मुजफ्फर हुसैन
पाकिस्तान में लाहौर से प्रकाशित अगस्त 2002 के मासिक तरजुमानुल कुरान में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें इतनी सनसनीपूर्ण जानकारी है कि सामान्य नागरिक उस पर विश्वास भी नही कर सकता है। लेकिन यह सब कुछ यथार्थ है। इतना यथार्थ है कि यदि दुनिया से आतंकवाद समाप्त करना है तो उसे आज नही तो कल वही सब कुछ करना पड़ेगा जो पिछले दिनों इजिप्ट ने किया है। इजिप्ट का प्राचीन नाम मिश्र है। न केवल अपने पिरामिडों के लिए बल्कि विश्व में इस्लामी कला और साहित्य के लिए भी यह देश जग विख्यात रहा है। इस्लामी साहित्य और संस्कृति का यहां सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है जिसे आमेआ अजहर कहा जाता है। इस्लामी साहित्य और इस्लाम संबंधी शिक्षण के मामले में इससे बढ़-चढक़र कोई संस्था नही है लेकिन पिछले दिनों इजिप्ट सरकार ने इस विश्व प्रसिद्घ विश्वविद्यालय की स्वायत्तता समाप्त कर दी और इसे इजिप्ट सरकार के शिक्षा मंत्रालय के तहत अधिग्रहण कर लिया। विश्वविद्यालय की अनेक पुस्तकें अभ्यासक्रम से निकाल दीं और अनेक अभ्यासक्रम की पुस्तकों में से ऐसे उद्घरण विवरण और घटनाओं को निरस्त कर दिया जो यहूदी और ईसाई विरूद्घ थे। यह सब कुछ इजिप्ट ने राजी खुशी नही करन् दिया बल्कि इस्लामी आतंकवाद को समाप्त कराने के लिए अमेरिका और इजराइल ने यह करवाया है। अमेरिका तो आतंकवाद के विरूद्घ उस समय सक्रिय हुआ जब 11 सितंबर 2002 को वल्र्ड टे्रड सेंटर पर ओसामा बिन लादेन ने हमला किया लेकिन इजराइल तो अपने जन्म से ही इस अभिशाप से पीडि़ है। सन 1973 में अरब इजराइल युद्घ में हार के पश्चात इजिप्ट अरब लीग के देशों से अलग हो गया और उसने इजराइल से कैंप डेविड नामक स्थान पर संधि कर ली। दुनिया के सभी बुद्घिजीवी भली प्रकार जानते हैं कि हथियारों से आतंकवाद कुछ समय के लिए थम तो सकता है परंतु उसे समाप्त करने के लिए मानसिकता बदलनी पड़ेगी। इसलिए इस्लामी शिक्षा का कुछ भाग जो आतंकवाद का समर्थन करता है उसको बदलना अनिवार्य है। अभ्यासक्रम की पुस्तकों में से वे अंश निकाल देना अनिवार्य हैं जो शिक्षा प्राप्त करने वाले की मानसिकता को आतंकवादी बनाने का काम करते हैं।
राष्ट्रपति के आदेश पर हुआ संशोधन
25 अगस्त 1971 को इजराइली प्रधानमंत्री बेगिन इजिप्ट की यात्रा पर गये थे। तब बेगिन ने अनवर सादात को संबोधित करते हुए कहा था…मैं आपकी इस बात पर किस तरह से विश्वास कर लूं कि आप वास्तव में हमारे साथ मित्रता करना चाहते हैं। आपके यहां विद्यार्थियों को अब भी कुरान की आयतों की शिक्षा दी जाती है जिनमें यह कहा गया है कि इजराइल में जिन लोगों ने कुफ्र का रास्ता अपनाया है उन पर दाऊद और मरयम के पुत्र ईसा की जबान से लानत की गयी। राष्ट्रपति सादात ने अपने शिक्षामंत्री को बुलाया और आदेश दिया कि इजिप्ट की शिक्षा संस्थाओं में पढ़ाई जाने वाली ऐसी सभी आयतों को अभ्यासक्रम से खारिज कर दिया जाए जिनमें यहूदियो की शत्रुता का विवरण हो।
सुधार प्रारंभ हुआ
सुधार के नाम पर इजराइल और अमेरिका इच्छाओं को पूर्ण करने की यात्रा अब भी जारी है। केवल इजिप्ट ही नही बल्कि मोरक्को से मलेशिया तक अनेक देशों में यह कार्य हो रहा है। 11 सितंबर 2001 के बाद जिस पहलू पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है वह है शिक्षा। इस बात को खुल्लमखुल्ला कहा जा रहा है कि कई मुस्लिम देशों में चलने वालीे मदरसों के कारण आतंकवाद को खाद पानी मिल रहा है। पाकिस्तान के मदरसों से तालिबान और उनके समर्थक जन्म लेते हैं, जबकि सऊदी अरब और यमन के मदरसों से अलकायदा और उनके सहायक। इन सुधारों के लिए इन देशों को 100 मिलियन डालर की त्वरित सहायता दी गयी है। पाकिस्तान के शिक्षा क्षेत्र में किस प्रकार के परिवर्तन होने चाहिए इसका अनुमान अन्य मुस्लिम देश और विशेषतया इजिप्ट से किया जा सकता है। पाकिस्तान और अन्य देशों में जो संशोधन किये जा रहे हैं वे इजिप्ट में 1979 से किये जा रहे हैं। इस संदर्भ में कुरान की जिन आयतों और हदीसों को अभ्यासक्रम से निकाला गया है वे जेहाद यहूदियों की मुस्लिम दुश्मनी काफिरों से प्रेम और मैत्री का इनकार तथा पर्दे से संबंधित है। इसके अतिरिक्त वे आयतें और शिक्षा भी अभ्यासक्रम से निकाल दी गयी हैं जिनमें आखिरत के भय तथा बुरे काम करने के फलस्वरूप दिये जाने वाले दंड की चर्चा है।
सरकार के नियंत्रण में लिया विश्वविद्यालय
तेलअबीब विश्वविद्यालय में उन दिनों एक परिसंवाद आयोजित किया गया जिसमें इजिप्ट के प्रधानमंत्री मुस्तफा खलील और बुतरूस घाली भी शामिल हुए थे। इजराइल से संबंध स्थापित करने में कुरानी प्रभाव की रूकावटों का एक सर्वेक्षण विषय पर हुए इस परिसंवाद में इजराइल के प्रधानमंत्री ने इजिप्ट सरकार से मांग की है कि कुरनन की शिक्षा देने वाले केन्द्र बंद कर दिये जाएं और मस्जिदों को सरकार के अधिकार में ले लिया जाए। इस नीति के द्वारा विश्व की सबसे विख्यात यूनीवर्सिटी जामिया अल अजहर को सरकार के अधीनस्थ कर लिया गया।