नायब तहसीलदार दादरी के विरुद्ध दादरी बार एसोसिएशन ने लगाए भ्रष्टाचार के आरोप

दादरी । ( अजय आर्य ) अधिकारियों के विरुद्ध अधिवक्ता गण दीर्घकाल से लड़ाई लड़ते रहे हैं। खासतौर से ऐसे अधिकारी जो न्यायालय की कुर्सी पर बैठकर भ्रष्टाचार करते हैं और न्याय के नाम पर अन्याय देने के कार्य करते रहते हैं । उत्तर प्रदेश में राजस्व न्यायालयों की कार्यशैली पर यदि विचार किया जाए तो यह सरकारी काम में अधिक व्यस्त रहते हैं । 1860 में जब राजस्व न्यायालयों की स्थापना हुई थी तो उसके 10 साल के बाद ही एक ब्रिटिश अधिकारी ने अपनी सरकार के लिए खत लिखा था। जिसमें कहा था कि हमारे राजस्व न्यायालय भ्रष्टाचार में डूब चुके हैं। वास्तव में किसानों का शोषण करने के लिए राजस्व न्यायालयों की स्थापना उस समय की गई थी। क्योंकि राजस्व वसूली का काम ही इनके हाथ में था। जिसमें भ्रष्टाचार की असीम संभावनाएं थीं। आजादी के बाद भी राजस्व अधिकारियों की वही कार्यशैली रही। जिससे आज अधिवक्ताओं को दो-चार होना पड़ता है।न्यायिक कार्य इनके यहां पर लंबित होते रहते हैं।
दादरी तहसील की बात करें तो यह तहसील तो अपने आप में पूर्णतया प्रशासनिक निकम्मेपन की शिकार हो चुकी है। क्योंकि यहां के अधिकारी अधिकांश समय सेक्टर 19 में गुजारते हैं। एक समय होता था जब एसडीएम और तहसीलदार में से कोई एक अधिकारी तहसील भवन पर अवश्य उपस्थित रहता था। पर अब कई बार ऐसी स्थिति देखने को मिल जाती है जब एसडीएम की तो बात छोड़िए कोई लेखपाल तक तहसील भवन पर उपलब्ध नहीं होता।
तहसील दादरी में इस समय दो बार एसोसिएशन काम कर रही हैं । एक बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजपाल सिंह नागर हैं तो दूसरी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार नागर हैं।
इस बार राकेश कुमार नागर एडवोकेट की बार एसोसिएशन ने यहां पर नायब तहसीलदार के पद पर तैनात महिला अधिकारी सीमा सिंह के विरुद्ध आंदोलन की शुरुआत की है । श्री नागर का कहना है कि उनके न्यायालय में दाखिल खारिज की पत्रावलियों पर अवैध वसूली खुल्लम-खुल्ला चल रही है । न्यायिक कार्यो को लटकाना और अधिवक्ताओं का अनावश्यक उत्पीड़न करना इस महिला अधिकारी की कार्यशैली का एक विशिष्ट अंग बन चुका है।
श्री नागर ने हमें बताया कि श्रीमती सीमा सिंह के न्यायालय में पत्रावलीयों को अनावश्यक लंबित किया जाता है। जिससे उन्हें भ्रष्टाचार करने का अवसर प्राप्त होता है । उन्होंने कहा कि यहां पर लेखपालों के आचरण पर भी कोई लगाम नहीं है। सारे अधिकारी लेखपालों पर किसी प्रकार का अंकुश लगाने में असमर्थ हैं। जिससे वे दाखिल खारिज की फाइलों को अपने साथ ले जाते हैं और अप्रत्याशित विलंब के पश्चात दाखिल खारिज की पत्रावलीयों पर अपनी रिपोर्ट मनमाने पैसे वसूल करके लगाते हैं। इसके लिए पहले यह नियम बना दिया गया था कि तनख्वाह के दिन प्रत्येक लेखपाल दाखिल खारिज की फाइल पर अपनी रिपोर्ट अवश्य लगाएगा, लेकिन यह नियम इस समय यहां पर लागू नहीं है, जिससे प्रशासनिक अक्षमता का पता चलता है।
यहां के किसानों से अवैध वसूली करने के लिए खतौनी की भी अजीब व्यवस्था बना दी गई है। नियम बनाया गया है कि 5 पेज से अधिक पेज वाली खतौनी पर प्रति पेज ₹5 लिए जाएंगे। इस व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए एक पेज पर एक अमल बरामद का उल्लेख दिखाकर खतौनीयों को अनावश्यक विस्तार दे दिया गया है । जिससे खतौनी जारी करने वाले कर्मचारियों की चांदी कट रही है। अधिकारियों को जानकारी होने के बावजूद भी उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
अधिवक्ताओं के इस प्रकार के रोष के चलते भी उक्त अधिकारी के आचरण में किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। जिससे अधिवक्ताओं में और भी अधिक रोष व्याप्त हो गया है। अपने द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव में दादरी बार एसोसिएशन ने यह चेतावनी दी है कि यदि उक्त अधिकारी के आचरण में किसी प्रकार का बदलाव नहीं आता है तो वह एक दीर्घकालिक आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे।

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