कालाधन वापसी का शुरू हुआ सिलसिला
प्रमोद भार्गव
कम ही सही कालाधन वापसी का सिलसिला शुरू होना देश के लिए फलदायी खबर है। राजग सरकार द्वारा सख्ती बरतने और कालाधन उजागर करने की तारीख तय कर दिए जाने के कारण ऐसा संभव हुआ है। 30 सितंबर तक कालेधन के 638 कुबेरों ने 3770 करोड़ रुपए का खुलासा किया है। जिन लोगों ने निर्धारित समय सीमा में कालाधन उजागार नहीं किया है,उन पर सरकार कठोर कारवाई कर सकती है। राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने बताया है कि जिन 638 लोगों ने कालाधन उजागार किया है,उस धन का निवेश विदेशों में खरीदी गई संपत्ति और बैंक खातों में जमा राशि शामिल है। अब आयकर विभाग इस धन का आकलन करेगा। यह धन स्वघोषणा या कजना के अंतर्गत किया गया है। इस योजना के तहत घोषित संपत्ति पर 30 प्रतिशत की दर से कर और इतनी ही राशि का जुर्मना लगेगा। मसलन सरकार को करीब 2262 करोड़ रुपए मिलेंगे। इस कर को चुकाने के बाद शेष राशि को सफेद धन के रूप में भारत में निवेश करने की छूट भी मिलेगी।
नरेंद्र मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद केंद्रीय मंत्रीमंडल की पहली बैठक में ही विशेष जांच दल के गठन से साफ हो गया था कि सरकार कालाधन के कुबेरों के न केवल नाम उजागर करेगी,बल्कि धन वापिसी का सिलसिला भी शुरू होगा। इस दिशा में पांच माह के भीतर तीन संयुक्त खाताधारियों के 8 नाम उजागार कर दिए गए थे। इसके बाद स्विस सरकार ने वहां के बैकों में खाता रखने वाले 5 भारतीयों के नाम भी उजागार किए थे। इनके खिलाफ भारत में कर सबंधी जांच चल रही है। स्विट्जरलैंड के संघीय राजपत्र में ये नाम छापे गए हैं। इससे यह तय होता है कि सरकार के पास इन नामों से संबंधित पुख्ता सबूत हैं। क्योंकि इन खाताधारियों को अब अदालती कानूनी प्रक्रिया से लेकर आयकर विभाग की कार्रवाई से भी गुजरना होगा। और ये लोग यदि विदेशी बैंकों में जमा अपने धन की वैघता पेश नहीं कर पाते हैं तो धन की वापिसी भी संभव हो जाएगी। इस राशि पर 120 फीसदी जुर्माना लग सकता है और कालाधन रखने वाले व्यक्ति को 10 साल की सजा हो सकती है।
फिलहाल भले ही 638 लोगों ने 3770 करोड़ रुपए का कालाधन उजागार किया हो,लेकिन साफ है कि सरकार ओैर एसआईटी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। एसआईटी को जांच बड़े पैमाने पर करने का अधिकार दिया गया है। लिहाजा एसआईटी को सीधे मुकदमा चलाने की जिम्मेबारी भी सौंप दी गई है। जिसके कारगर परिणाम सामने आने लगे हैं। इस कड़ी में 800 खाताधारियों के नाम मिल भी गए हैं। लेकिन विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई अपराध नहीं है। बशर्तें खाते रिर्जव बैंक ऑफ इंडिया के निर्देशों का पालन करते हुए खोले गए हों और आयकर विभाग को जानकारी देने में संपूर्ण पारदर्शिता बरती गई हो। नियमों के मुताबिक रिर्जव बैंक प्रत्येक खाताधारी को एक साल में सवा लाख डॉलर भेजने की छूट देता है। लिहाजा इस तरह से भेजी गई धन राशि कालेधन के दायरे में नहीं आती। जाहिर है,कानून काले और सफेद धन में स्पष्ट विभाजित रेखा खींचता है। काले कुबेरों की सूचियां जारी होने के सिलसिले से यह संदेह पुख्ता होता है कि डॉ.मनमोहन सिंह सरकार दोहरे कराधान संधियों का हवाला देकर निहित स्वार्थों के चलते कालाधन वापिसी के मुद्दे को जान-बूझकर टालती रही थी।
