सृष्टि के प्रारंभ में ईश्वर ने ब्रह्मा (ईश्वर की सृष्टि संरचना के ज्ञान होने के कारण उसे ब्रह्मा कहते हैं)के माध्यम से अग्नि, वायु, आदित्य , अंगिरा नामक चारों ऋषियों को ज्ञान दिया ।वेदों में ज्ञान, कर्म और उपासना (त्रिविद्या) का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। जो मनुष्य के संसार रूपी सागर को पार करने के लिए आवश्यक है।
सृष्टि के प्रारंभ में ईश्वर ने चार ऋषि यों को ज्ञान देने के कारण ईश्वर गुरुओं का गुरु है ,महागुरु है, व ईश्वर एकमात्र गुरु है।
गुरु भारी को भी कहते हैं। गुरु ज्ञान में भारी होता है। अर्थात ज्ञान में भारी होने के कारण भी गुरु कहा जाता है। वह ईश्वर गुरुओं का गुरु है जो सबसे भारी भी है।
इसके अलावा बृहस्पतिवार भी कहते हैं। “बृहत “शब्द पूर्वक ” पा रक्षणे” इस धातु से डति प्रत्यय बृहत के तकार का लोप और सुडा गम होने से बृहस्पति शब्द सिद्ध होता है।
“यो ब्रह तमाकाशादिं नाम पति स्वामी पालयिता स: बृहस्पति,”
अर्थात जो बड़ों से भी बड़ा है और बड़े आकाश आदि ब्रह्मां ड का स्वामी है ।इससे उस परमेश्वर का नाम बृहस्पति है।इस प्रकार
बड़ों से भी बड़ा होने के कारण भी भारी कहा जा सकता है ।जैसा गुरु को कहते हैं। इसलिए दोनों शब्द गुरुवार एवं बृहस्पति वार दोनों समानार्थक एवं पर्यायवाची हैं तथा दोनों का ही अर्थ ईश्वर से है।
ईश्वर सारे ब्रह्मांड का अधिष्ठाता है इसलिए भी उसको बृहस्पति कहते हैं। जिसका अनुवाद गुरुवार भी है इसलिए सिद्ध होता है कि ईश्वर ही सबका गुरु है।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत