संपूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास की अनुपम सेवा करने में ‘अमर स्वामी प्रकाशन विभाग’ गाजियाबाद ने अपना सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है। आर्य जगत के महान सन्यासी और शास्त्रार्थ महारथी पूज्यपाद अमर स्वामी जी महाराज की स्मृति में स्थापित इस प्रकाशन विभाग के प्रतिष्ठाता माननीय लाजपत राय अग्रवाल जी ने अनेकों ऐसी दुर्लभ पुस्तकों को लोगों के सामने लाने का दुर्लभ और श्लाघनीय प्रयास किया है जो या तो लुप्तप्राय हो गई थीं या लोगों की नजरों से अलग रहकर कहीं ना कहीं किसी पुस्तकालय की धूल चाट रही थीं। अपने ऐसे कार्य के द्वारा निश्चय ही लाजपत राय अग्रवाल जी का आर्य जगत के लिए विशेष योगदान है।
अब श्री अग्रवाल ने ऐसा ही एक और कीर्तिमान स्थापित करते हुए पंजाब केसरी: लाला लाजपत राय जी द्वारा अब से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व अर्थात 1898 ईस्वी में लाहौर सेंट्रल जेल के अंदर लिखी गई लाला जी की दुर्लभ और अनुपम कृति “भारतवर्ष का इतिहास” ग्रंथ प्रकाशित कर मां भारती की अनुपम सेवा की है। जिसके लिए उनका जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है।
लाला लाजपत राय जी की विद्वता और इतिहास का ज्ञान अपने आप में अनुपम था। यह अलग बात है कि हमारे इतिहास के साथ की गई छेड़छाड़ के चलते बहुत सारे तथ्य प्रत्येक इतिहासकार की नजरों से कहीं ओझल हुए पड़े रह जाते हैं, या किसी तथ्य के बारे में उसका आधा अधूरा ज्ञान हो सकता है। बहुत संभव है कि लाला लाजपत राय जी के साथ भी ऐसा हुआ हो। तब इसका अभिप्राय यह नहीं हो जाता है कि लेखक की अनुपम कृति को ना पढ़ा जाए, क्योंकि दस में से दो तथ्य यदि आधे अधूरे होते हैं तो 8 ऐसे भी होते हैं जो प्रमाणिक होते हैं और हमारे ज्ञान वर्धन का कारण बनते हैं।
उन्होंने सेंट्रल जेल में रहकर भी अपने समय का सदुपयोग करते हुए जो सामग्री भारत वर्ष इतिहास के संबंध में प्रस्तुत की है वह शोधार्थियों व इतिहासकारों के लिए बहुत सहायक हो सकती है।
इस अनुपम ग्रंथ में अनेकों ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई हैं जो भारतीय इतिहास के संबंध में दुर्लभ ही कहीं जाएंगी। ग्रंथ की विशेषता यह भी है कि इसमें भारत के भूगोल के बारे में भी ऐसा ज्ञान प्रकट किया गया है जो इतिहास और भूगोल के विषय को समन्वित कर उन्हें अन्योन्याश्रित कर देता है । वैदिक साहित्य रीति और नीति के पहले परिच्छेद में लेखक ने वेदों के बारे में भी अपना मंतव्य प्रकट किया है। लेखक के मंतव्य से किसी प्रकार की असहमति किसी सज्जन को हो सकती है, परंतु उनके समय में उपस्थित साधनों संसाधनों के आधार पर जो उन्होंने लिखा है उनके उस परिश्रम को व्यर्थ नहीं कहा जा सकता।
लेखक लाला लाजपत राय जी ने ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद् आदि पर भी अपनी विद्वत्तापूर्ण अभिव्यक्ति दी है। वेदों को वह अपौरुषेय मानते हैं । वैदिक काल की सभ्यता रहन-सहन का ढंग, आर्यों के महाकाव्य रामायण, महाभारत श्रीमदभगवतगीता, रामायण महाभारत की सभ्यता, महात्मा बुद्ध और और उनके समय के राज्य और राजनीतिक परिस्थितियां, बौद्ध और जैन धर्म के जन्म के समय की परिस्थिति, मौर्य वंश का शासन, सिकंदर का आक्रमण, मेगास्थनीज, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, जहाजों का चलाना और नदियों की यात्रा, महाराजा बिंदुसार ,अशोक और उसके वंश के अन्य शासकों के बारे में विस्तृत जानकारी, इसके पश्चात शुंगवंश और आंध्र वंश, महर्षि पतंजलि का काल, शक यूएची जातियों के आक्रमण, महाराजा कनिष्क के बारे में विशेष जानकारी, गुप्त वंश के सभी शासकों के बारे में विस्तृत जानकारी, ईसा की सातवीं शताब्दी के समय के महाराजा हर्ष और चीनी पर्यटक ह्वेनसांग और उस समय के भारतवर्ष के बारे में विस्तृत जानकारी, सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी के अंत तक भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों के विषय में दुर्लभ जानकारी इस ग्रंथ में प्रस्तुत की गई है।
ग्रंथ की यह भी एक विशेषता है कि इसमें भारतवर्ष के छोटे-छोटे राजाओं व राजवंशों को भी स्थान दिया गया है। यह विशेषता तब और अधिक प्रशंसनीय हो जाती है जब इतिहासकार सामान्यतः बड़े सम्राटों का गुणगान करते हुए छोटे राजाओं को उपेक्षित करते हुए चले जाते हैं । इस ग्रंथ में आंचलिक राजाओं को भी स्थान दिया गया है। दक्षिण भारत का इतिहास भी प्रस्तुत कर ग्रंथ को और भी अधिक उपयोगी बनाया गया है। इसके साथ ही हिंदू और यूरोपीय सभ्यता की तुलना करके लेखक ने भारत के प्राचीन गौरव को स्थापित करने का अतुलनीय प्रयास किया है। हिंदुओं की राजनीतिक पद्धति पर भी बहुत अच्छे ढंग से प्रकाश डाला गया है। लाला लाजपत राय जी द्वारा प्रतिपादित आर्यों का मूल स्थान और वेदों की प्राचीनता आर्य जगत में अधिक मान्यता प्राप्त नहीं कर पाई है और सदा आलोचना का पात्र रही है परंतु जिन अध्येताओं को इस विषय पर भी लाला लाजपत राय जी के विचार सुनने व समझने की जिज्ञासा है उनके लिए यह सामग्री बहुत उपयोगी है ।
इस प्रकार पुस्तक प्रत्येक प्रकार से ग्रंथ प्रत्येक प्रकार से संग्रहणीय् बन गया है।
अंत में ज्येष्ठ भ्रातासम समादरणीय लाजपत राय अग्रवाल जी जो कि इस महान ग्रंथ के संपादक हैं, के प्रयास की मैं भूरी भूरी प्रशंसा करता हूं। जिन्होंने दीर्घ काल के पश्चात इस ग्रन्थ को लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर मां भारती की अनुपम सेवा की है। आशा है भविष्य में भी वे ऐसे ही ग्रंथों का प्रकाशन कर हम सब को लाभान्वित करते रहेंगे।
पुस्तक प्राप्ति का स्थान अमर स्वामी प्रकाशन विभाग गाजियाबाद है। जिसके लिए दूरभाष 0120- 2701095 व 9910336715 चलभाष पर संपर्क किया जा सकता है। ग्रंथ का मूल्य ₹700 है , जबकि कुल पृष्ठ संख्या 392 है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत