समाचारों से ज्ञात हुआ है कि इस्लामिक संस्था : दारुल-उलूम, देवबंद में पिछले दिनों (24 जुलाई 2018) को जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना सैय्यद महमूद मदनी सहित अनेक उलेमाओं और मौलानाओं के समक्ष एक सौ मुस्लिम युवकों द्वारा शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन किया गया है। लेकिन उसकी तुलना देश की किसी सैनिक अकादमी में हुई “पास आउट परेड” के प्रशिक्षित सैन्य अधिकारियों से की जाय तो संभवतः कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है ?
वैसे पूर्व राज्यसभा सांसद मौलाना मदनी ने 100 मुस्लिम युवाओं का विश्व के एक प्रमुख इस्लामी केंद्र देवबंद (भारत) में तथाकथित कला का प्रदर्शन कराकर अपनी अराष्ट्रीय मानसिकता का परिचय कराया है। देश के पांच राज्यों के ‘मेवात’ सहित 16 जनपदों से आये हुए इन प्रशिक्षित युवकों के कला प्रदर्शन के माध्यम से ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ ने “जमीयत यूथ क्लब” के गठन व उसकी भावी योजनाओं को संभवतः पहली बार उजागर किया है।
जमीयत की इस योजनानुसार प्रति वर्ष साढ़े बारह (12.5) लाख मुसलमान नवयुवकों को “विशेष प्रशिक्षण” देकर तैयार किया जा रहा है। मौलाना मदनी का मानना है कि ऐसा प्रशिक्षण पाने से कोई भी बाहरी शक्तियां इन मुस्लिम युवकों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पायेगी। इस प्रकार आगामी दस वर्षों में अर्थात सन 2028 तक देश के एक सौ जनपदों के सवा करोड़ (1.25 करोड़) मुस्लिम नवयुवकों को विशेष प्रशिक्षित किया जायेगा।समाचारों के अनुसार जमीयत की इस योजना में मान्यता प्राप्त ‘भारत स्काउट व गाइड’ का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, जमीयत युथ क्लब व भारत स्काउट व गाइड मिलकर देश की सेवा करेंगे। इन योजनाओं पर होने वाला सारा व्यय केवल जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ही वहन करेगी।
ऊपरोक्त परिप्रेक्ष्य में ऐसा प्रतीत होता है कि जमीयत देश की वर्तमान शासकीय व प्रशासकीय व्यवस्थाओं को अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में बाधक मानकर मुस्लिम समुदाय को भ्रमित करके देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बिगाड़ना चाहती है। धर्म या सम्प्रदाय विशेष को ऐसा सशक्त बल या समूह या क्लब बनाने को क्या हमारा संविधान अनुमति देगा ? क्या इस प्रकार ‘भारत स्काउट व गाइड’ के नाम का सहारा लेकर व सुरक्षा के बहाने देश को भ्रमित किया जा सकता है ? जबकि वर्षों से यह स्पष्ट है कि भारतीय मुसलमानों को आम नागरिकों से अधिक अधिकार मिले हुए हैं। उनको लाभान्वित करने के लिये अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय सहित अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं, फिर भी उनको अपनी सुरक्षा के प्रति “भय” क्यों ? क्या यह “भय” मुस्लिम समाज को भयभीत करके देश में साम्प्रदायिक वातावरण बिगाड़ने के लिये तो नहीं ?
यदि मुस्लिम समाज अपनी इस्लामिक विचारधारा को ही सत्य मानेगा और विश्व के अन्य समाजों की विचारधाराओं और संस्कृति को अपने अनुरूप बनाने की अंतहीन जिहादी सोच में परिवर्तन नहीं करेगा तो उनमें अन्यों के साथ जियो और जीने दो की सुखद भावना का विकास कैसे होगा? मानवीय सिद्धान्तों और नैतिक मूल्यों को इस्लामी जगत को स्वीकार्य होना ही चाहिये। आज सभ्य समाज को यह स्वीकार नहीं है कि कोई आतंकियों की तरह उन्हें भयभीत करें और उनको क्षति पहुंचाता रहे। यह सर्वथा अनुचित है कि सहिष्णुता के नाम पर विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों के प्रति भारतीय समाज सहनशील बना रहे ?
