देश के राजनीतिक परिदृश्य की झांकी

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‘दैनिक ट्रिब्यून’ में मेरी पुस्तक ‘चुनावी घोषणा पत्र और लोकतंत्र’- की छपी समीक्षा

नरेश दत्त शर्मा

जिस कृति में किसी मुद्दे विशेष को समझने के लिए उससे जुड़ी बारीकियों को गहराई से रेखांकित किया जाता है, वह उत्कृष्ट लेखन की परिधि में स्वत: आ जाता है। इसके अतिरिक्त यदि तथ्य और सत्य भी संदर्भ के अनुसार लालित्य और रोचकता लिये हों तो लेखन प्रभावोत्पादक बन जाता है। राकेश कुमार आर्य द्वारा लिखित ‘चुनावी घोषणापत्र और लोकतंत्र’ पुस्तक में भारतीय राजनीति के विभिन्न विषयों को गहनता से समझाया गया है, जिसके तहत अब तक लगभग चार दर्जन प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों के इस लेखक ने पहले चैप्टर ‘राष्ट्रपति की वैदिक शपथ’ पर चर्चा करते हुए यजुर्वेद 10/26 को उद्धृत कर वैदिक साहित्य में राजधर्म का उल्लेख यूं किया है— ‘स्योना मासीद सुषदा मासीद क्षत्रस्य योनि मासीद’ अर्थात‍् उक्त वेद में ऋषि कह रहे हैं कि हे राजन (आज के संदर्भ में राष्ट्रपति) यह आसंदी अर्थात राजगद्दी आपके लिए स्योना (आजकल का सोहना शब्द) है। आपके लिए सुखकर है, इस पर बैठिये और प्रजा के सुखार्थ कार्यों को बखूबी अंजाम दें। लेखक ने यह भी कहा कि यदि बड़े पदों पर बैठे लोगों का तेज क्षीण हो जाये तो समझ लीजिये कि लकड़ी पर घुन लगने की शुरुआत लगभग हो चुकी है। जनता के लिए भी सलाह दी है कि जागरूकता अधिकारों के प्रति कम और कर्तव्यों की ओर अधिक रखनी चाहिए ताकि खंडन-विखंडन जैसी सोच से बचा जा सके। वर्चस्वी और ओजस्वी राष्ट्रनायक सरदार वल्लभ भाई पटेल को समर्पित इस पुस्तक के दूसरे अध्याय ‘भारत के आम चुनाव और निर्वाचन आयोग’ में देश की 16वीं लोकसभा 2014 तक का संपूर्ण ब्योरा सिलसिलेवार दिया गया है, जिसमें रोचकता का पुट भी बरकरार है। ‘भारत का निर्वाचन आयोग और राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र, भारत के चुनाव सुधार और चुनाव आयोग, राजनीतिक दल वचन-भंग के दोषी, क्यों नहीं, नेताओं की फिजूलखर्ची और चुनावी घोषणापत्र, भारत के मुख्य राजनीतिक दलों की सूची आदि लेखों में विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं और राजनीति दलों की कार्यप्रणाली पर संतुलित टिप्पणियां की हैं। सिस्टम में जो झोल हैं, उन्हें निकालने के कुछ मंत्र दिये हैं।’ रामजन्म भूमि और भाजपा, 2014 के आम चुनावों के समय कांग्रेस का चुनावी घोषणापत्र, भाजपा और कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्रों का तुलनात्मक अध्ययन, सपा के चुनावी घोषणापत्र में किये वादे इत्यादि लेखों में उन्होंने आस्था, राष्ट्रभक्ति, आत्मविश्वास, आत्मकेंद्रित दृष्टिकोण, लूट और तुष्टीकरण जैसे नजरियों को तराजू के दोनों पलड़ों में रखकर किसकी कितनी अहमियत मुद्दे पर विचार और निष्कर्ष निकालने की छूट भी पाठकों पर छोड़ दी है। पुस्तक में भाषा सरल और रोचक, विचार गहन और विस्तृत हैं। देश के राजनीतिक परिदृश्य को देखने-समझने का एक बेहतर झरोखा है यह किताब। पुस्तक : चुनावी घोषणापत्र और लोकतंत्र लेखक : राकेश कुमार आर्य प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 224 मूल्य : रु. 250.

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