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डॉ मनमोहन सिंह के ‘प्रधानमंत्री’ बनने की कहानी

संतोष भारतीय

2004 लोकसभा का चुनाव। प्रमोद महाजन ने लालकृष्ण आडवाणी को प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग के रूप में प्रचारित किया और देश में शाइनिंग इंडिया कैंपेन चलाया। 7 मई की रात मेरे पास डॉ. मंजूर आलम का फोन आया कि अहमद पटेल मिलना चाहते हैं। मैं जब अगली सुबह डॉ. मंजूर आलम के यहां गया तो वहां अहमद पटेल पहले से बैठे हुए थे। अहमद पटेल ने मुझसे कहा, ‘बीजेपी सरकार ना बनाए, इसके लिए क्या किया जा सकता है?’ मैं सवालिया नजरों से उनका चेहरा देखने लगा। वह बोले, ‘मेरा संदेश, जिसे सोनिया गांधी का संदेश माना जाए, आप वीपी सिंह को दे दें।’ मैं वीपी सिंह से 8 मई को ही मिला। वीपी सिंह खामोश होकर सारी बात सुनते रहे। उन्होंने शाम को मुझे फिर बुलाया और मेरी राय पूछी। वीपी सिंह ने कहा, ‘अगर अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने की बात होती तो मैं कुछ नहीं सोचता, लेकिन अब बीजेपी जिस रास्ते पर जा रही है, वह देश में सांप्रदायिकता बढ़ाने वाला रास्ता है, इसलिए सोनिया गांधी को ही प्रधानमंत्री बनाना चाहिए।’ मैंने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल है क्योंकि सभी विपक्षी नेता कांग्रेस के खिलाफ हैं और करुणानिधि ने तो शायद अटल जी से बात कर ली है।’ वीपी सिंह बोले, ‘रात में करुणानिधि जी का फोन आया था। कह रहे थे कि मैं अटल जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वचनबद्ध हूं।’ मैंने वीपी सिंह से पूछा, ‘तब क्या करेंगे?’ वह बोले, ‘आप सिर्फ बीच में रहें, मुझे लगता है कि सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना ज्यादा सही रहेगा।’ 10 मई को वीपी सिंह की डायलिसिस थी। डायलिसिस के बाद वीपी सिंह सोनिया गांधी से मिलने गए। मैं उनके साथ था। यह बातचीत लगभग आधे घंटे चली। घर पहुंच कर उन्होंने बताया कि सोनिया गांधी चाहती हैं कि वह विपक्ष के नेताओं और करुणानिधि को नई सरकार बनाने में साथ देने के लिए तैयार करें।

