पुस्तक समीक्षा : कवितांश
‘कवितांश’ पुस्तक के लेखक विरेंद्र भारती हैं। पुस्तक के नाम से ही प्रकट हो जाता है कि कवि ने इस पुस्तक में अपनी काव्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। विरेंद्र भारती एक युवा कवि हैं । जिनके भीतर से काव्य रस का झरना बहता है, उसी झरने की बूंदों को कविता के रूप में पृष्ठों पर उकेरकर यह पुस्तक तैयार कर युवा कवि ने मानो देश के युवाओं को सौंपी है।
उन्होंने पुस्तक के प्रारंभ में ‘अपनी बात’ में लिखा है कि पल-प्रतिपल बदलते संसार में विभिन्न अनुभवों के आधार पर जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को काव्य स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। ‘बारिश भी थम गई’, ‘नि:शब्द’ में प्रकृति चित्रण किया गया है तो ‘कसूर,’ ‘विदाई’, ‘सुन लो मेरे प्यारे बच्चों’ ‘घरौंदा में बचपन’ इत्यादि कविताओं में वर्तमान समाज में बच्चों की स्थिति का वर्णन किया गया है।
कवि की कविता उसके हृदय की भावात्मक अभिव्यक्ति होती है। भावात्मक अभिव्यक्ति को मसाला विभिन्न अनुभव प्रदान करते हैं। कवि के साथ कौन सी घटना ऐसी आ जुड़े या उसके जीवन में ऐसा कौन सा दृश्य ऐसा आ जाए जो उसे भीतर से झकझोर दे या उसे किसी भी प्रकार से प्रभावित कर दे, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। पर जहां भी ये घटनाएं होती हैं, वहीं उसकी कविता फूट पड़ती है। कवि के ये अनुभव जो हृदय में हिलोरें लेकर उठते, बनते, बिगड़ते हैं, समाज के लिए बड़े उपयोगी होते हैं।
वास्तव में कवि एक योगी होता है, जो आती जाती भावनात्मक तरंगों को पकड़ने में कुशल हो जाता है। बस, उसकी यही कुशलता समाज के लिए वरदान सिद्ध हो जाती है।
विरेंद्र भारती के साथ भी ऐसा ही हुआ है। उन्होंने जितना भर अनुभव अपनी छोटी सी जिंदगी में प्राप्त किया है, उसे बड़ी विद्वता के साथ इस पुस्तक के माध्यम से हम सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया है। जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों को प्रेरित करती हुई कविताओं को प्रस्तुत करने में वे बेहद सफल हुए हैं। कहीं छात्रों की मन:स्थिति को दर्शाया है तो कहीं समाज और सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को वह अपनी कविता के माध्यम से प्रकट करने में सफल हुए हैं और कहीं उन्होंने आध्यात्मिकता को भी अपने सहज अनुभव से प्रकट करने का प्रयास किया है।
इस प्रकार कवि का अनुभव और ज्ञान कविता के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में बोलता हुआ और हमें लाभ देता हुआ प्रतीत होता है। 128 पृष्ठों की इस पुस्तक में कवि ने कुल 106 कविताएं प्रस्तुत की हैं।
अपनी कविता :शूल’ में भारती जी लिखते हैं :-
फूल बनकर आए थे जो लोग जीवन में,
वे शूल बनके चुभ गए,
देखते – देखते वह कितना बदल गए ।।
एक मधुर सी गंध घोली थी
जीवन में आकर जिसने।
उनके चले जाने से यह खालीपन
कांटों सा चुभने लगा।।
पुस्तक का मूल्य ₹200 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए ‘साहित्यागार’ धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 302003 फोन 0141- 2310785 व 4022382 पर संपर्क किया जा सकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत