अपने लेखों के कई बार उल्लेख किया है कि यह हम भारतीयों का दुर्भाग्य है कि हम अपने ही वास्तविक इतिहास में किसी अनपढ़ से कम नहीं। वास्तविक इतिहास की बात करने वालों को फिरकापरस्त, साम्प्रदायिक, संविधान के दुश्मन, गंगा-जमुनी तहजीब के दुश्मन और पता नहीं किन-किन नामों से सम्बोधित करते नहीं थकते। इस तरह की बात करने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि जिस दिन वास्तविक इतिहास सामने आएगा और जब उनके अपने ही बच्चे जब उनसे सच्चाई जानने के बाध्य करेंगे, तब किस मुंह से झूठ बोलेंगे? क्या उस स्थिति में उनकी अपनी ही संतानें उन्हें वह सम्मान दे पाएंगी, जो अब तक उन्हें मिल रहा था?
सेवानिर्वित उपरांत एक हिन्दी पाक्षिक का संपादन करते अपने स्तम्भ “झोंक आँखों में धुल–चित्रगुप्त” में शीर्षक “लाल किला किसने और कब बनवाया?” और “प्रधानमंत्री राष्ट्र को बताएं ” लेख प्रकाशित किये थे, सूत्रों के अनुसार जिनका तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा संज्ञान तो लिया गया, लेकिन खंडन नहीं।
हिन्दुस्तानी संस्कृति इतनी महान होने के बावजूद भी वर्षों से देश में इस्लामी सत्ता का इतिहास पढाया जा रहा है| देश में इस्लामी आक्रमण से पहले से हिन्दू शासकों ने आदर्शवादी समाज तैयार किया था। लेकिन इसे अब तक के इतिहास में नजरअंदाज किया जा रहा था। अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मुस्लिम हमलावरों के इतिहास को इतिहास के पाठ्यक्रम से बाहर करने का फैसला किया है। पूर्व-स्नातक पाठ्यक्रमों का इतिहास अकबर और मुगलों की तुलना में महाराणा राणा प्रताप और सम्राट विक्रमादित्य के इतिहास पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा। यूजीसी ने एक नया इतिहास पाठ्यक्रम विकसित किया है। यह उन मुस्लिम आक्रमणकारियों की तुलना में भारतीय शासकों के प्रदर्शन और उनके गौरवशाली इतिहास पर अधिक प्रकाश डालेगा, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया और इसकी कई संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया। भारत के इतिहास (1206-1707 ई.) में अब अकबर और मुगलों के स्थान पर हिंदू शासक राणा प्रताप और विक्रमादित्य की शक्ति को रेखांकित किया जाएगा।
मैं बहुत सोचता हूं पर उत्तर नहीं मिलता! आप भी इन प्रश्नों पर विचार करें!
1. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं;
2. जिस सम्राट का राज चिन्ह “अशोक चक्र” भारतीय अपने ध्वज में लगते हैंं;
3. जिस सम्राट का राज चिन्ह “चारमुखी शेर” को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाते हैं, और “सत्यमेव जयते” को अपनाया है;
4.जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर “अशोक चक्र” दिया जाता है;
5. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो;
6.सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे! इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे;
7. जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं;
8. जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी;
9. जिस सम्राट के शासन काल में सबसे प्रख्यात महामार्ग “ग्रेड ट्रंक रोड” जैसे कई हाईवे बने, 2000 किलोमीटर लंबी पूरी सडक पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायीं गईं, मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए, पशुओं को मारना बंद करा दिया गया;
10. ऐसे महान सम्राट अशोक, जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है? अफ़सोस जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो नागरिक अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं, और जो जानते हैं वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते;
14अप्रैल
जन्म वर्ष 3-02ई पू
राजतिलक – 268 ई पू
देहावसान – 232ई पू
पिताजी का नाम – बिन्दुसार
माताजी का नाम – सुभद्राणी
11.”जो जीता वही चंद्रगुप्त” ना होकर “जो जीता वही सिकन्दर” कैसे हो गया…?
जबकि ये बात सभी जानते हैं कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था! बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था! जिस कारण, सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्यूकस की पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से रचाया था;
12.महाराणा प्रताप ”महान” ना होकर … अकबर ”महान” कैसे हो गया? जब महाराणा प्रताप ने अकेले अपने दम पर उस अकबर की लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था;
जिस प्रताप के नाम से ही अकबर का कपड़ों में ही पैखाना निकल जाया करता था;
13.सवाई जय सिंह को “महान वास्तुप्रिय” राजा ना कहकर, शाहजहाँ को यह उपाधि किस आधार पर मिली?
14.जो स्थान महान मराठा क्षत्रीय वीर शिवाजी को मिलना चाहिये, वो क्रूर और आतंकी औरंगज़ेब को क्यों और कैसे मिल गया?
15.स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह विदेशियों को भारत पर क्यों थोंप दी गई?
16.यहाँ तक कि भारत का राष्ट्रीय गान भी संस्कृत के “वन्दे मातरम” की जगह “जन-गण-मन” हो गया! कब, कैसे और क्यों हो गया?
17. और तो और, हमारे आराध्य भगवान् श्री राम, श्री कृष्ण तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये पता ही नहीं चला! आखिर कैसे?
18.एक बानगी …. हमारे आराध्य भगवान श्री राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या भी कब और कैसे विवादित बना दी गई, हमें पता तक नहीं चला;
19. “गुरुकुल प्रथा” समाप्त कर, “मदरसे” कब और क्यों कर आरंभ हो गए?
20. ब्राह्मणों, पंडितों का तिरस्कार कर मुल्ले-मौलवी कब प्रमुख हो गए, और हिन्दु मंदिरों का चढ़ावा उनको खैरात में बांट दिया गया! क्यों और किस के कहने पर?
अकबर प्रतिवर्ष दिल्ली में नौ रोज़ का मेला यानि ‘मीना बाजार ‘ का आयोजन करवाता था ! इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था ! अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती, उसे उसकी दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी !
एक दिन नौ रोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिये आई ! जिनका नाम बाईसा किरण देवी था ! जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ था!
बाईसा किरण देवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया और उसने बिना सोचे समझे ही दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया !
बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग |
जैसे ही अकबर ने बाईसा किरण देवी को स्पर्श करने की कोशिश की किरण देवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी !और कहा नीच नराधम, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ, जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है ! बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है ? अकबर का ख़ून सूख गया ! कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा !
अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई मुझे माफ़ कर दो देवी !
इस पर किरण देवी ने कहा: आज के बाद दिल्ली में नौ रोज़ का मेला नहीं लगेगा !और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा !
अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा !
उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा !
इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।
बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है!
“किरण सिंहणी सी चढ़ी, उर पर खींच कटार..!
भीख मांगता प्राण की, अकबर हाथ पसार….!!”
अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
आखिर किस आधार पर देश को मिथ्या इतिहास पढ़ाया गया? वर्तमान सरकार को चाहिए कि देश का मिथ्या इतिहास लिखने वालों से हर सुविधा वापस लेकर ब्लैकलिस्ट किया जाए।