चाणक्य नीति

यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत्।।

अर्थ- जिस देश में सम्मान न हो, जहां कोई आजीविका न मिले, जहां अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहां विद्या अध्ययन संभव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए।
अर्थात् जिस देश अथवा शहर में निम्नलिखित सुविधाएं न हों, उस स्थान को अपना निवास नहीं बनाना चाहिए‒

जहां किसी भी व्यक्ति का सम्मान न हो।
जहां व्यक्ति को कोई काम न मिल सके।
जहां अपना कोई सगा-संबंधी या परिचित व्यक्ति न रहता हो।
जहां विद्या प्राप्त करने के साधन न हों, अर्थात् जहां स्कूल-कॉलेज या पुस्तकालय आदि न हों।
ऐसे स्थानों पर रहने से कोई लाभ नहीं होता। अतः इन स्थानों को छोड़ देना ही उचित होता है।
अतः मनुष्य को चाहिए कि वह आजीविका के लिए उपयुक्त स्थान चुने। वहां का समाज ही उसका सही समाज होगा क्योंकि मनुष्य सांसारिक प्राणी है, वह केवल आजीविका के भरोसे जीवित नहीं रह सकता। जहां उसके मित्र-बन्धु हों वहां आजीविका भी हो तो यह उपयुक्त स्थान होगा। विचारशक्ति को बनाये रखने के लिए, ज्ञान प्राप्ति के साधन भी वहां सुलभ हों, इसके बिना भी मनुष्य का निर्वाह नहीं। इसलिए आचार्य चाणक्य यहां नीति वचन के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को ऐसे देश में निवास नहीं करना चाहिए जहां उसे न सम्मान प्राप्त हो, न आजीविका का साधन हो, न बंधु-बान्धव हों, न ही विद्या प्राप्ति का कोई साधन हो बल्कि जहां ये संसाधन उपलब्ध हो वहां वास करना चाहिए।

प्रस्तुति : राहुल धूत

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