ओ३म्
शहीद ऊधम सिंह (जन्म 26-12-1899, बलिदान 31-7-1940, जीवन 40 वर्ष 7 महीने 5 दिन) का आज 81वां बलिदान दिवस है। ऊधम सिंह जी हमें पंजाब की धरती सुनाम संगरूर से मिले थे। पंजाब की धरती से हमें विगत एक शताब्दी में लाला लाजपत राय, स्वामी श्रद्धानन्द, सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी आदि शहीद मिले हैं। सिख गुरुओं का अपना इतिहास है जिन्होंने धर्म की वेदि पर अपने जीवन की आहुतियां देकर सनातन वैदिक धर्म की रक्षा की है।
शहीद ऊधम सिंह जी ने अपना बलिदान देश के सम्मान की रक्षा के लिए दिया। उन्होंने जलियांवाला बाग के एक मुख्य अपराधी लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकेल ओडायर को इंग्लैण्ड में जलियांवाला बाग नरसंहार की 31 वीं वर्षगांठ के दिन मारकर पूरा किया। 13 मार्च, 1940 को ईस्ट इंडिया एसोसियेशन और केन्द्रिय एशियन सोसायटी की ओर से लन्दन के कैक्सटन हाल में जलियांवाला बाग काण्ड की वर्षगांठ मनाई जा रही थी। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में माइकेल ओडायर आमंत्रित थे। ऊधम सिंह जी अंग्रेजी वेशभूषा में इस बैठक में पहुंच गये। उन्होंने अपना रिवाल्वर अपनी जैकेट की जेब में छिपाया हुआ था। यह रिवाल्वर उन्होंने मलसियान, जालन्धर, पंजाब के श्री पूरन सिंह बोघान से प्राप्त की थी। बैठक समाप्त होने पर ऊधम सिंह जी ने मंच पर बैठे हुए माइकेल ओडायर पर दो गोलियां चलाई जिससे वह वहीं पर ढेर हो गयेे थे। इस घटना में दो अन्य व्यक्ति भी घायल हुए थे। ऊधम सिंह जी ने घटना स्थल से भागने का प्रयास नहीं किया और अपने को स्वेच्छा से गिरिफ्तार करा दिया वा समर्पण कर दिया था। 1 अप्रैल, 1940 को ऊधम सिंह जी पर माइकेल ओडायर की हत्या का अपराध लगाया गया। आप को मुकदमें के दौरान ब्रिक्सटन जेल में रखा गया जहां आपने 42 दिन की भूख हड़ताल की। आपकी भूख हड़ताल को जबरन तोड़ा गया। न्यायाधीश अटकिंसन की कोर्ट में 4 अप्रैल को आपके विरुद्ध मुकदमें की सुनवाई आरम्भ की गई थी। अपने बयान में ऊधम सिंह जी ने कहा कि ‘‘मैंने माइकेल ओडायर को इस लिए मारा क्योंकि मुझे उससे नफरत थी। वह हत्या के लायक ही था। जलियांवाला बाग नरसंहार का वह ही मुख्य अपराधी था। उसने मेरे देशवासियों की आत्मा को कुचलने की कुचेष्टा की थी। मैं 21 वर्षों से उससे बदला लेने की कोशिश कर रहा था। मुझे खुशी है कि मैंने अपना काम पूरा किया। मुझे मौत का डर नहीं है। मैं अपने देश के लिए बलिदान हो रहा हूं। मैंने अपने देशवासियों को अंग्रेजों के राज में भूखे मरते देखा है। मैंने इसका विरोध किया है जो कि मेरा कर्तव्य था। अपने देश और मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देने से बढ़कर मेरा और क्या सौभाग्य हो सकता है?’’
उन पर चले मुकदमें में ऊधम सिंह जी को ओडायर की हत्या का दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पैनटोनविली जेल में फांसी पर चढ़ाया गया और जेल में ही उनको दफना दिया गया।
वर्तमान में होना तो यह चाहिये था कि सारे देश में उनका बलिदान दिवस मनाया जाता परन्तु हमारा आज का समाज भौतिकवादी और पश्चिमी तौर तरीकों पर चलने वाला हो गया है। वर्तमान पीढ़ी ने देश को आजादी दिलाने वाले बलिदानियों को प्रायः भुला दिया है। आज की नई पीढ़ी क्रिकेट और फिल्मी कलाकारों को ही अपना आदर्श मानती है। यह एक प्रकार का बौद्धिक पतन है। आवश्यकता पाश्चात्य विचारों की मृग मरीचिका को भूलकर वेदकालीन सत्य व ऋत नियमों व विचारों को जानने व उन्हें धारण करने की है। उसी से मनुष्य जीवन सार्थक एवं सफल होता है। आज हम यदि स्वतन्त्र हैं तो यह मुख्यतः हमारे क्रान्तिकारी शहीदों की ही देन है। उनको याद रखना ही जीवन और भूल जाना ही मृत्यु है। आजादी के आन्दोलन में शहादत की प्रेरणा देने वाले एक गीत जिसको प्रायः सभी क्रान्तिकारी गाया करते व गुनगुनाते थे, प्रस्तुत हैं।
‘हे वतन हे वतन हमको तेरी कसम तेरी राह में जान् तक लुटा जायेंगे।
फूल क्या चीज है तेरे चरणों में हम भेंट अपने शिरों की चढ़ा जायेंगे।।’
आज के देशवासियों व इसकी युवापीढ़ी में इस गीत के अनुरूप भावना नहीं है। यदि उन दिनों भी न होती और आजकल के जैसे विचार ही होते तो शायद देश आजाद न हुआ होता और आज हम दुर्दशा को प्राप्त हुए होते।
आज बलिदान दिवस पर हम शहीद ऊधम सिंह जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। देश की बलि वेदी पर शहीद हुए सभी बलिदानियों को भी हमारी सादर श्रद्धांजलि है।
-मनमोहन कुमार आर्य
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