भेड़ के पीछे भेड़ न बने।
विचारशून्य हिन्दू अर्थात लाभदायक मूर्ख
Useful Idiots (लाभदायक मूर्ख ) एक विश्व-विख्यात मुहावरा है। इसी नाम से बी.बी.सी. ने एक ज्ञानवर्द्धक डॉक्यूमेंटरी भी बनाई है। इस कवित्वमय मुहावरे के जन्मदाता रूसी कम्युनिज्म के संस्थापक लेनिन थे। वे बुद्धिजीवी जो अपनी किसी हल्की या भावुक समझ से कम्युनिस्टों की मदद करते थे उन्हे यूजफूल ईडियट कहा था।
आज विचारशून्य हिन्दू यही यूजफूल ईडियट बन गया है। अल्लाह मौला वाले कथावाचक और उनका समर्थन करने वाले अरबपति गुरुजी सब चाहते हैं कि हिन्दू विचार शून्य बना रहे। इसी कारण हिन्दू युवा नास्तिक हो रहा है। इन करोड़पति धर्म ध्वजी धंधेबाजों का क्या है? हालत बिगड़े तो राज्य बदल देंगे। ज्यादा बिगड़े तो अमेरिका चले जाएंगे।
यदि उपदेशक सीधी सरल बात करे तो भक्तों की संख्या बेहद कम होगी आम हो खास मनुष्य को तो चमत्कार चाहिए। नौकरी चाहिए, व्यापार चाहिए, किसी को संतान चाहिए तो किसी को बीमारी से छुटकारा, जो हाथ से गया उसके लिए बाबा और जो पास में हैं वह बचा रहे उसके लिए भी बाबाओं से मन्त्र चाहिए। अंधश्रद्धा की पराकाष्ठा देखिये! नौजवान बेटियों को अकेले इनके आयोजनों तक में भेजने से लोग नहीं हिचकते। सड़क पर हाथ की सफाई दिखाने वाला मदारी और स्टेज पर हाथ की सफाई दिखाने वाला मैजीशियन है। परंतु धर्म का चोला पहन कर हाथ की सफाई दिखाने वाला सत्य साई बाबा के नाम से पूजा जाता है और 1 लाख करोड़ से अधिक की सम्पत्ति इकठ्ठा करता है।
परिणाम क्या होता है?
1- पॉल दिनाकरण प्रार्थना की ताकत से भक्तों को शारीरिक तकलीफों व दूसरी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। पॉल बाबा अपने भक्तो को इश्योरेंस या प्रीपेड कार्ड की तरह प्रेयर पैकेज बेचते हैं। यानी, वे जिसके लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं, उससे मोटी रकम भी वसूलते हैं। मसलन 3000 रुपये में आप अपने बच्चों व परिवार के लिए प्रार्थना करवा सकते हैं। पॉल दिनाकरन जो कि एक इसाई प्रेरक हैं उनकी संपत्ति 5000 करोड़ से ज्यादा है,बिशप के.पी.योहन्नान की संपत्ति 7000 करोड़ है, ब्रदर थान्कू (कोट्टायम , करेला ) की संपत्ति 6000 हज़ार करोड़ से अधिक है.इनके पास जाने वाले अधिसंख्य हिन्दू ही हैं। हिन्दू ही इनकी दया की गाथा गाते हैं। ईसाई दयालुता केवल तभी तक है जब तक कोई व्यक्ति ईसाई नहीं बनता. यदि इन्हें लोगों की भूख, गरीबी और बिमारी की ही चिन्ता होती तो अफ्रीका महाद्वीप के उन देशों में जाते जहाँ 95% जनसंख्या ईसाई है।
2 – सेक्युलरिज़्म का कीड़ा हिन्दू को ही अधिक काटता है। एक शहर में कसाईं बाबा का नया मंदिर बना है जिसे कुछ मूर्ख लोग साईं बाबा नाम से जानते हैं,.मंदिर को देख कर लगता है कि इसकी लागत 10 करोड़ रूपए के आस पास होगी. इस कसाई बाबा के मन्दिर पर एक बोर्ड लगा है जिस पर ॐ, क्रॉस, चाँद तारा आदि कुछ चिह्न बने हैं। मुझे समझ नही आया जिस शहर में 98% हिन्दू हों और मन्दिर में दान देने वाले 100% हिन्दू हों वहां पर ये ॐ, क्रॉस, चाँद तारा आदि निशाँ वाले बोर्ड की क्या जरूरत है? इन मन्दिर वालों का ज्ञान विचित्र है. ये सर्वधर्म समभाव की बीमारी हिन्दू को ही क्यों है?
