बिखरे मोती
पंचतत्त्व से दूर है,
महत्त्व से महान ।
कारण रूप में व्यापता
कण-कण में भगवान॥ 1476॥
भावार्थ – पृथ्वी से परे अर्थात् दूर जल है,जल से दूर तेज (अग्नि) है, तेज से दूर वायु है,वायु से दूर आकाश है,आकाश से दूर महतत्त्व है, महतत्त्व से दूर प्रकृति है,और प्रकृति से दूर परमात्मा है। दूर से दूर होते हुए भी वह परमपिता परमात्मा व्यापक रूप से कण-कण में विद्यमान है, क्योंकि परमपिता परमात्मा सब का कारण है और कारण सब कार्यों में रहता है। इसलिए परमात्मा को कभी दूर मत समझो। सोचो,जरा गौर से गौर से सोचो वह बर्फ के अंदर भी अग्नि बनकर बैठा है।
भांति – भांति पागल यहां,
धन-पद-मद में चूर।
जितना जड़ता में रहे,
उतना हरि से दूर ॥1477॥
व्याख्या – यह विश्व विविधता से भरा है। किसी के पेट की आग को जब चूल्हे की आग ने बुझा सकी तो पेट की आग विद्रोह की ज्वाला बन गई और युवाओं के हाथ में कुदाल ,कंप्यूटर और कलम के स्थान पर AK47 बंदूक आ गई ।उनकी बेबसी ,लाचारी, घोर गरीबी और आर्थिक व सामाजिक असमानता ने उन्हें व्यवस्था के विरुद्ध बगावत करने तथा पागलों जैसा व्यवहार करने के लिए मजबूर कर दिया। नक्सलवाद की जड़ में यह मानसिकता दृष्टिगोचर होती है।
तस्वीर का दूसरा पहलू देखिए – कोई देश धर्म ,जाति ,संप्रदाय ,भाषा के मद में चूर है और पागलों जैसी बातें करता है। कोई धन के मद में मगरूर है ।गरीब आदमी को भुनगा और मच्छर समझता है।अकड़ इतनी कि आसमान को फाड़ती है ।उन्हें दूसरों के स्वाभिमान को चोटिल करते रत्ती भर भी लज्जा नहीं आती है। करुणा ,क्षमा ,उदारता ,धैर्य माधुर्य,विनम्रता और शालीनता जैसे दिव्य गुण तो लगता है उनके हृदय से ऐसे उड़ गए जैसे प्रचंड आंधी में रुई का फोआ उड़ जाता है।
ऐसा भी देखने में आता है कि समाज में पद- प्रतिष्ठा पाने के कारण अहंकार में चूर रहता है और पागलों जैसा व्यवहार करता है ।मानवीय मूल्यों और मर्यादा का उल्लंघन करते हुए जरा नहीं शर्माते हैं ।इसके अतिरिक्त समाज में ऐसे लोगों की बहुत बहुलता है ,जो जड़ता के कारण पागलों जैसा व्यवहार करते हैं ।जड़ता से अभिप्राय है -अज्ञान , अहंकार का होना। ऐसे लोग हठी ,जिद्दी और अक्खड़ होते हैं।उनकी सोच दकियानूसी होती है। वे कूप मंडूक कहलाते हैं। उन्हें समझाओ तो समझाने वाले का उपहास करते हैं, मदान्ध रहते हैं।सारांश यह है कि जो जितना जड़ता के शिकंजे में पड़ा है,वह उसी अनुपात में परमपिता परमात्मा से दूर है।अतः आवश्यकता प्रभु के अभिमुख होने की है।जिस प्रकार सूर्य के अभिमुख होने पर अंधकार नहीं रहता ,ठीक इसी प्रकार प्रभु के अभिमुख होने पर जड़ता स्वत: समाप्त हो जाती हैं। नया विहान होता है। प्रभु का कृपा – कवच मिलता है ,उसका प्यार और आशीर्वाद मिलता है। इस सूत्र को सर्वदा याद रखिए – प्रभु से जुड़िए और सर्वदा समता में रहिए। क्रमशः
प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
संरक्षक : उगता भारत