कुछ षड्यंत्रकारी जमीयत यूथ क्लब की तुलना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से करके इसे उचित ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि संघ दशकों से भारतीय मूल्यों की रक्षा के साथ- साथ सम्पूर्ण भारतीय समाज, उसमें हिन्दू-मुस्लिम- सिख-ईसाई आदि सभी की अनेक प्रकल्पों द्वारा सेवा करता आ रहा है।
इसके अतिरिक्त ‘मॉब लिंचिंग’ का भी भय दिखा कर इस प्रकार के संगठन के गठन को उचित बताने वाले भी हिन्दू विरोध की अवधारणाओं से ग्रस्त है। जबकि ‘मॉब लिंचिंग’ या ‘भीड़ हत्या’ या “सामूहिक अत्याचारों” से भरे मुगलकालीन इतिहास व वर्तमान को भुला कर चालबाज बुद्धिजीवियों ने “लव जिहाद व गौहत्या” आदि के विवादों में हिंदुओं को ही दोषी मानकर भ्रमित प्रचार करने का माध्यम बना दिया है।
क्या यह सर्वविदित नहीं है कि हिन्दू समाज उदार व अहिंसक होने के कारण मुस्लिम कट्टरपंथियों व आतंकवादियों की हिंसात्मक गतिविधियों का वर्षो से शिकार होता आ रहा है ? ऐसे में हैदराबाद के अकबरुद्दीन ओवैसी की विषैली फुफकार को भी भुलाया नहीं जा सकता जब उसने आदिलाबाद में 24 दिसम्बर 2012 को एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि पंद्रह मिनट को पुलिस हटा लो हम मुसलमान करोडों हिंदुओं पर भारी पड़ेंगे।फिर भी मुस्लिम समाज अपनी तथाकथित सुरक्षा के नाम पर सशक्त सेना के समान एक विशाल संगठन खड़ा कर रहा है, क्यों ? क्या यह भारत के इस्लामीकरण करने की जिहादी सोच के मिशन का भाग तो नहीं ?
आपको स्मरण रखना होगा कि काग्रेसी नेता और भारत सरकार के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की सोच थी कि “भारत जैसे देश को जो एक बार मुसलमानों के शासन में रह चुका है, कभी भी त्यागा नहीं जा सकता और प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि उस खोयी हुई मुस्लिम सत्ता को फिर प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करे”। जमायते इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी ने पाकिस्तान बनने का विरोध तो नहीं किया परंतु थोड़ा दुख व्यक्त करते हुए कहा था कि “हम तो पूरे भारत को ही इस्लामी देश बनाना चाहते थे”। विभिन्न मुस्लिम नेताओं के अनेक ऐसे ऐतिहासिक कथन अभी तक मुसलमानों के अन्तःस्थल में छलकते रहते हैं। क्योंकि इस्लाम का संकल्प है जिहाद और अंतिम लक्ष्य भी परंतु यह अन्तहीन संघर्ष मानवता विरोधी है।
अतः जब संसार को दारुल-हरब और दारुल-इस्लाम में विभाजित करके देखने वालों की देशभक्ति स्वाभाविक रूप से संदेहात्मक हो तो उसका दोषी कौन होगा ?
निःसंदेह कट्टरपंथी मौलानाओं ने जमीयत यूथ क्लब के नाम से सवा करोड़ की एक प्रशिक्षित इस्लामिक फौज की तैयारी का अपना गुप्त एजेंडा उजागर करने से पहले विचार-विमर्श अवश्य किया होगा।
क्या ऐसे में यह सोचना अनुचित होगा कि इस क्लब को देशव्यापी विभिन्न आतंकवादी संगठनों व उनके स्लीपिंग सेलों तथा ओवर ग्राउंड वर्करों का जो पहले से ही प्रशिक्षित हैं, सहयोग मिलेगा ? इसके अतिरिक्त यह भी संभावना हो सकती है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान व इस्लामिक स्टेट आदि के आतंकी और पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. आदि जिहाद के लिये इस यूथ क्लब से जुड़ कर देश के अनेक भागों में आतंकवादी घटनाओं द्वारा राष्ट्रीय वातावरण को दूषित करने में सफल हो सकेंगे ?
