क्या ईद शांति प्रेम भाईचारे का त्योहार है ?
624 ईसवी में हज़रत मोहम्मद ने जंग ए बदर की लड़ाई लड़ी और जीती थी , मोहम्मद की सारी लड़ाइयाँ ग़ैरमुस्लिमों के ख़िलाफ़ और इस्लाम के विस्तार को लेकर ही लड़ी गयी थी , लड़ाई में मरने पर सीधे जन्नत और ७२ हूर , जन्नत की शराब की नदियाँ , रसीले फल आदि का सुहाना काल्पनिक सपना दिखाया जाता था और अगर लड़ाई में जीत हुयी तो लूट का सारा माल औरतें भेड़ बकरी ऊँठ सोना चाँदी सब जायज़ तौर पर मोहम्मद और उसके सहयोगियों का माना जाता था , ये लड़ाइयाँ अक्सर ईसाई , यहूदी कुरेश बोध आदि के साथ ही होती थी ,
अब जब मोहम्मद बदर की जंग जीत गया तो उसने पकवान और लज्जत दार खाना बनवाया और जलसा करवाया, खून से सने कपड़े बदल कर नये कपड़े पहनवाए , और पहली ईद मनायी 🤔इसे इदु उल फ़ितर कहते है
दूसरी ईद ईदउल ज़ुहा या बक़रीद के नाम से जानी जाती है, हज़रत इब्राहिम को ख़्वाब आया की अल्लाह ने उससे उसकी सबसे प्यारी चीज़ क़ुर्बान करने को कहा है , तो उसने सबसे प्याराअपना बेटा इस्माइल ही अल्लाह को क़ुर्बानी के लिए चुना, और एक ही झटके में अपने बेटे इस्माइल की गर्दन धड़ से अलग कर दी पर ये क्या वहाँ तो एक मेमना कटा पढ़ा मिला, और बेटा इस्माइल बच गया , इसे हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह की हिफ़ाज़त का पैग़ाम बताया और इस प्रकार ईदउल फ़ितर के ७० दिन बाद ईद उल ज़ुहा मनायी जाने लगी .
अब इन दोनो ईद में सिवाय इस्लामी के विस्तार काल्पनिक तथ्यों , हिंसा और मासूम जानवरों की हत्या के सिवाय और क्या है ? रही बात ज़कात , दान आदि की तो लूट और हत्या के बाद कुछ हिस्सा गरीब मुसलमानो को देना भी इस्लाम के विस्तार को ही दर्शाता है।
अब इसमें प्यार भाईचारा शांति ढूँढते रहो 🙏😳🤔