21वीं सदी में 14वीं सदी की सोच
21वीं सदी का मानव अपने आपको सुसभ्य मानता है, इसलिए अन्याय, अत्याचार, शोषण और दमन को बहुत से भ्रांतिवश 14वीं शताब्दी की बात मानते हैं, परंतु आज भी इस धरती से अन्याय और अत्याचार, शोषण और दमन समाप्त नही हुए हैं, अपितु कहीं-कहीं तो बहुत ही भयावह रूप में हमारे बीच खड़े हैं। इनकी उपस्थिति को देखकर यह नही कहा जा सकता कि मनुष्य ने कुछ विकास किया है। वास्तव में तो ऐसे अमानवीय कृत्यों का हमारे बीच उपस्थित होना मानव की निरंतर हार का प्रतीक है।
समाचार है कि सऊदी अरब में एक भारतीय महिला का उसके नियोक्ता द्वारा हाथ काट दिए जाने की घटना की चारों तरफ हो रही निंदा के बीच विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने आज लोगों से अपील की कि वे शोषण से बचने के लिए केवल मान्यता प्राप्त एजेंटों के जरिए ही विदेशों में नौकरी करने जाएं।
सिंह ने लोगों को दूसरे देशों में नौकरी दिलाने का झांसा देकर गुमराह करने वाले एजेंटों से सावधान रहने को भी कहा। इस घटना को लेकर किए गए एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा, मीडिया के जरिए, मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि विदेशों में नौकरी के लिए एजेंटों से गुमराह नहीं हों। जो लोग इस प्रकार के बोगस एजेंटों के माध्यम से विदेशों में नौकरी के लिए जाते हैं उन्हें उस देश के नियमों का पता नहीं होता और यह भी नहीं पता होता कि मुसीबत में क्या किया जाए।
श्री सिंह जो कुछ कह रहे हैं वह हमारे बाहर जाने वाले स्वदेशी बंधुओं के लिए उनकी नेक सलाह हो सकती है, परंतु यह समस्या का समाधान नही है। मानव की मानवता मर रही है और मानव के भीतर छुपा दानव अपनी दानवता को दिखाकर मानव की मानवता पर अट्ठहास कर रहा है। इस वास्तविक समस्या से आंख मूंदकर भारत के राजनेता ही नही विश्व के राजनेता भी निकलने का प्रयास कर रहे हैं। इसका अभिप्राय है कि ये नेता भी नेता के योग्य नही हैं।
-देवेन्द्रसिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।