शुरू हुई वीपी की मुहिम
11 मई को वीपी सिंह ने सबसे पहले देवगौड़ा से बात की और वहीं से वह सुरजीत के यहां चले गए। उन्होंने मुझे कहा कि सोनिया जी से कहिए कि वह तत्काल सुरजीत जी और देवगौड़ा जी से बात करें। शाम को वीपी सिंह ने करुणानिधि से फिर बात की और मुझे कहा कि उनकी बात चंद्रशेखर से मैं जितनी जल्दी हो सके, करवाऊं। 12 मई की सुबह मेरी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई। सोनिया जी ने देवगौड़ा से बात करने में थोड़ी सी हिचक दिखाई। जब मैंने उन्हें समझाया कि देश की स्थिति पर बात करने में आपको कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, सोनिया गांधी मान गईं। मैं दोपहर 12 बजे देवगौड़ा से मिला। वह कांग्रेस के आलोचक थे। मेरे काफी आग्रह करने के बाद वह सोनिया गांधी से बात करने के लिए तैयार हुए। वहीं से मैं चंद्रशेखर के यहां गया। मैंने अहमद पटेल को भी बुला लिया था। मैंने बहुत आग्रह के साथ उन्हें सोनिया गांधी से मिलने को तैयार किया। सोनिया गांधी ने चंद्रशेखर को अपने घर आमंत्रित कर लिया। 7:30 से 8:00 के बीच सोनिया गांधी के यहां जाने का समय तय हुआ। मैं शाम 7:00 बजे चंद्रशेखर को लेकर वीपी सिंह के घर पहुंचा। चंद्रशेखर ने कहा कि आपके कहने पर मैं साथ दे रहा हूं, वैसे मैं साथ नहीं देता। राजा साहब मुस्कुराकर बोले, ‘आज तो यही समय की मांग है, आपका समर्थन बहुत बड़े फैसले का आधार बनेगा।’ सवा सात बजे एबी वर्धन और डी राजा वहां आ गए। वे सीधे सुरजीत के यहां से आए थे। उन्होंने आते ही वीपी सिंह और चंद्रशेखर से कहा, ‘हमने मन बना लिया है कि हम कांग्रेस का समर्थन करेंगे।’ चंद्रशेखर 7:30 बजे यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि हमें देश की होने वाली प्रधानमंत्री से मिलने जाना है। दोनों की मुलाकात 25 मिनट चली। जब मैं चंद्रशेखर को छोड़ने उनके घर जा रहा था, तो चंद्रशेखर ने मुझसे कहा, ‘विश्वनाथ के कहने पर मैं पूरा साथ दूंगा, पर विश्वनाथ से कह देना कि कांग्रेस को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं। वह टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल करती है।’

परिदृश्य ही बदल गया
13 मई की सुबह लोकसभा के परिणाम आने थे। सुबह-सुबह मंजूर आलम, अहमद पटेल और मैं सोनिया से मिले। क्या क्या हो सकता है, इन संभावनाओं पर बात हुई। 14 मई को दिन भर सोनिया गांधी अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श में लगी रहीं और वीपी सिंह लेफ्ट और करुणानिधि से बात करते रहे। 16 मई को करुणानिधि हवाई अड्डे से सीधे वीपी सिंह से मिलने आए। करुणानिधि ने वीपी सिंह से कहा, ‘मैं अटल जी से मिलने जा रहा हूं, क्योंकि मैंने उन्हें समर्थन का वचन दिया है।’ वीपी सिंह ने एक कागज मंगवाया, उस पर कांग्रेस को समर्थन का खत सोनिया गांधी के नाम लिखा और करुणानिधि से कहा, ‘इस पर आपके दस्तखत कर रहा हूं, आप चाहें तो मेरे नाम एफआईआर करवा दें कि वीपी सिंह ने मेरे जाली हस्ताक्षर किए हैं।’ करुणानिधि ने चाय का कप नीचे रख दिया। फिर वीपी सिंह का दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों में दबा लिया और कहा, ‘आप अगर इस हद पर हैं तो आप सोनिया जी से कह दीजिए कि मैं उनके साथ हूं।’ 17 मई भारत के राजनीतिक इतिहास का महत्वपूर्ण दिन है। दोपहर एक बजे के आस-पास वीपी सिंह का फोन आया कि मैं फौरन उनके पास पहुंच जाऊं। दो बजे एक कार आई, जिसमें से फोतेदार और नटवर सिंह उतरे। नटवर सिंह ने जेब से एक पर्ची निकाली और वीपी सिंह को दिखाई। वीपी सिंह ने पढ़ा और एक मिनट सोचा, उन्होंने दोनों से कहा, ‘क्या कर सकते हैं, जब उन्होंने फैसला ले ही लिया है।’ फोतेदार और नटवर सिंह दस मिनट रुकने के बाद चले गए। मैं भी उत्सुक था कि आखिर पर्ची में था क्या? दो मिनट के बाद वीपी सिंह बोले, ‘सोनिया जी ने फैसला लिया है कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी, मनमोहन सिंह को बनाएंगी।’ मैंने हैरानी से कारण पूछा, पर उन्हें नहीं पता था।

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