3- भगवा धारी/ सफेदपोश गुरुओं का हाल कितना खराब है। कुछ साल पुरानी बात है। मेरे परिचित पुलिसवाले ने बताया कि कल अम्बाला के पास कुमारस्वामी ( बीज मंत्र वाले) का कार्यक्रम था। इतनी भीड़ थी कि कई देर तक GT रोड पर जाम हो गया। यही कुमारस्वामी जी कभी क्रिसमस मनाते हैं तो कभी अपनी पत्नी से ही निकाह करवाते हैं। बीजमंत्र के नाम पर लोगो को उल्लू बनाते हैं। स्वघोषित जगतगुरु रामपाल हो या गुरुमीत राम रहीम सभी के सभी कितने महान हैं ये आज पता है। परंतु पकड़े जाने से पहले ये भी लाखों लोगों के गुरु जी थे और चमत्कार करते थे। अल्लाह मौला वाले मुरारी लाल की रामायण हो या डबल श्री की सुदर्शन क्रिया या निर्मल बाबा की कृपा सभी के खरीददार विचारशून्य हिन्दू ही हैं।
राम रहीम, रामपाल, कुमार स्वामी, राधे माँ, निर्मल बाबा। यह सूची जितनी चाहो बड़ी कर लो। क्या कारण है पाखंड की यह दुकानें रोज खुलती जा रही है? इस कारण एक ही है। वो है मनुष्य का वेद में वर्णित कर्मफल व्यवस्था पर विश्वास न करना। जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा। यह ईश्वरीय व्यवस्था है। आज इस मूल मंत्र पर विश्वास न कर हर कोई परिश्रम करने से बचने का मार्ग खोजने में लगा रहता है।
एक विद्यार्थी यह सोचता है कि गुरु का नाम लेने से उसके अच्छे नंबर आएंगे। एक व्यापारी यह सोचता है कि गुरु का नाम लेने से व्यापार में भारी लाभ होगा। एक बेरोजगार यह सोचता है कि उसकी गुरु का नाम लेने से सरकारी नौकरी लग जाएगी। एक विदेश जाने की इच्छा करने वाला यह सोचता है कि गुरु का नाम लेने से उसका वीसा लग जायेगा। किसी घर में कोई नशेड़ी हो तो घर वाले सोचते है कि गुरु के नाम से उसका नशा छूट जायेगा। अगर किसी का कोई महत्वपूर्ण काम बन भी जाता है। तो वह उसका श्रेय गुरु के नाम लेने को देता है। न कि अपने पुरुषार्थ को, अपने परिश्रम को देता है। यही प्रवृति अन्धविश्वास को जन्म देती है।
एक दूसरे की सुन-सुन कर लोग भेड़ के पीछे भेड़ के समान डेरों के चक्कर काटना आरम्भ कर देते है। गुरु को ईश्वर बताना आरम्भ कर देते है। एक समय ऐसा आता है कि तर्क शक्ति समाप्त हो जाने पर गुरु की हर जायज़ और नाजायज़ दोनों कथनों में उन्हें कोई अंतर नहीं दीखता। वे आंख बंदकर उसकी हर नाजायज़ मांग का भी समर्थन करते हैं। ऐसा प्राय: आपको हर डेरे के साथ देखने को मिलेगा। दिखावे के लिए हर डेरा कुछ न कुछ सामाजिक सेवा के नाम पर करता है। मगर जानिए धन की तीन ही गति होती है। एक दान, दूसरा भोग और तीसरा नाश। अनैतिक तरीकों से कमाया गया काला धन बहुत बड़ी संख्या में इन डेरों में दान रूप में आता हैं। ऐसे धन का परिणाम व्यभिचार, नशा आदि कुकर्म का होना, कोई बड़ी बात नहीं हैं। ऐसे अवस्था में जब यह भेद खुल जाता है। तो मामला कोर्ट में पहुँचता है। सरकार इन डेरों को वोट बैंक के रूप में देखती है। इसलिए वह इन पर कभी हाथ नहीं डालती। इसलिए सरकार से इस समस्या का समाधान होना बेईमानी कहलायेगी। यही डेरे भेद खुल जाने पर कोर्ट पर दवाब बनाने के लिए अपने चेलों का इस्तेमाल करते है।
यही रामपाल के मामले में हुआ था। यही राम रहीम के मामले में हो रहा हैं। पात्र बदलते रहेंगे। मगर यह प्रपंच ऐसे ही चलता रहेगा। इसका एक ही समाधान है। वह है वैदिक सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार। यह आर्यसमाज की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत में एकमात्र ऐसी हस्ती है जिन्होंने न अपना नाम लेने का कोई गुरुमंत्र दिया, न अपनी समाधी बनने दी, न ही अपने नाम से कोई मत-सम्प्रदाय बनाया। स्वामी दयानन्द ने प्राचीन काल से प्रतिपादित ऋषि-मुनियों द्वारा वर्णित, श्री राम और श्री कृष्ण सरीखे महापुरुषों द्वारा पोषित वैदिक धर्म को पुन: स्थापित किया गया। उन्होंने अपना नाम नहीं अपितु ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ नीज नाम ओ३म का नाम लेना सिखाया। उन्होंने अपना मत नहीं अपितु श्रेष्ठ गुण-कर्म और स्वाभाव वाले अर्थात आर्यों को संगठित करने के लिए आर्यसमाज स्थापित किया। स्वामी दयानन्द का उद्देश्य केवल एक ही था। वेदों के सत्य उपदेश कल्याण हो। वेदों का सन्देश अधिक से अधिक समाज में प्रसारित हो। यही एक मात्र मार्ग है। यही गुरुडम और डेरों की दुकानों को बंद करने का एकमात्र विकल्प हैं।