‘उगता भारत’ की तीसरी वेबिनार हुई संपन्न : सभी वक्ताओं ने एकमत से स्वीकार किया कि गांधीवाद के तले दबाया गया क्रांतिकारी आंदोलन

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ग्रेनो। (अजय आर्य ) ‘उगता भारत’ समाचार पत्र की ओर से आयोजित की गई अपनी तीसरी वेबीनार में उपस्थित रहे सभी वक्ताओं ने एकमत से स्वीकार किया कि गांधीवादी आंदोलन के बोझ तले देश के क्रांतिकारी आंदोलन को दबा दिया गया।
“गांधीजी और भारतीय स्वाधीनता आंदोलन” विषय पर कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में समाचार पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य ने कहा कि गांधी जी ने 1921 में असहयोग आंदोलन ,1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। इस प्रकार उनके आंदोलनों का क्रम लगभग हर 10 वर्ष बाद रहा। जबकि देश के क्रांतिकारी आंदोलन के नेता प्रत्येक दिन देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। इस प्रकार गांधीजी के आंदोलनों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करना उचित नहीं है । देश के क्रांतिकारी आंदोलन को भी
इतिहास में उचित स्थान दिया जाना अपेक्षित है।
मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए ”18 57 की क्रांति के अमर शहीद धन सिंह कोतवाल गुर्जर शोध संस्थान मेरठ उत्तर प्रदेश” के चेयरमैन और जाने-माने समाजसेवी डॉ तस्वीर चपराना ने अपने संबोधन में कहा कि क्रांतिकारियों के परिवार से होने के नाते वह ये भली प्रकार समझते हैं कि क्रांतिकारियों की किस प्रकार उपेक्षा करते हुए वर्तमान भारतीय इतिहास लिखा गया है? हम गांधी जी के आंदोलन को भी सम्मान देना चाहते हैं परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि देश के क्रांतिकारियों को पूरी तरह भुला दिया जाए। उन्होंने 18 57 की क्रांति के अनेकों वीरों के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उस समय देश भक्ति के जिस परिवेश से यह क्रांति आरंभ हुई थी, उसने ही आगे चलकर सुभाष और पटेल का निर्माण किया। जिनके कारण देश आजाद हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए समाचार पत्र के संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि गांधीजी एक दोगले व्यक्तित्व के नेता थे। जिन्होंने 1930 तक अंग्रेजों की चाटुकारिता करते हुए उन्हें अपना माई बाप माना और अंग्रेजों के भारत में शासन को एक वरदान के रूप में मानते रहे। इसके बाद उन्होंने 1942 तक अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी सी राजगोपालाचारी को माना , परंतु उसके बाद क्रिप्स मिशन पर अपने विरोध में जाते हुए सी राजगोपालाचारी को देखकर उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नेहरू को घोषित कर दिया। उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे को अपना भाई माना और सर सैयद अहमद खान जैसे  द्विराष्ट्रवाद का समर्थन करने वाले नेताओं को सदा गले लगाते रहे। गांधीजी ने जानबूझकर शहीद भगत सिंह की फांसी को रुकवाने में लापरवाही की।
देश में गांधी और गांधीवाद की धारणा के चलते ही दब्बू राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ। यदि हमारे देश के क्रांतिकारियों को उचित स्थान और सम्मान दिया गया होता तो देश एक दबंग राष्ट्र के रूप में दुनिया में कब का स्थान प्राप्त कर गया होता।
इसी क्रम में समाजशास्त्र के प्रोफेसर और विद्वान डॉ राकेश राणा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधी जी ने कभी भी अपने समक्ष किसी दूसरे नेतृत्व को पनपने नहीं दिया। उन्होंने कई महान व्यक्तित्वों को अपनी छाया नीचे रखने में सफलता प्राप्त की। जिससे देश का भला नहीं हुआ । डॉ राणा ने कहा कि देश को सही दिशा देने के लिए हमें इतिहास को भी सही करना पड़ेगा इतिहास को इतिहास की भाषा देना समय की आवश्यकता है।
पत्र के समाचार संपादक मनोज चतुर्वेदी ‘शास्त्री’ ने अपने ओजस्वी विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधीजी वर्तमान भारत के अकबर थे। जिन्होंने तुष्टीकरण की नीति के चलते नई नई धारणाओं को देश पर थोपने का अनुचित प्रयास किया। उनके इन अनुचित प्रयासों को इतिहास में स्थान देना और देश को चरखे मिली आजादी के गीत गाते रहने से देश का कभी भला नहीं हो सकता। कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे पत्र के सह संपादक राकेश आर्य (बागपत) ने अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि गांधी जी अपने क्रांतिकारी लोगों को सदा उपेक्षित किया और उनके चेलों ने बाद में क्रांतिकारियों को इतिहास से निकाल कर बाहर फेंक दिया। उन्होंने बागपत के खेकड़ा की रहने वाली नीरा आर्य जैसी क्रांतिकारी महिला का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका नाम तक कहीं भी नहीं लिया गया ,जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।
वेबिनार में पत्र के संरक्षक राजेंद्र अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस बात पर सहमति जताई कि देश का गौरवशाली इतिहास फिर से लिखा जाए । जबकि प्रमोद खीरवाल ने भी गांधी जी के योगदान को बढ़ा चढ़ा कर दिखाए जाने पर असहमति व्यक्त की। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार आरबीएल निगम, पत्र के संरक्षक मंडल के वरिष्ठ सदस्य चाहत राम,  पत्र के कार्यालय प्रबंधक अजय आर्य, सह संपादक श्रीनिवास आर्य और तकनीकी सहयोगी शिवप्रसाद कोनाले सहित अनेकों विद्वानों व सहयोगियों ने अपनी सहभागिता और उपस्थिति दर्ज की।

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