वराज्य संघर्ष में हो लिए।
यदि फ्रांस 1789 में अपने शासकों के खिलाफ पूर्ण मनोयोग से क्रांति के पथ पर न उठ खड़ा होता तो क्या फ्रांस क्रूर राजशाही के क्रर फंदों से मुक्त हो सकता था? कदापि नही। इसी प्रकार रूस का उदाहरण है, वहां भी जब क्रांति के लिए सारा राष्ट्र मचल उठा तो राष्ट्रीय एकाग्रता ने वहां भी नया इतिहास 1917 में लिख दिया।
श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को ये ही तो कहा कि इस समय अपनी शक्ति और ऊर्जा को किसी मोहादि के कारण विखंडित मत कर, बल्कि पूर्ण मनोयोग से एकाग्रता उत्पन्न कर और कत्र्तव्य को पहचानकर अपने एक लक्ष्य पर कार्य कर। अर्जुन ने श्रीकृष्ण के इस उपदेश को हृदयंगम किया तो इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से लिखा गया।
भारत में बाबर आया। अपने देश में वह अपना सब कुछ खो चुका था। उसके लिए भारत अपने भाग्य के परीक्षण का एक परीक्षा भवन था। राणा सांगा से जब उसकी सेना का सामना हुआ तो उसकी सेना के पैर उखड़ गये। लेकिन बाबर को पता था कि यदि यहां से पैर उखड़ गये तो फिर कहीं कोई गति मोक्ष नही है। इसलिए अपनी सेना को बहुत ही उत्साही भाषण के माध्यम से समझाया कि पूर्ण मनोयोग से शत्रु पर टूट पड़ो, तुम्हारी एकाग्रता तुम्हें निश्चय ही सफलता दिलाएगी। और यही हुआ। सेना में एकाग्रता आते ही मैदान बाबर के हाथ लगा। उसने कुछ घंटों में ही इतिहास पलट दिया।
एकाग्रता के अभ्यास के लिए विद्यार्थी जीवन ही सर्वोत्तम होता है। इसी काल से ही हमें एकाग्रता या अभ्यास बढ़ाना चाहिए और धीरे-धीरे इसे अपने जीवन का एक अमिट संस्कार बना लेना चाहिए।
मुख्य संपादक, उगता भारत