हिंदुओं का चोला पहनो, हिंदू लड़कियों को फसाओ और शुरू करो माइंड वाश

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                                                                                                                     जेएमबी मॉड्यूल सक्रिय
नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में हिन्दू विरोधी पार्टियों द्वारा बनाये शाहीन बागों में लगे नारे हिन्दुत्व विरोधी नारों की गूंज का असली मकसद सामने आ रहा है। जैसाकि संभावनाएं व्यक्त की जा रही थीं कि शाहीन बागों में जमावड़ा इन्ही अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्यों का है, सच हो रही हैं। किसान आंदोलन के पीछे भी यही मकसद है, लेकिन जयचंद जनता को भ्रमित कर रहे हैं। समय आ गया है कि देशप्रेमी जनमानस चाहे वह किसी भी धर्म, मजहब, जाति अथवा समुदाय से हों, इनका विरोध करना चाहिए, क्योकि जो देश का नहीं हुआ, जनता का क्या होगा?

पिछले वर्ष ढाका में आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश की सदस्य आएशा जन्नत उर्फ प्रज्ञा देबनाथ के गिरफ्तार होने के बाद पश्चिम बंगाल में चल रहे धर्मांतरण और माइंडवॉश के घिनौने खेल का पर्दाफाश हुआ था। आएशा एक हिंदू लड़की थी जिसका 2009 में धर्मांतरण हुआ और वह करीब दस साल बाद आतंकी संगठन की सक्रिय सदस्य होने के कारण ढाका में पकड़ी। इसी क्रम में इसी संगठन के तीन सदस्य हाल में फिर बंगाल से पकड़े गए और जब कोलकाता पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने इनसे पूछताछ की तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक जानकारी निकल कर सामने आई और ये भी पता चला कि आखिर प्रज्ञा जैसी लड़कियाँ आएशा में कैसे तब्दील हो रही हैं। 

दरअसल, पिछले माह कोलकाता पुलिस की एसटीएफ ने नजीउर रहमान पावेल, मेकैल खान और रबीउल इस्लाम को गिरफ्तार किया था। ये तीनों जेएमबी के संचालक थे और मौका पाकर भारत में घुस आए थे। इसलिए इनकी गिरफ्तारी बड़ी कामयाबी मानी गई। मगर जब पूछताछ हुई तो तस्वीर कुछ और ही थी। हकीकत में आतंकी संगठन से जुड़े यह तीनों सदस्य न केवल अपनी असल पहचान छिपाकर बंगाल के रिहायशी इलाके हरिदेवपुर में अपार्टमेंट लेकर रह रहे थे बल्कि हिंदू लड़कियों को निशाना बना रहे थे ताकि इन्हें एक सेफ पहचान मिल सके। इन्होंने शक की नजरों से बचने के लिए खुद को व्यापारी, फल विक्रेता और मच्छरदानी बेचने वाले के तौर पर पेश किया हुआ था। इनमें नजीउर ने अपना नाम जयराम बेपारी रखा था और फिर मैकेल के साथ दो हिंदू महिलाओं को दोस्ती के जाल में फँसाकर उनसे शादी की योजना बना रहा था।

हिन्दू चोला ओढ़ आतंकी चला रहे मॉडूयल

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में कोलकाता स्पेशल टास्क फोर्स के अधिकारी कहते हैं, “आतंकी समूहों के लिए धर्म अब वर्जित नहीं है, बल्कि वे इसे अपनी पहचान छिपाने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। धर्म बदलना अब इन आकाओं के लिए कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, बल्कि वे इंटेलिजेंस को चकमा देने के लिए इसका प्रभावी ढंग से उपयोग कर रहे हैं।”

अधिकारी बताते हैं कि इन आतंकियों के लिए शादी महत्वपूर्ण और प्रभावी साधन है। इससे इन्हें भारतीय पहचान मिलने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही इन्हें एक स्थानीय पहचान भी प्राप्त होती है जो इनके लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। इससे स्थानीय लोग और स्वाभाविक रूप से पुलिस उनके अस्तित्व से अनजान रहती है।

