हंस उड़ेगा ताल से,
नाम बदल फिर आय।
जैसी करनी कर चला,
वैसी योनि पाय॥1483॥
व्याख्या:- यह क्षणभंगुर संसार है। हंसरूपी आत्मा तालरूपी शरीर से एक दिन प्रयाण करेगी यह शाश्वत सत्य है। आवागमन का क्रम यहां निरंतर चल रहा है। नाम,स्थान और जन्म को सिवाय ईश्वर के और कोई नहीं जानता है। कर्माशय के आधार पर जीवात्मा पुनः संसार में आती है। बस सिर्फ अंतर इतना है कि कर्मों के आधार पर जीवात्मा का नाम, स्थान और जन्म बदलता रहता है। कोई थलचर बनता है, कोई जलचर बनता है, कोई नभचर बनता है, कोई साधारण मनुष्य बनता है, तो कोई श्रीमन्तो के कुल में जन्म लेता है। कर्माशय के आधार पर ही जीवात्मा को आयु- योनि, भोग प्राप्त होते हैं। इसलिए कर्म को सुकर्म बनाओ ताकि तुम्हें आयु-योनि, भोग पुनर्जन्म में श्रेष्ठ मिले।
भाव शरीर मेला हुआ,
तो जीवन बेकार।
चादर जाकी उजली।
पावे प्रभु का प्यार॥1484॥
व्याख्या:- जीवात्मा को तीन प्रकार के शरीर प्राप्त हैं – स्थूल शरीर,सूक्ष्म शरीर तथा अतिसूक्ष्म शरीर, इसे ही भाव-शरीर अथवा कारण-शरीर भी कहते हैं। इस कारण शरीर में ही जीव का स्वभाव बसता है। प्राण और चित्त इसके साथ रहते हैं।ठीक उसी प्रकार जैसे विमान में फ्लाइट डाटा रिकॉर्ड (ब्लैक बॉक्स) रहता है।जैसे ब्लैक बॉक्स में सारी उड़ान का विवरण रहता है, ठीक इसी प्रकार कारण शरीर में पूरे शरीर के कर्मों का लेखा-जोखा रहता है। यदि मनुष्य का जीवन सत् कर्मों में बिताता तो संसार में आना सार्थक रहा और यदि उसका जीवन कुकर्मों में बीता तो संसार में आना निरर्थक रहा।यहां चादर से अभिप्राय भावशरीर से है। यह चादर मैली नहीं होनी चाहिए अर्थात् इस पर पापों के काले दाग नहीं होने चाहिए। यह चादर तो बेदाग और सूर्य की धूप की तरह धवल और मनोरम होनी चाहिए। जिस का भावशरीर ऐसा श्वेत होता है, निष्कलंक होता है, वह प्रभु का प्रिय पात्र होता है। उसके संकल्पों की रक्षा परमात्मा स्वयं करते हैं। ऐसा व्यक्ति संलल्प सिद्ध पुरुष होता है क्योंकि उसके सिर पर परमपिता परमात्मा का वरद-हस्त होता है।अतः भाव- शरीर ,कारण-शरीर को सर्वदा पवित्र रखिए।
क्रमशः