(31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित)
सामाजिक व राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत सुविख्यात उपन्यासकार प्रेमचंद उन दिनों गोरखपुर के एक विद्यालय में शिक्षक थे। उन्होंने गाय रखी हुई थी। एक दिन गाय चरते-चरते दूर निकल गई। प्रेमचंद गाय की तलाश करने निकले। उन्होंने देखा कि गाय अंग्रेज कलेक्टर की कोठी की बगीची में खड़ी है तथा अंग्रेज कलेक्टर उसकी
ओर बंदूक ताने खड़ा कुछ बड़बड़ा रहा है।
प्रेमचंद ने तुरंत बीच में पहुंचकर कहा, ‘यह मेरी गाय है। निरीह पशु होने के कारण यह आपकी बगीची तक पहुंच गई है। मैं इसे ले जा रहा हूं।’
अंग्रेज कलेक्टर ने आपे से बाहर होकर कहा, ‘तुम इसे जिंदा नहीं ले जा सकते। मैं इसे अभी गोली मार देता हूं। इसकी हिम्मत कैसे हुई कि यह मेरे बंगले में आ घुसी।’
प्रेमचंद जी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘यह भोला पशु है। इसे क्या पता था कि यह बंगला गोरे साहब बहादुर का है। मेहरबानी करके इसे मुझे ले जाने दें।’
अंग्रेज अधिकारी का पारा और चढ़ गया। वह बोला, ‘तुम काला आदमी इडियट है। अब इस गाय की लाश ही मिलेगी तुम्हें।’
ये शब्द सुनते ही प्रेमचंद जी का स्वाभिमान जाग उठा। वे गाय व अंग्रेज के बीच आ खड़े हुए तथा चीखकर बोले, ‘बेचारी, बेजुबान गाय को क्यों मारता है। चला मुझ पर गोली।’ एक भारतीय का रौद्र रूप देखकर कलेक्टर सकपका गया तथा बंदूक सहित अपने बंगले में जा घुसा।