राजा ने की बड़ी चूक
कई इतिहासकारों की ऐसी मान्यता है कि इस्लाम के इस सत्ता संघर्ष में उस समय राजा दाहिर सेन ने मोहम्मद साहब के कई परिजनों की रक्षा की थी। राजा दाहिर सेन ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए कई मुस्लिमों को सिंधु देश में बसने दिया । इसके पीछे राजा का उद्देश्य केवल यह था कि इन लोगों को की प्राण रक्षा करना उनका धर्म है । यह अलग बात है कि राजा की यह उदारता कालान्तर में उसके लिए घातक सिद्ध हुई। हमारा मानना है कि राजा को मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के प्रति ऐसी उदारता का प्रकटन नहीं करना चाहिए था। उनके प्रति पहले दिन से कठोर नीति अपनायी जाती और भारत के किसी भी क्षेत्र, प्रान्त या भाग पर उन्हें बसने की अनुमति ना दी जाती।
अपनी इस मान्यता की पुष्टि में हम यह कहना चाहेंगे कि जम्मू कश्मीर में भी एक राजा विशेष ने किसी समय विशेष पर किसी एक दो मुस्लिम परिवारों को बसने की अनुमति देकर गलती की थी ।जिसका परिणाम आज देश बड़े घातक रूप में देख रहा है। इसी प्रकार आसाम और बंगाल में भी किसी समय विशेष पर किन्हीं एक दो मुस्लिम परिवारों को ही बसने की अनुमति दी गई थी और उस अनुमति के लाइसेंस ने हमारी संप्रभुता के साथ जिस प्रकार खिलवाड़ किया, वह सब हमारे सामने है।
इतना ही नहीं, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी जैसे – जैसे हम अपनी मानवता का परिचय देते हुए इस्लाम को बसने की या तो अनुमति देते गए या किसी प्रकार की मजबूरी में उन्हें बसने से रोक नहीं पाए तो उसका परिणाम भी हमने देख लिया है कि देश का एक बहुत बड़ा भू-भाग हमसे छीन लिया गया। अतः बसने की अनुमति देने का लाइसेंस जारी करना समझ लो अपनी संप्रभुता को खतरे में डालना है। निश्चय ही राजा दाहिर सेन ने मुस्लिमों को उक्त प्रांत में बसने की अनुमति देकर बड़ी चूक कर डाली थी।
वेद में की गई है प्रार्थना……
भारत की वैदिक संस्कृति में विश्वास रखने वाले लोग परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ” सर्वा आशा मम मित्रम भवंतु” (अथर्ववेद 19 /15/ 6 ) इस मन्त्र में कहा गया है कि सभी दिशाएं मेरी मित्र हो जाएं, किसी दिशा में मेरा कोई विरोधी वैरी न रह जाए, सभी मुझसे स्नेह करने वाले हों, सर्वत्र मुझसे प्रीति करने वाले हों।”
परमपिता परमेश्वर, घट-घट का स्वामी, अंतर्यामी राजाओं का राजा है। उस राजाओं के राजा से जब यह प्रार्थना की जाती है तो इसका अभिप्राय है कि उसका प्रतिनिधि भूपति राजा भी अपनी प्रजा के लिए ईश्वर के इस दिव्य गुण वाला हो अर्थात वह भी प्रजाओं का रक्षक हो। प्रजा हितचिंतक होना तो राजा का स्वाभाविक गुण है ही उसका प्रजा रक्षक होना भी महत्वपूर्ण और आवश्यक गुण है। यही कारण है कि हमारे राजाओं ने राष्ट्र रक्षा और प्रजा रक्षा को अपना सर्वोपरि कर्तव्य धर्म स्वीकार किया। फलस्वरूप जिस काल में भी विदेशी हमलावरों ने या संस्कृतिनाशकों ने वैदिक संस्कृति और धर्म पर आक्रमण किया, उसी काल में राजा ने अपने राजधर्म और राष्ट्रधर्म को शिरोधार्य करते हुए ऐसे संस्कृतिनाशकों का सर्वनाश करना अपना लक्ष्य बनाया, क्योंकि ऐसे संस्कृतिनाशकों के नाश करने से ही प्रजा की रक्षा होना संभव है।
हमें अपने इतिहासनायक, संस्कृति रक्षक राजाओं को इसी दृष्टिकोण से देखना चाहिए। यद्यपि मुगल वंश और उसके पश्चात अंग्रेजों के काल में कई राजा ऐसे भी रहे जो निकम्मे, आलसी, प्रमादी और राष्ट्रधर्म से दूर रहे, परन्तु इसके उपरान्त भी ऐसे राजा अधिक हैं जिन्होंने अपने राष्ट्रधर्म के निर्वाह में कभी आलस्य या प्रमाद नहीं बरता।
हमारी इस पुस्तक के नायक राजा दाहिर सेन ऐसे ही महान शूरवीर राष्ट्रभक्त राजा थे, जिन्होंने भारत की वैदिक परंपरा में नियत किए गए राष्ट्रधर्म का पालन करने में कभी भी आलस्य या प्रमाद का प्रदर्शन नहीं किया।
(हमारी यह लेख माला मेरी पुस्तक “राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन” से ली गई है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई है। जिसका मूल्य ₹175 है । इसे आप सीधे हमसे या प्रकाशक महोदय से प्राप्त कर सकते हैं । प्रकाशक का नंबर 011 – 4071 2200 है ।इस पुस्तक के किसी भी अंश का उद्धरण बिना लेखक की अनुमति के लिया जाना दंडनीय अपराध है।)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति