🙏बुरा मानो या भला 🙏
—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
भारत की धरती पर “सेक्युलर” नामक एक दुर्लभ प्रजाति पाई जाती है। पूरी दुनिया में एकमात्र भारत ही एक ऐसा देश है जहां पर यह “दोगला” प्राणी बहुतायत में पाया जाता है, इसे राजनीतिक भाषा में “सेक्युलर” कहा जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये जिस थाली में खाता है, उसी में छेद कर देता है। घड़ियाली आंसू बहाने में तो यह बहुत माहिर है। छाती कूटना, विधवा विलाप करना, अर्धरात्रि को माननीय न्यायधीशों की निद्रा में विघ्न डालना, आंदोलन के नाम पर धींगामुश्ती करना, मुफ़्तखोरी को बढ़ावा देना, घुसपैठी हरामखोरों को शैल्टर देना, आदि-आदि इसके कुछ विशिष्ट गुण हैं। दोगलापन तो समझिये कि इसकी रग-रग में है, गिरगिट को भी इसे देखकर अपनी किस्मत पर तरस आता है कि आख़िर इस “सेक्युलर” नामक जीव को प्रकृति ने उसके मुकाबले अधिक रंग बदलने का यह विशेष गुण क्यों दिया।
अब ज़रा देखिए जब इस देश में कोई आतंकी मरता है तो यह “प्राणी” सारी रात मातम मनाता है, लेकिन सेना के वीर जवानों की मौत पर जश्न मनाया जाता है।
कश्मीरी “भटके हुए नौजवानों” की मौत का जिम्मेदार सेना को ठहराया जाता है, लेकिन दानिश सिद्दीकी की मौत के लिए एक बेचारी “निर्जीव” भोलीभाली “बुलेट” को दोषी ठहरा दिया जाता है।
भारत माता को डायन कहने वाले एक भूमाफिया के स्वास्थ्य लाभ के लिए यह “दुर्लभ प्राणी” हवन-पूजन और मजारों पर दुआएं मांगता है, जबकि इस देश को “बाबर” जैसे आक्रांता और लुटेरे द्वारा दी गई ग़ुलामी से छुटकारा दिलाने वालों की मौत की दुआएं मांगी जाती है।
आतंकियों के पैरोकार और अयोध्या को “जलियांवाला बाग” बनाने वाले मुख्यमंत्री बन सकते हैं लेकिन एक आध्यात्मिक योगी के मुख्यमंत्री बनने पर इस “दुर्लभ प्राणी” की छाती पर सांप लोटने लगते हैं।
सबसे मज़े की बात तो यह है कि “दिमागी दिवालियापन” में पीएचडी किये हुए “पप्पू” में इन्हें देश का नेतृत्व नज़र आ रहा है और जो शख़्स पूरी दुनिया में भारत का नेतृत्व कर रहा है, उसको यह “फेकू” कहते हैं।
इस दुर्लभ प्रजाति की एक और विशेषता यह है कि इसे “हिंदुत्व” शब्द से बहुत एलर्जी है, “हिंदुत्व” शब्द न केवल इनके हाजमे को ख़राब करता है बल्कि इस शब्द को सुनते ही इनकी ज़बान में खुजली होने लगती है। और उस खुजली को मिटाने के लिये इन्हें “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” नामक घुट्टी पीनी पड़ती है।
इस प्राणी की एक और विशेषता यह है कि इसे “ट्वीट-ट्वीट” करना बहुत अच्छा लगता है। खाने में इसे “पशुओं का चारा” और पीने में “ऑक्सीजन” अच्छी लगती है।ऑक्सीजन के तो सिलेंडर के सिलेंडर पी जाता है।
भारत की राजनीतिक पुस्तक में इस दुर्लभ प्राणी का वैज्ञानिक नाम “रवीश गंवार” रखा गया है।
आजकल चुनावों के दौर में इस “दुर्लभ प्राणी” की बहुत मांग रहती है। अगर आपके आसपास कोई ऐसा “दुर्लभ प्राणी” दिखाई देता है तो तुरन्त हमें सूचित करें।
🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)
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