इस बावत वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बयान दिया था कि मनमोहन सिंह सरकार ने स्विट्जरलैंड के बैंकों से भारतीयों के जमा काले धन को बाहर निकालने का अवसर दिया था। यदि ऐसा नहीं था,तो क्या वजह थी कि स्विट्रलैंड के साथ दोहरे कराधान संशोधित करने के लिए जो संशोधित प्रोटोकॉल समझौता हुआ था, उसे हस्ताक्षर होने के 14 माह के बाद अमल में लाया गया। इस दौरान बड़ी मात्रा में सोने की शिलाओं के रूप में कालाधन देश में वापिस लाकर रियल इस्टेट के कारोबार में लगाया गया। इसीलिए 2010-11 और 12 में संपत्ति के कारोबार में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया था। संप्रग सरकार ने कालेधन के देश में लाने की इच्छा तब भी नहीं जताई थी,जब भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने एक संकल्प पारित किया था। इसका मकसद था कि गैरकानूनी तरीके से विदेशों में जमा कालाधन वापिस लाया जा सके। इस संकल्प पर भारत समेत 140 देशों ने दस्तखत किए थे। यही नहीं संकल्प पारित होने के तत्काल बाद 126 देशों ने तो इसे सख्ती से अमल में लाते हुए कालाधन वसूलना भी शुरू कर दिया था। यह संकल्प 2003 में पारित हुआ था,लेकिन भारत सरकार ने 2005 में जाकर इस पर दस्तखत किए थे। दरअसल दुनिया में 77.6 प्रतिशत काली कमाई ट्रांसफर प्राइसिंग, मसलन संबद्ध पक्षों के बीच सौदों में मूल्य अंतरण के जरिए पैदा हो रही है। इसमें एक कंपनी विदेशों में अपनी सहायक कंपनियों के साथ सौदों में 100 रुपए की वस्तु की कीमत 1000 रुपए या 10 रुपए दिखाकर करों की चोरी और धन की हेराफेरी करती है। भारत में संबद्ध फर्मों के बीच अभी भी यह हेराफेरी धड़ल्ले से चल रही है,कालाधन पैदा करने का यह बड़ा माध्यम है। काले कुबेरों पर की गई यह कारवाई इसलिए ठोस लग रही है,क्योंकि भारतीय उद्योग संगठन ने इस पर पर्दा डाले रखने की मांग सार्वजनिक रूप से की है। एसौचेम का तर्क है कि सिर्फ विदेशी बैंकों में खाताधारकों के नाम सार्वजनिक कर दिए गए और बाद में उनकी आय के स्रोत वैद्य पाए गए तो संबंधित खाताधारकों के सम्मान को जो ठेस लगेगी,उसकी भरपाई भविष्य में कैसे होगी ? यह दलील अपनी जगह उचित है। इसीलिए सरकार ने साफ किया है कि खाताधारियों के खातों में कालाधन होने के पक्के सबूत मिलने पर ही कानूनी प्रक्रिया अदालत के दायरे तक पहुंचाई जाएगी। सरकार यह सावधानी इसलिए भी बरतेगी,क्योंकि जांच पूरी किए बिना जल्दबाजी में कानूनी कार्रवाई कर दी गई तो दम पकड़ रही अर्थव्यस्था लडख़ड़ा कर औंधे मुंह गिर जाएगी।
वैसे 2002 से विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई कानूनी अपराध नहीं है,बशर्ते उसमें काली-कमाई जमा न हो। असल में व्यापारियों के अलावा राजनेताओं और अधिकारियों का भी कालाधन विदेशी बैंको में जमा है। यह राशि विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार से उपजी धन राशि है। जब तक इन भ्रष्टाचारियों पर शिकांजा नहीं कसेगा,तब तक इस मुहिम के सार्थक परिणाम आने वाले नहीं है। यहां यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि नेता और अधिकारी कोई उद्योगपति नहीं हैं कि उन्हें आयकर या दोहरे कराधान की समस्या से बचने के लिए विदेशी बैंकों में धन जमा करने की जरूरत पड़े ?