यह कितना विचित्र व दुखदायी है कि इस्लाम में धर्मांतरित होने वाले भारतीय नागरिक अपने पूर्वजों व अपनी मूल संस्कृति एवं इतिहास में कोई आस्था नहीं रखते बल्कि अपने ही गैर मुस्लिम देशवासियों के प्रति घृणा करने के साथ साथ लूटमार व मारकाट आदि अत्याचारों से उनको भयभीत करने से भी नहीं चूकते। ऐसा कहा जाता है कि इस प्रकार के अत्याचारों के लिये आक्रामक बने रहने वालों को ही सच्चा मुसलमान माना जाता है।
अतः कोई इस धोखे में न रहे कि इस्लाम शांति व प्रेम का संदेश देने वाला धर्म/मज़हब है। ये तथाकथित शांतिदूत अपनी अपरिवर्तनीय कट्टरपंथी विद्याओं से यही सीखते और सिखाते है कि दुनिया में गैर ईमानवालों और अविश्वासियों को जीने का अधिकार ही नहीं। देवबंद में स्थित इस्लाम जगत की प्रमुख संस्था दारुल-उलूम व अन्य इस्लामिक संस्थाओं से प्रेरित होकर देश-विदेश के विभिन्न भागों में लाखों मकतब, मदरसे व मस्जिदें स्थापित हो चुकी हैं जिनका मुख्य उद्देश्य जिहाद के लिये जीना और जिहाद के लिये ही मरना माना जाता है।
क्या ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द द्वारा पोषित यूथ क्लब से सैकड़ों-हज़ारों मौलानाओं को यह आशा बंधी होगी कि ऐसे प्रशिक्षित युवक इस्लामिक चक्रव्यूह में भारत को घेरने में उनका सहयोग करेंगे और भारत को दारुल-इस्लाम बनाने का उनका सदियों पुराना सपना सच हो सकेगा ? क्या भारत सरकार देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बिगाड़ने वाले ऐसे षड्यंत्रकारियों के प्रति कोई वैधानिक कार्यवाही कर सकती है ?
जब सामान्यतः विवादित मठों और मंदिरों का सरकार अधिग्रहण कर लेती है तो फिर देश की मुख्य धारा से दूर करके देशवासियों में अलगाववादी भावना भरने वाले मदरसों व मस्जिदों का अधिग्रहण राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से और भी आवश्यक हो जाता है। आज सम्पूर्ण राष्ट्रवादी समाज देश के इस्लामीकरण या दारुल-इस्लाम बनाये जाने के विरुद्ध है परंतु ऐसे सशक्त इस्लामिक चक्रव्यूह की बढ़ती एक और चुनौती का सामना कैसे किया जायेगा, इसका चिंतन आवश्यक व अनिवार्य है ?
अतः आज यह सोचना अति महत्वपूर्ण है कि क्या भारतीय मुस्लिम समाज अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति व नैतिक मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा देकर उनमें गैर मुस्लिमों के प्रति घृणा की भावना को समाप्त करने के आवश्यक उपाय करेगा ? क्या जमीयत उलेमा हिन्द व अन्य मुस्लिम संस्थायें कभी ऐसे प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करेंगी जिसमें ऐसा मुस्लिम युवा तैयार हो जो “अरब व पाकिस्तान” के स्थान पर “भारत” को अपना आदर्श मान कर अपने पूर्वजों की संस्कृति को अपनाये। क्यों नहीं कोई मुस्लिम सुधारवादी व बुद्धिजीवी नेता मदरसों को केवल राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति के अनुरूप बना कर इस्लामिक आतंकवाद पर अंकुश लगाने का साहस करता ?
इस्लामिक चक्रव्यूह में भारत को घेरने की बार-बार चुनौती देने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम समाज को अपने धर्म ग्रंथ कुरान की उन आपत्तिजनक आयतों में संशोधन करना होगा जो अविश्वासियों के प्रति जिहाद करने को उकसाती हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द को राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने के लिये मुस्लिम समाज को ऐसा प्रशिक्षण देना चाहिये जिससे वे देश के संविधान का सम्मान करे और भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की संस्कृति को अपनाते हुए “सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय” में विश्वास करना सीखे। अतः वर्तमान आधुनिक युग में परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढालना ही जीवन को भयमुक्त करके सुरक्षित रखने व सेवा करने का सर्वोत्तम उपाय है।
विनोद कुमार सर्वोदय