हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवलास्वतंत्रता पुकारती।।
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञा सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढे चलो बढे चलो ।।
अराति सैन्य सिन्धु में , सुबाडवाग्नी से जलो ।।
प्रवीर हो जाई बनो, बढे चलो, बढे चलो – –
श्याम लाल गुप्त परिषद की लेखनी के साथ तो हर तरफ़ यही आवाज़ गूंज उठी-
“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा।”
मित्रों ! आज देश की जो परिस्थितियां बनी हुई है , उनमें भी सर्वत्र एक आवाहन है , एक चुनौती है ,चैलेंज है । हमारे लिए सर्वत्र एक पुकार है , ललकार है , एक आवाहन है – क्रांति का ,और उठ खड़े होकर देशद्रोहियों , देश विरोधियों और राष्ट्रघातियों को कड़ा पाठ पढ़ाने का । मां भारती आज भी बंधनों में जकड़ी खड़ी है । कहीं ईसाइयत इसको जकड़ रही हैं , तो कहीं इस्लाम अपना विकराल रूप दिखा रहा है । देशद्रोहियों को राजनीति के गद्दार लोग अपना समर्थन देकर यह स्पष्ट कर रहे हैं कि देश में आज भी जयचंद की परंपरा बनी हुई है । ऐसे में फिर हमें किसी दिनकर की, किसी मैथिलीशरण गुप्त की, किसी प्रेमचंद की आवश्यकता है । फिर हमें उनकी लेखनी से निकलने वाले गरम लहू से बनने वाले सुभाष चंद्र बोस की आवश्यकता है , भगत सिंह की आवश्यकता है ,चंद्रशेखर और बिस्मिल की आवश्यकता है ।
पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने भी अपनी स्वतंत्रता पर कविताओं के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करते हुए लिखा :-
एक घड़ी भी भी परवशता,
कोटि नरक के सम है।
पल पर की भी स्वतंत्रता,
सौ स्वर्गों से उत्तम है ।।
श्री जगदम्बा प्रसाद मिश्र “हितैषी” ने क्रांतिकारियों और बलिदानियों के प्रति अपनी श्रद्धा और राष्ट्र की निष्ठा व्यक्त करते हुए जब यह पंक्तियां लिखी थीं तो उन्हें भी नहीं पता होगा कि ये पंक्तियां उनके जाने के बाद भी किस प्रकार लोगों के भीतर देशभक्ति का जज्बा पैदा करती रहेंगी ? :–
“शहीदों के मजारों पे लगेंगे हर वर्ष मेले ।
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।।
यज्ञ वेदी फिर सजी हुई है , क्रांति की धूम के लिए । समझ लो कि स्वतंत्रता आंदोलन को तैयार करने की सारी भूमिका बन चुकी है।अग्नि प्रचंड करने भर की देर है । शत्रु फिर फन फैला रहे हैं । यदि हम शांत रह गए या इस विकराल स्थिति के विरुद्ध उठ खड़े होने का साहस खो बैठे तो बड़े संघर्ष के पश्चात जिस आजादी को प्राप्त किया था , वह हमसे फिर गुम हो सकती है।
आज के हमारे कवियों का और साहित्यकारों का यह महती दायित्व बनता है कि वह इस देश के बारे में सोचें और उसी परंपरा को जीवित रखें जो मैथिलीशरण गुप्त की परंपरा है , प्रेमचंद की परंपरा है , नीरज की परंपरा है, और यह स्मरण रखें कि यहां पर राम का चरित्र लिखने के लिए वाल्मीकि तब मिलता है जब राम इस योग्य होता है कि कोई उसकी बारे में लेखनी चला सके। कहने का अभिप्राय है कि यहां पर चाटुकारिता को अपना उद्देश्य नहीं माना जाता और दरबारी कवि होना यहां पर अभिशाप है ।यहाँ दरबार कवि ढूंढता है , कवि दरबारों को नहीं ढूंढते । यहां पर कवि किसी मोह के वशीभूत होकर नहीं लिखते । यहां तो राष्ट्र जागरण के लिए लिखा जाता है , राष्ट्रोत्थान के लिए लिखा जाता है , राष्ट्र – उद्धार के लिए लिखा जाता है । क्योंकि सब कवि अपना यह दायित्व समझते हैं कि राष्ट्र जागरण , राष्ट्रोद्धार और राष्ट्रोत्थान ही उनकी लेखनी का एकमात्र व्रत है ,एकमात्र संकल्प है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत