यज्ञ से अनेक असाध्य रोगों से मिल सकती है मुक्ति : आचार्य विद्या देव
ग्रेटर नोएडा। ( अजय आर्य /आर्य सागर खारी) यहां पर गुरुकुल मुर्शदपुर में चल रहे चतुर्वेद पारायण महायज्ञ में नित्य प्रति की भांति प्रवचन करते हुए आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य विद्या देव जी महाराज ने कहा कि सन्ध्योपासनाविधि के अनुसार दूसरा महायज्ञ अग्निहोत्र-देवयज्ञ है। अग्निहोत्र यज्ञ का विधान वेदों में है। वेद मन्त्रों के आधार पर ही ऋषि दयानन्द ने दैनिक व विशेष यज्ञों का विधान किया है। वेद ईश्वरीय ज्ञान होने से वेद मन्त्रों में की गई ईश्वराज्ञा का पालन करना सभी मनुष्यों का परम कर्तव्य है। जो मनुष्य ईश्वराज्ञा का पालन करता है, ईश्वर से उसे सुख प्राप्त होता है और जो नहीं करता वह मन्दमति दुःखों से संत्रस्त रहता है।
उन्होंने कहा कि पंचमहायज्ञविधि में ऋषि दयानन्द ने दैनिक यज्ञ करने के पक्ष में वेद एवं मनुस्मृति आदि से प्रमाण प्रस्तुत किये हैं और यज्ञ विषयक आवश्यक निर्देश करने सहित यज्ञ में घृत एवं साकल्य से दी जाने वाली आहुतियों के मन्त्रों को भी दिया है। यज्ञ करने से वायुमण्डल शुद्ध होता है। वायु के अनेक दोष दूर होते हैं। दुर्गन्ध का नाश होता है। दुर्गन्ध आदि से होने वाले रोग दूर होते व अनेक असाध्य रोगों से बचाव होकर विद्यमान रोगों में भी लाभ होता है। यज्ञ करने से यज्ञकर्ता सहित यज्ञ से परिष्कृत वायु में जो भी प्राणी श्वांस लेते हैं, उनको भी लाभ होता है। ऋषि दयानन्द जी के अनुसार अग्निहोत्र-यज्ञ से वायु एवं वर्षा-जल की शुद्धि होती है, जिससे अन्न भी शुद्ध प्राप्त होता है। इससे मनुष्य के शरीर में रक्त एवं वीर्य आदि भी शुद्ध बनते हैं और सन्तान भी श्रेष्ठ शरीर व संस्कारों वाली उत्पन्न होती हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि यज्ञ करने से अनेक आध्यात्मिक लाभ भी होते हैं। यज्ञ एक वैज्ञानिक अनुष्ठान है। इससे अनेक लाभ है। सभी मनुष्यों को यज्ञ को अवश्य करना चाहिये। अग्निहोत्र विषयक ऋषि दयानन्द का उपदेश है ‘केशर, कस्तूरी आदि सुगन्ध, धृत, दुग्ध आदि पुष्ट, गुड़, शर्करा आदि मिष्ट, तथा सोमलतादि रोगनाशक ओषधी, जो ये चार प्रकार के बुद्धि-वृद्धि, शूरता, धीरता, बल और आरोग्य करने-वाले गुणों से युक्त पदार्थ है, उनका होम करने से पवन और वर्षा-जल की शुद्धि करके शुद्ध पवन और जल के योग से पृथिवी के सब पदार्थों की जो अत्यन्त उत्तमता होती है, उससे सब जीवों को परम सुख होता है। इस कारण उस अग्निहोत्र कर्म करनेवाले मनुष्यों को भी जीवों के उपकार करने से अत्यन्त सुख का लाभ होता है। तथा ईश्वर भी उन मनुष्यों पर प्रसन्न होता है। ऐसे-ऐसे प्रयोजनों के अर्थ अग्निहोत्रादि का करना अत्यन्त उचित है।’