बेरोजगारी का उठाते लाभ

रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी में बढ़ी बेरोजगारी का आतंकी संगठनों ने खूब फायदा उठाया। न केवल जेएमबी, अंसारुल्लाह गुट, बल्कि आईएस जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी गुट ने भी युवाओं को निशाना बनाते हुए अपना जाल फेंका। पुलिस की टीम ने स्वयं उन तीनों आतंकियों से पूछताछ के बाद बताया कि ये लोग कभी आमने-सामने मिलकर तो कभी ऑनलाइन बेरोजगार लड़के-लड़कियों को निशाना बना रहे थे।

बंगाल पुलिस में कम हैं स्लीपर सेल से निपटने वाले कांस्टेबल 

पूछताछ के बाद निकलकर आई जानकारी ने जाँच अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है। राज्य के गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मेधावी बेरोजगारों का ब्रेनवॉश केवल जमीनी स्तर पर ही पुलिस द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए कॉन्सटेबल स्तर के कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मगर, दुर्भाग्य से बंगाल में ऐसा नहीं हुआ। बंगाल पुलिस में उन जवानों की कमी है जो स्लीपर सेल के खतरे से निपटने के लिए प्रशिक्षित हैं।

कोलकाता के छोटे गांव की प्रज्ञा कैसे बनी आएशा जन्नत 

जेएमबी की आएशा भी कोलकाता के धनियाकाली पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले गाँव पश्चिम केशाबपुर की रहने वाली थी। पढ़ाई के दौरान उसकी सबसे अच्छी दोस्त मुस्लिम थी। उसके प्रभाव में बेहद खुफ़िया तरीके से प्रज्ञा (आएशा) का धर्म परिवर्तन कराया गया।

साल 2009 के दौरान धोखे से उसे इस्लाम धर्म कबूल कराया गया और फिर उसका नाम बदलकर रखा गया आएशा जन्नत मोहोना। इसके बाद उसमें मजहबी कट्टरता भरकर जेएमबी की सदस्यता दिलाई गई और काम सौंपा गया कि वह भी हिंदू लड़कियों को इस्लाम कबूल करने का लालच दे।

आएशा ने ये सब किया भी। उसने कट्टर मौलवी सलफी से हिंदू लड़कियों का परिचय करवाया और फिर उनके धर्मांतरण पर काम किया। आएशा को संगठन से फंड इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी भी मिली थी। लेकिन उसका मुख्य काम यही था कि सबसे पहले वह ऐसे युवाओं की पहचान करे जिन्हें आसानी से कट्टरपंथी बनाया जा सकता है। इसके बाद उन्हें जेएमबी की सदस्यता दिलवाना था।

साल 2020 में ही बंगाल के मुर्शिदाबाद में पुलिस ने इस्लामिक आतंकी और जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश के टॉप कमांडर अब्दुल करीम उर्फ बोरो अब्दुल करीम को गिरफ्तार किया था। वह लंबे समय से देश भर में पहचान छिपाकर घूम रहा था। वह बोधगया विस्फोट में शामिल धुलियन मॉड्यूल का भी मेन लीडर था। उसका काम भी युवाओं को भ्रमित करके संगठन से जोड़ना था।

बेंगलुरु से गिरफ्तार हुआ अबू इब्राहिम

ऐसे ही साल 2020 में बेंगलुरु से भी एक गिरफ्तारी हुई। ये गिरफ्तारी ISIS संचालकों में से एक की थी। इसकी पहचान अबू इब्राहिम के तौर पर हुई। जो कभी अर्थशास्त्र का मेधावी छात्र था लेकिन बाद में सुजीत चंद्र देबनाथ बनकर बेंगलुरु में एक राजमिस्त्री के सहायक के तौर पर काम करके अपनी पहचान छिपाकर रहने लगा।

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