अवधेश कुमार
उत्तर प्रदेश की नयी जनसंख्या नीति पर कई हलकों से आ रही नकारात्मक प्रतिक्रियाएं अनपेक्षित नहीं है। भारत में जनसंख्या नियंत्रण और इससे संबंधित नीति पर जब भी बहस होती है, तस्वीर ऐसी ही उभरती है। हालांकि सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री का बयान दुर्भाग्यपूर्ण कहा जाएगा। वे कह रहे हैं कि पहले नेता, मंत्री और विधायक बताएं कि उनके कितने बच्चे हैं और उनमें कितने अवैध हैं। सपा सांसद सफीकुर्रहमान बर्क यदि कह रहे हैं कि कोई कानून बना लीजिए, बच्चे पैदा होने हैं, वे होंगे, अल्लाह ने जितनी रूहें पैदा की हैं, वे सब धरती पर आएंगी तो किसी को हैरत नहीं होगी।
लंबे समय से देश का बड़ा तबका आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए किसी न किसी तरह की नीति लागू करने की आवाज उठाता रहा है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लालकिले से दिए जाने वाले भाषण के लिए आम लोगों से सुझाव मांगे तो उसमें सबसे ज्यादा संख्या में जनसंख्या नियंत्रण कानून का सुझाव आया था। प्रश्न है कि जनसंख्या नियंत्रण नीति में ऐसा क्या है, जिसके विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया होनी चाहिए?
उत्तर प्रदेश विधि आयोग ने जब जनसंख्या नियंत्रण नीति का दस्तावेज जारी किया था तभी दोष निकालने वालों ने एक-एक शब्द छान मारा। उसमें किसी तरह के मजहब का कोई जिक्र नहीं था और योगी आदित्यनाथ द्वारा जारी नीति वही है। इसमें दो से ज्यादा बच्चा पैदा करने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन करने का निषेध या सरकारी सुविधाओं से वंचित करने या फिर राशन कार्ड में चार से अधिक नाम नहीं होने का बिंदु सभी मजहबों पर समान रूप से लागू होगा। आबादी मान्य सीमा से न बढ़े, उम्र, लिंग और मजहब के स्तर पर संतुलन कायम रहे, यह जिम्मेवारी भारत के हर नागरिक की है। विरोध का तार्किक आधार हो तो विचार किया जा सकता है लेकिन इसे मुसलमानों को लक्षित नीति कहना निराधार है।
नीति में वर्ष 2026 तक जन्म दर को प्रति हजार आबादी पर 2.1 तथा वर्ष 2030 तक 1.9 लाने का लक्ष्य रखा गया है। क्या यह एक मजहब से पूरा हो जाएगा? जनसंख्या नियंत्रण के लिए हतोत्साहन और प्रोत्साहन दोनों प्रकार की नीतियां या कानून की मांग की जाती रही है। इसमें दो से अधिक बच्चे वालों को कई सुविधाओं और लाभों से वंचित किया गया है तो उसकी सीमा में रहने वाले, दो से कम बच्चे पैदा करने वाले या दो बच्चाें के साथ नसबंदी कराने वालों के लिए कई प्रकार के लाभ और सुविधाओं की बातें हैं। इसमें बच्चों और किशोरों के सुंदर स्वास्थ्य, उनके शिक्षा के लिए भी कदम हैं। मसलन 11 से 19 वर्ष के किशोरों के पोषण, शिक्षा व स्वास्थ्य के बेहतर प्रबंधन के अलावा, बुजुर्गों की देखभाल के लिए व्यापक व्यवस्था भी की जाएगी।
नयी नीति में आबादी स्थिरीकरण के लिए स्कूलों में हेल्थ क्लब बनाये जाने का प्रस्ताव भी है। साथ ही डिजिटल हेल्थ मिशन की भावनाओं के अनुरूप प्रदेश में अब नवजातों, किशोरों व बुजुर्गों की डिजिटल ट्रैकिंग कराने की योजना है। जनसंख्या नियंत्रण केवल कानून का नहीं, सामाजिक जागरूकता का भी विषय है और इस पहलू पर फोकस किया गया है। मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि सामाजिक जागरूकता के लगातार अभियान चलाए जाएंगे और इसकी शुरुआत भी कर दी।
उत्तर प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से लगातार ज्यादा रही है। वर्ष 2001-2011 के दौरान प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि दर 20.23 फीसदी रही, जो राष्ट्रीय औसत वृद्धि दर 17.7 फीसदी से अधिक है। इसे अगर राष्ट्रीय औसत के आसपास लाना है तो किसी न किसी प्रकार के कानून की आवश्यकता है। हालांकि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्ति जनसंख्या बढ़ाने की है। एक बच्चा कानून कठोरता से लागू करने वाले चीन को तीन बच्चे पैदा करने की छूट देनी पड़ी है क्योंकि इस कारण वहां आबादी में युवाओं की संख्या घटी है जबकि बुजुर्गों की बढ़ रही है। अनेक विकसित देश इसी असंतुलन के भयानक शिकार हो गए हैं। दूसरी ओर बुजुर्गों की बढ़ती आबादी का मतलब देश पर बोझ बढ़ना है। इसलिए अनेक देश ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा कर रहे हैं।
भारत में भी इस पहलू का विचार अवश्य किया जाना चाहिए। हम अगर भविष्य की आर्थिक महाशक्ति माने जा रहे हैं तो इसका एक बड़ा कारण हमारे यहां युवाओं की अत्यधिक संख्या यानी काम के हाथ ज्यादा होना है। जनसंख्या नियंत्रण की सख्ती से इस पर असर पड़ेगा और भारत की विकास छलांग पर ग्रहण लग सकता है। किंतु यह भी सही है कि तत्काल कुछ समय के लिए जनसंख्या वृद्धि कम करने का लक्ष्य पाया जाए और उसके बाद भविष्य में ढील दी जाए। हालांकि, आबादी में उम्र संतुलन के प्रति लगातार सतर्क रहना होगा ताकि युवाओं की आबादी में विश्व के नंबर एक का स्थान हमसे न छिन जाए।