भारत की अध्यक्षता में बीते सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई थी। इस बैठक में भारत ने दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर चर्चा कराई थी, जिसे लेकर अब चीन आगबबूला हो गया है। बुधवार को चीन ने कहा कि विश्व निकाय की उच्चाधिकार प्राप्त इकाई यानी सुरक्षा परिषद विवादास्पद मुद्दे पर चर्चा करने का उपयुक्त स्थान नहीं है। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूनएनएससी) की खुली चर्चा के बाद भारत के अध्यक्षीय वक्तव्य में चीन को कड़ा संदेश देने वाला बयान भी एनयएससी के सदस्यों ने स्वीकार किया था।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में समुद्री सुरक्षा पर हुई उच्चस्तरीय खुली परिचर्चा में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, केन्या के राष्ट्रपति उहरु केन्यात्ता और वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चीन्ह तथा अन्य वर्चुअल रूप से शामिल हुए थे। बैठक में अमेरिका और चीन दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर आपस में भिड़ गए थे। इसमें समुद्री सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने को मान्यता देने वाले अध्यक्षीय बयान को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था। सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक चीन ने प्रस्ताव का समर्थन किया था।
बैठक के संबंध में अपनी पहली प्रतिक्रिया में चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सुरक्षा परिषद उपयुक्त स्थान नहीं है। चीनी विदेश मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सुरक्षा परिषद ने समुद्री सुरक्षा पर एक खुली परिचर्चा की और पूर्व की सहमति के आधार पर एक अध्यक्षीय बयान स्वीकार किया।
समुद्री सुरक्षा मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने सामान्य तौर पर जोर देकर कहा कि समुद्री सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती। जलदस्युओं (पाइरेट्स) और अन्य समुद्री अपराधों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने का समर्थन किया। कहा कि चीन समुद्री सुरक्षा को अत्यंत महत्व देता है। साथ ही पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग वाली सामान्य समुद्री सुरक्षा अवधारणा की पैरवी करता है। समानता, पारस्परिक हित, निष्पक्षता, न्याय, संयुक्त योगदान और साझा लाभों को दर्शाने वाले समुद्री सुरक्षा ढांचे के निर्माण के लिए कटिबद्ध है।
ब्लिंकन द्वारा की गई आलोचना पर आपत्ति जताई
चीन ने साथ ही दक्षिण चीन सागर पर बीजिंग के दावों तथा भड़काऊ कदमों पर ब्लिंकन द्वारा की गई आलोचना पर कड़ी आपत्ति की। मंत्रालय ने कहा कि दक्षिण चीन सागर मुद्दे पर अमेरिकी प्रतिनिधि की टिप्पणियों के जवाब में चीनी प्रतिनिधि ने मौके पर ही कड़ा विरोध किया। उन्होंने अमेरिका के अनुचित आरोपों को पूरी तरह खारिज किया। गौरतलब है कि ब्लिंकन ने चीन पर परोक्ष हमला करते हुए कहा था कि दक्षिण चीन सागर में गैर कानूनी दावों को आगे बढ़ाने के लिए हमने पोतों के बीच खतरनाक मुठभेड़ और भड़काऊ कार्रवाई देखी है। उन नियमों की रक्षा करना प्रत्येक सदस्य देश की जिम्मेदारी है जिनपर हम समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सहमत हुए हैं।
बता दें कि पंद्रह देशों के निकाय द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए अध्यक्षीय वक्तव्य (पीआरएसटी) में सुरक्षा परिषद ने पुष्टि की है कि ’10 दिसंबर 1982 को अमेरिका में हुए संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) में परिलक्षित अंतरराष्ट्रीय कानून समुद्री गतिविधियों पर लागू होने वाले कानूनी ढांचे को निर्धारित करता है।’ भारत के इस अध्यक्षीय वक्तव्य को सुरक्षा परिषद द्वारा अपनाए जाने को चीन के लिये कड़ा संदेश माना जा रहा है, जो दक्षिण चीन सागर समेत विभिन्न समुद्री क्षेत्रों पर अपना दावा जताता रहा है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है।
(स्रोत : एजेंसी)
मुख्य संपादक, उगता भारत