भारत में अल्पसंख्यक कोई नहीं (भाग-2)
हमें यह विचार करना चाहिए कि जैसे मानव शरीर जड़ और चेतन का अद्भुत संगम है, उसमें प्रकृति के पंचतत्व से बना नश्वर शरीर तथा अजर अमर-अविनाशी, आत्मा साथ-साथ रहते हैं उसी प्रकार कत्र्तव्य और अधिकारों का सम्बन्ध् है। कत्र्तव्य हमारी चेतना शक्ति शरीर में आत्मतत्व से जुड़े हैं जबकि अधिकार हमारे शरीर की इच्छाओं से पंचतत्वों से निर्मित स्थूल शरीर से जुड़े हैं। कत्र्तव्य की चेतना शक्ति की उपेक्षा कर शरीर की इच्छा पूर्ति के लिए अधिकारों की चिन्ता करना, समस्या का समाधन नहीं है। कत्र्तव्य की चेतना शक्ति ही मानव में मानवता का विकास करती है जिससे सभी के अधिकारों की रक्षा स्वयं हो जाती है। इसलिए अधिकारों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है कत्र्तव्यों की चेतना शक्ति का विकास करना। जिसे ‘मानव आयोग’ जैसी संस्था ही सम्पादित करा सकती है।
भारत में जब अल्पसंख्यक कोई है ही नहीं तो बहुसंख्यक आयोग की स्थापना की भी आवश्यकता नहीं है। पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश में आजादी के समय क्रमश: 24 प्रतिशत और 30 प्रतिशत हिन्दू थे जो आज कठिनता से एक दो प्रतिशत भी नहीं रहे हैं। सम्प्रदाय की अंधी मानसिकता उन्हें लील गई है। संयुक्त राष्ट्र को सारी जानकारी है किन्तु वह असहाय है। उसकी यह असहायावस्था ही वर्तमान में आतंकवाद का मूल कारण है जो कि तीसरे विश्व युद्घ की आहट दे रही है। हम समय की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं और इसलिए भविष्य को अंधियारी गुफ ा की ओर न चाहते हुए भी बढ़ते चले जा रहे हैं। साम्प्रदायिक आधार पर किसी को अल्पसंख्यक मानना भारी भूल सिद्घ हो चुकी है। क्योंकि ऐसे अल्पसंख्यकों के प्रति तथाकथित बहुसंख्यक वर्ग में घृणा विकसित होती है, लेकिन यदि ऐसे साम्प्रदायिक अल्पसंख्यक स्वभावत: उस राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बने रहें जिसमें वह निवास करते हैं तो उस राष्ट्र के बहुसख्ंयक वर्ग की वह सहानुभूति के पात्र बन जाते हैं। तब वहाँ की विध् िके अन्तर्गत उन्हें अपने धार्मिक पूजा पाठ और परम्पराओं को विकसित करने का पूर्ण अवसर भी उपलब्ध् हो जाता है।
उससे उनके भीतर किसी प्रकार का भय नहीं रहता। तब राजनीति को वोटों की सौदेबाजी करने का अर्थात् भ्रष्टाचार फैलाने का अवसर भी नहीं मिलता। अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में लगे भ्रमित राजनीतिज्ञों से हमें प्रश्न करना चाहिए कि आप भारत में अल्पसंख्यकवाद का बीजारोपण किसी आधार पर करते रहे हैं? अत: हमें भय, भ्रम और भ्रष्टाचार की इस तिकड़ी के त्रिकोण से निर्मित खाके में चौथी ‘भ’ अर्थात् भारत को स्थापित करते हुए लोगों को पाँचवी ‘भ’ अर्थात् ‘भयानक मनोवृत्ति’ से सावधान करने की आवश्यकता है।
मुख्य संपादक, उगता भारत