सुखी जीवन जीने के लिए संस्कारी संतान होना आवश्यक है : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

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“यदि आप लोग स्वयं सुखी होना और अपने गृहस्थ जीवन को सफल बनाना चाहते हैं, तो इन कार्यों को करते हुए अपनी संतान को भी संस्कारी बनाएं।”
“अच्छे काम करने से व्यक्ति सुखी होता है, और बुरे काम करने से वह दुखी होता है।” मोटे तौर पर इस बात को सभी लोग जानते हैं। फिर भी बहुत कम लोग ही अच्छे काम कर पाते हैं, और बुराइयों से बच पातें हैं।
इसमें अनेक कारण होते हैं। एक बड़ा कारण — तो यह है कि “व्यक्ति को संसार का वातावरण अच्छाई की ओर जाने नहीं देता, बुराई की ओर अधिक प्रेरित करता है।” क्योंकि चारों ओर अच्छे काम करते हुए लोग कम दिखाई देते हैं, तथा बुरे काम करते हुए लोग अधिक दिखाई देते हैं। इसलिए समाज के प्रभाव से व्यक्ति अच्छाई की ओर कम और बुराई की ओर अधिक आकर्षित होता है।
दूसरा कारण — “अपने पूर्व जन्म के अच्छे संस्कार भी कम होते हैं तथा बुरे संस्कार अधिक होते हैं।” इसलिए व्यक्ति अच्छाई की ओर कम प्रेरित होता है। और बुराई की ओर अधिक प्रेरित होता है। “जिस व्यक्ति के पूर्व जन्मों के अच्छे संस्कार अधिक होते हैं, वह अच्छाई की ओर अधिक चलता है।”
तीसरा कारण — “उसे अच्छे काम में प्रेरित करने वाले लोग भी कम मिलते हैं। बुराई की ओर प्रेरित करने वाले लोग अधिक मिलते हैं।” उनसे वह प्रभावित होकर बुरे काम अधिक करता है। तो “इन सब कारणों को जानकर, इनको दूर करते हुए, व्यक्ति को चाहिए कि वह अच्छे काम करे और बुराइयों से बचे, अन्यथा साँप बिच्छू वृक्ष वनस्पति शेर भेड़िया आदि लाखों योनियों में भयंकर दंड मिलेगा।”
उदाहरण के लिए कुछ अच्छे काम इस प्रकार से हैं। “स्वयं ईश्वर का ध्यान करना और यज्ञ हवन करना। अपने बच्चों को भी ईश्वर के बारे में बताना, तथा उन्हें भी यज्ञ हवन में बिठाना। बच्चों को अच्छे काम करना सिखाना, जैसे कि वे भी गायत्री मंत्र बोलकर ही नाश्ता भोजन आदि करें। गन्दे गीतों, दृश्यों, फिल्मों आदि बुराईयों से बच्चों को बचाना। माता पिता दादा दादी एवं बड़े बुजुर्गों विद्वानों आदि की सेवा स्वयं करना, तथा बच्चों को भी ये कार्य सिखाना। गौ घोड़ा कुत्ता आदि प्राणियों को भोजन देकर उनकी रक्षा करना, तथा उत्तम आर्य विद्वानों का सत्संग स्वयं भी करना, एवं बच्चों को भी कराना।”
—– स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य

चेयरमैन उगता भारत

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