कम से कम अबू आसिम काजमी से इतना तो सीख लीजिए
🙏बुरा मानो या भला 🙏
—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
मीडिया सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार समाजवादी पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबु आसिम काज़मी ने मुस्लिम धर्मगुरुओं एवं नेताओं संग की गई एक बैठक में मुस्लिम धर्मगुरुओं से अपील की कि संविधान को बचाने के लिए अपना भाई भी विरोधियों के साथ खड़ा हो तो उसे भी भगा दें। यहां उनका ईशारा असदुद्दीन ओवैसी से रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि आजमी किस पर निशाना साध रहे थे लेकिन उनका यह स्टेटमेंट कि “अपना भाई भी विरोधियों के साथ खड़ा हो तो उसे भी भगा दें।” वास्तव में समस्त हिन्दू समाज के लिए एक बहुत बड़ी सीख है। हम हिन्दू एक अरसे से उन तमाम “कथित सेक्युलर बुद्धिजीवी” हिंदूओं को ढो रहे हैं जो लगातार राष्ट्र विरोधी ताकतों के साथ न केवल कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं बल्कि हिन्दू सनातन संस्कृति, संस्कार, सभ्यता और परम्पराओं सहित पवित्र हिन्दू धर्मग्रंथों, ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं का मखौल उड़ाने से भी बाज नहीं आते हैं। तथाकथित सेक्युलरिज्म की आड़ में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने वालों को हमारे इन्हीं “सेक्युलर हिन्दू भाइयों” द्वारा परोक्ष-अपरोक्ष रूप से संरक्षण दिया जाता है।
इस देश में अभिनेता- अभिनेत्रियां, साहित्यकार, शायर-कवि, खिलाड़ी, राजनीतिज्ञ, सोशल एक्टिविस्ट सहित न जाने कितने “कथित बुद्धिजीवी” हैं जिन्होंने मन, कर्म और वचनों से कहीं न कहीं, कभी न कभी भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं सहित हिन्दू आस्थाओं और हिंदुत्व पर गहरी चोट की है।
हिन्दू हितों पर यदा-कदा कुठाराघात करने वाले ऐसे तमाम लोग हैं जो अपने आपको “हिन्दू” कहते हैं, परन्तु उन्होंने शायद ही कभी हिन्दू समाज और वैदिक धर्म के उत्थान के लिये कोई सार्थक और सकारात्मक प्रयास किया हो। हिंदुओं को जातिवाद का दंश देने वाले, उसे आरक्षण की अग्नि में जलाने वाले ऐसे कई महानुभाव इस देश में हैं। और तो और, कई धर्माचार्य जिन्हें “इस्लामचार्य” भी कहा जा सकता है, इसी हिन्दू समाज की देन हैं, जिन्होंने अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए “संत-महात्मा और कथावाचक” जैसे पावन और पवित्र शब्दों का भी घोर अपमान किया है और कर रहे हैं।
लेकिन हम इन सबको लगातार क्यों ढो रहे हैं, यह शायद हम भी नहीं जानते। हम गांधीवाद की कायरतापूर्ण अहिंसात्मक नीतियों को छोड़कर शठे शठयम समाचरेत का सिद्धान्त कब अपनाएंगे।
हमें अबु कासिम काजमी से यह सीख लेनी ही चाहिए कि यदि आपका अपना भाई भी विरोधियों के साथ खड़ा हो तो उसे भी छोड़ देना चाहिए।
आखिर हम कब समझेंगे कि सांप को दूध पिलाने पर भी वह अंततः ज़हर ही उगलता है। हमें उन तमाम विषधरों का मोह छोड़ना ही होगा जो हमारी ही थाली में खाते हैं और हम पर ही गुर्राते हैं।
नीति शास्त्र भी कहता है कि यदि शरीर के किसी अंग में ज़हर फैलने लगे तो तुरन्त उस अंग को काटकर शरीर से अलग कर देना चाहिए, अन्यथा पूरे शरीर में ज़हर फैलने का भय रहता है।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।