कल्पना चावला के बाद दूसरी भारतीय मूल की महिला सिरिशा बांदला बनी अंतरिक्ष यात्री
अरुण नैथानी
दशकों की तपस्या सरीखी मेहनत जब सपनों को साकार करती है तो निस्संदेह खुशी का पारावार नहीं रहता। बीते रविवार जब अरबपति ब्रितानी व्यवसायी रिचर्ड ब्रैनसन के साथ वर्जिन गैलेक्टिक के रॉकेट प्लेन से भारत की बेटी सिरिशा बांदला अंतरिक्ष में पहुंची तो यह उसके बचपन से देखे गये सपने का सच होना था। अमेरिका के साथ भारत में भी खुशियां मनायी गई। कल्पना चावला के बाद वह दूसरी भारतीय मूल की महिला है जो अंतरिक्ष में कदम रख पायी। दरअसल, अमेरिका के न्यू मैक्सिको में वर्जिन गैलेक्टिक का यह रॉकेट विमान उड़ान भरने के एक घंटे बाद वापस धरती पर लौट आया। यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम था और इस प्रकार दुनिया में अंतरिक्ष पर्यटन की शुरुआत हो गई। इस तरह अरबपति व्यवसायी रिचर्ड ब्रैनसन ने अमेजॉन के जेफ बेजॉस और स्पेस एक्स के एलन मस्क को पछाड़ दिया, जो अंतरिक्ष पर्यटन में कदम रख रहे हैं।
कभी चार साल की उम्र में माता-पिता के बिना भारत से अकेली अमेरिका जाने वाली सिरिशा बांदला आज इतनी बड़ी हो गई है कि उसने बचपन में देखे सपनों को हकीकत में बदल दिया। आंध्र प्रदेश के गुंटूर में जन्मी बांदला बचपन से ही आकाश की ऊंचाइयों की हकीकत जानना चाहती थी। उसका जन्म गुंटूर के चिराला में वर्ष 1987 में हुआ। वह बचपन से ही आकाश को लेकर सम्मोहित रही है। वह आसमान को देखकर पूछा करती थी कि अंतरिक्ष में कैसे जाते हैं? वहां क्या है? उसके पिता मुरलीधर व मां अनुराधा अमेरिका में ही नौकरी करते थे सो शुरुआत में उसका लालन-पोषण दादा डॉ. रंगैया बादला व दादी की देखरेख में हुआ। चार साल की उम्र में सिरिशा को उसके लिये अजनबी व्यक्ति के साथ अमेरिका भेजा गया था। लेकिन वह हवाई जहाज में यात्रा करने के लिये खासी उत्साहित थी।
संयोग की बात है कि सिरिशा के माता-पिता ह्यूस्टन में जहां रहते थे, वहीं नासा का बहुचर्चित जॉनसन स्पेस सेंटर स्थित है। ऐसे में बचपन से सिरिशा की अंतरिक्ष अभियान से जुड़े लोगों को देखकर अपने सपनों को हकीकत में बदलने की उत्सुकता बढ़ी। वह अकसर सोचती कि अंतरिक्ष यात्री कैसे बनते हैं। फिर उसने इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने की सोची। सबसे पहले उसने एयरोस्पेस और एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में वर्ष 2011 में स्नातक डिग्री हासिल की। उसके सपनों को तब झटका लगा जब वह आंख में किसी खामी के कारण नासा जाने के लिये अयोग्य करार दे दी गई। फिर उसने जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की। इसी बीच उसे एक प्रोफेसर ने अंतरिक्ष से जुड़ी सरकारी नीतियों का अध्ययन करने वाली स्पेश पॉलिसी में भविष्य बनाने की सलाह दी। अपने सपनों को पूरा करने के लिये सिरिशा ने वर्ष 2015 में रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक को चुना। फिर महज छह साल में जुनूनी कार्यशैली से तीन पदोन्नति पाकर कंपनी की गवर्नमेंट अफेयर्स एंड रिसर्च ऑपरेशंस की वाइस प्रेसिडेंट बन गई। उसकी किस्मत थी कि जब रिचर्ड ब्रैनसन ने अंतरिक्ष अभियान की शुरुआत की तो खुद व पायलट के साथ किसी अन्य को अंतरिक्ष में ले जाने के बजाय अपने कर्मचारियों को चुना। इन पांच लोगों में सिरिशा भी शामिल थी।
करीब तीन लाख फीट की ऊंचाई पर पहुंचकर सिरिशा को जैसे अपने सपनों की मंजिल मिल गई। करीब एक घंटे के इस अभियान में चार मिनट तक वह अंतरिक्ष में रही, वहां भारहीनता का अनुभव किया। जहां से पृथ्वी को देखना उसके लिये अवर्णनीय घटना थी। बचपन से देखे गये सपने हकीकत बन गए थे। सिरिशा की सफलता भारत समेत सारी दुनिया की लड़कियों के लिये प्रेरणा की एक मिसाल है कि वे मेहनत व लगन से धरती की सीमाओं से परे भी सफलता हासिल कर सकती हैं। वह रिचर्ड ब्रैनसन के वर्ष 2004 से जारी उस मिशन के हकीकत बनने का भी हिस्सा थी, जिसे तकनीकी चुनौतियों के चलते सत्रह साल बाद कामयाबी मिल पायी।
भारतीयों के लिये भी यह खुशी की बात है कि अंतरिक्ष पर्यटन का नया दौर शुरू होने पर इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा एक भारतीय बेटी बनी। उसने कहा भी कि यूनिटी-22 दल का हिस्सा बनकर मैं खुद को सम्मानित महसूस कर रही हूं। उसने छह जुलाई के ट्वीट में कहा था कि ‘जब मैंने सुना कि मुझे यह अवसर मिल रहा है, तब भावनाओं को व्यक्त करने के लिये शब्द नहीं थे। यह सार्थक अभियान था। यह अलग-अलग पृष्ठभूमि, भौगोलिक क्षेत्र, समुदाय के लोगों का अंतरिक्ष में होने का अभूतपूर्व अवसर था।’
सफलता की ऊंचाइयां छूने वाली सिरिशा का भारतीयता से लगाव बदस्तूर कायम है। खासकर भारतीय व्यंजन उसे लुभाते हैं। जब वह अंतरिक्ष में जा रही थी तो मां उसके लिये मटन बिरयानी लेकर न्यू मैक्सिको उड़ान स्थल पहुंची थी। लेकिन हमेशा से उसकी पहली पसंद पीली दाल रही है। उसने कहा कि अंतरिक्ष से आने के बाद वह मां से पीली दाल बनाने को कहेगी, जो मुझे बहुत पसंद है। मुझे गर्म चावल, पीली दाल और थोड़ा-सा घी डालना बेहद पसंद है। मैं इसे बनाने की कोशिश तो करती हूं लेकिन मां के जैसा नहीं बना पाती। अंतरिक्ष में जाते वक्त उसने गर्व से कहा था कि मैं अपने साथ भारत को भी लेकर ऊपर जा रही हूं।