दानिश सिद्दीकी : दंगाई फोटोग्राफर बना कम्युनिस्टों सेकुलरों का मसीहा
- दानिश सिद्दीकी की हत्या अफगानिस्तान के अंदर पाकिस्तान से सटे एक इलाके में क्रॉस फायरिंग में हुई है… इस हत्या में संघ या फिर किसी हिंदूवादी संगठन का कोई रोल नहीं है… लेकिन दानिश सिद्दीकी की मौत का गुस्सा सेकुलर और कम्युनिस्ट हिंदूवादी संगठनों पर उतार रहे हैं… हिंदुत्व की तुलना तालिबान से की जा रही है इसलिए अब सेक्युलरों और कम्युनिस्टों के मुंह पर उनके झूठ की कालिख मलना काफी जरूरी हो गया है
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दरअसल जिस दानिश सिद्दीकी की मौत पर कम्युनिस्ट, सेकुलर, जिहादी और बुद्धिजीवी आंसू बहा रहे हैं वो दानिश सिद्दीकी कितना बड़ा एजेंडेबाज फोटोग्राफर था… ये जानने के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है… आप सिर्फ उसकी वेबसाइट पर जाइए.. दानिश सिद्दीकी डॉट नेट लिखिए.. तो उसके द्वारा खींची गई फोटो खुल जाएगी और इसमें सबसे पहला फोटो वो दिखेगा जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति पीटा जा रहा है…
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ये कोई सामान्य फोटो नहीं थी.. ये फोटो जिस दिन सुबह दैनिक भास्कर में छपी ठीक उसी दिन ही दिल्ली में दंगा शुरू हो गया था । यानी उसी उत्तेजक और भड़काऊ फोटो का भी दिल्ली दंगे में मुस्लिम इलाकों में उत्तेजना फैलाने में पूरा योगदान था
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लेकिन ऐसे एकतरफा रिपोर्टिंग करने वाले एजेंडेबाज पत्रकारों और फोटोग्राफरों के चरणों का तो सेकुलर और कम्युनिस्ट नित्य प्रति चुंबन करते हैं… और अब वो हमसे भी यही अपेक्षा करते हैं कि हम भी ऐसा ही करें और महान पत्रकार मानकर उसकी इबादत करें तो ऐसा बिलकुल नहीं होगा… अगर किसी शख्स को उसके महान फोटोग्राफर होने का भ्रम है तो वो उसकी वेबसाइट विजिट कर ले सारा भ्रम दूर हो जाएगा ।
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और जहां तक तालिबान की तुलना हिंदुत्व से करने की बात है तो अगर हिंदुत्व फैलेगा तो सभी जीवों में ईश्वर का वास मानने वाली विचारधारा फैलेगी और अगर तालिबान फैलेगा तो मुसलमानों के अलावा सभी जीवों को काफिर मानने वाली विचारधारा फैलेगी… बस इतना ही फर्क समझाना काफी है !
-इसलिए सेकुलर और कम्युनिस्ट अपना प्रोपागेंडा छोड़कर आज अपने जिहादी भाई की मौत का मातम मनाने पर ज्यादा ध्यान दें… इधर उनकी दाल गलने वाली नहीं है।