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विशेष संपादकीय

लेखकों की असहिष्णुता

बिसाहड़ा की घटना को लेकर कुछ लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला आरंभ किया है, उसके पीछे इन लेखकों का तर्क है कि बिसाहड़ा में जो कुछ हुआ है वह लोगों के भीतर की सहनशीलता की कमी को दर्शाता है, आजादी के 68 वर्ष पश्चात भी ऐसी असहिष्णुता का प्रदर्शन करना उचित नही कहा जा सकता।

लेखक साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटायें, यह उनका व्यक्तिगत विषय है, परंतु बिसाहड़ा की घटना को लेकर लौटाएं तो इस पर टिप्पणी आवश्यक है। लेखक कह रहे हैं कि इस घटना से असहिष्णुता का प्रदर्शन हुआ है, अब प्रश्न यह है कि बिना किसी निष्कर्ष के और न्यायालय द्वारा दिये गये किसी निर्णय या किसी आयोग या किसी समिति के द्वारा सौंपी गयी किसी तथ्यात्मक जांच आख्या के बिना इन लेखकों ने यह कैसे निष्कर्ष निकाल लिया कि इस बिसाहड़ा काण्ड में निरी असहिष्णुता का प्रदर्शन किया गया है? इतनी शीघ्रता से अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का निर्णय इन लेखकों ने लिया है तो इसमें उनकी ओर से भी एक प्रकार की असहिष्णुता का ही प्रदर्शन किया गया है।  वैसे इन लेखकों से यह उचित रूप से पूछा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में पिछले 68 वर्ष में आज तक जो कुछ हिंदुओं के साथ होता रहा है उसके विषय में इनका क्या मत है? उसे यह असहिष्णुता कहेंगे या नैतिकता का सदाचारपूर्ण व्यवहार? वैसे लोगों को सहिष्णु बनाना लेखकों का भी कार्य है, उसमें ये लोग कितने सफल रहे? प्रश्न यह भी है।  -देवेन्द्रसिंह आर्य

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