“भूतकाल की दुखदायक घटनाओं को बार-बार याद न करें। दूसरों से आशाएं कम रखें। इससे आप सुखी रहेंगे।”
कुछ काम सुख बढ़ाने वाले होते हैं, और कुछ काम दुख बढ़ाने वाले होते हैं। इसलिए हमें ऐसे काम करने होंगे, जिससे हमारा सुख बढ़े, और दुख कम हो। सुख दुख की घटनाएं सबके जीवन में होती रहती हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं होता, कि व्यक्ति हमेशा उनको याद कर करके रोता ही रहे। “याद रखिए, हम यहां संसार में रोने के लिए नहीं आए, बल्कि सुख से जीने के लिए आए हैं। अतः दुखदायक घटनाओं को बार-बार याद न करें।” यदि बार बार याद करेंगे, तो आपका दुख बढ़ेगा। इसलिए उनको तो भूल ही जाएं।
दूसरी बात — आप दूसरों से जितनी आशाएं रखते हैं, वे सब की सब पूरी नहीं होंगी। बल्कि एक और नई समस्या पैदा होगी, कि “जितनी आशाएं पूरी होती जाएंगी, उतनी ही और बढ़ती जाएंगी। और वे बढ़ी हुई आशाएं फिर पूरी नहीं होंगी। इस प्रकार से वे आपको दुख ही देंगी।” तो दुख से बचने के लिए दूसरों से अधिक आशाएं न रखें। कम से कम आशाएं रखें। जितनी आशाएं कम रखेंगे, उतने ही अधिक सुखी रहेंगे।
तीसरी बात — कुछ लोग अपनी क्षमता को, अपनी वास्तविक क्षमता से कम समझते हैं। अर्थात वे ऐसा मानते हैं कि “हमारी क्षमता बहुत कम है। हम इस काम को नहीं कर पाएंगे। इस तरह से सोचना भी गलत है।” अपनी वास्तविक क्षमता को पहचानें। हर व्यक्ति में काम करने की कुछ न कुछ योग्यता/क्षमता होती है। “जब व्यक्ति अपनी वास्तविक क्षमता को ठीक प्रकार से नहीं पहचानता और अपनी वास्तविक क्षमता को उस से कम मानता है, तो उसकी प्रगति कम हो पाती है, जिसके कारण वह दुखी रहता है। इसलिए इस भूल से भी बचें।” इसके साथ साथ अपनी क्षमता को, अपनी वास्तविक क्षमता से अधिक भी न मानें। यह भी भूल है। और अपनी क्षमता को कम मानना भी भूल है। दोनों तरह की भूल से बचें। अपनी वास्तविक क्षमता को पहचानें, और उसी हिसाब से अपनी योजनाएं बनाएं। उन्हें पूरा करने के लिए फिर पूरी मेहनत करें। आप की योजनाएं पूरी हो जाएंगी, और आप सुखी रहेंगे।
चौथी बात — “बहुत से लोग शंकालु स्वभाव के होते हैं। हर व्यक्ति पर शंका करते हैं। बिना आधार की शंका करते हैं। बिना किसी प्रमाण और तर्क के हर व्यक्ति को शंकालु दृष्टि से देखते हैं। यह भी अच्छी आदत नहीं है, दुख दायक है। इससे भी बचने का प्रयत्न करें।”
यह तो ठीक है, कि किसी के माथे पर नहीं लिखा कि ‘यह व्यक्ति अच्छा है, या बुरा है.’ व्यवहार करने से ही पता चलता है, कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है? “इसलिए सामान्य शंका तो रखनी चाहिए। परंतु अति शंकालु प्रवृत्ति अच्छी नहीं है।” और “जब व्यवहार से किसी का परीक्षण हो जाए, कि यह अच्छा आदमी है, उसके बाद भी उस पर व्यर्थ की शंका करना, यह अनुचित है। ऐसा करना, स्वयं के लिए तथा दूसरों के लिए भी दुखदायक है। इसलिए ऐसी भूल से भी बचें।”
— स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।
प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।