आलोक यात्री
‘ऑक्सफेम’ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में एक मिनट में 11 लोग भूख से दम तोड़ देते हैं। यानी लगभग पांच सेकंड के अंतराल में भूख किसी न किसी को निगल जाती है। 21वीं सदी में भी अगर यह सुनने को मिले कि भूख से हर मिनट 11 लोगों की मौत हो रही है तो इससे अधिक पीड़ादायक बात और क्या होगी? गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले संगठन ‘ऑक्सफेम’ की रिपोर्ट इस बात का भी खुलासा करती है कि इस साल पूरे विश्व में अकाल जैसे हालात का सामना करने वाले लोगों की संख्या बीते वर्ष के मुकाबले छह गुना बढ़ गई है। यह आंकड़ा अधिक चिंता का विषय इसलिए भी है कि भुखमरी से संघर्ष कर रहे लोगों की संख्या में दो करोड़ लोगों की वृद्धि हुई है। ‘दि हंगर वायरस मल्टीप्लाइज’ शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि भुखमरी से मरने वाले लोगों की संख्या कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या से भी अधिक है। कोरोना के कारण विश्व में औसतन हर एक मिनट में करीब सात लोगों ने जान गंवाई है।
एक अनुमान के अनुसार दुनिया में हर रोज 15 करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं या उनके कई-कई दिन बगैर कुछ खाए-पिए गुजर रहे हैं। यह भयावह तस्वीर अफ्रीकी महाद्वीप के देशों से लेकर दुनिया के कई विकासशील देशों की है। वैश्विक महामारी के खतरे के बाद भूख की विभीषिका का असर सबसे अधिक उन देशों पर पड़ रहा है जो हर तरह से गरीबी की मार झेलने को अभिशप्त हैं।
पिछले एक साल में अधिक मुश्किल इसलिए भी खड़ी हुई है क्योंकि वैश्विक खाद्य कार्यक्रम को मदद देने वाले देश भी महामारी के संकट में फंस गए हैं। वैश्विक खाद्य कार्यक्रम सहित दूसरे अभियानों में मुख्य रूप से अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, रूस और चीन जैसे वे देश शामिल हैं, जिनका आर्थिक ढांचा खुद चरमरा गया है। गौरतलब है कि बीते साल संयुक्त राष्ट्र में 20 करोड़ लोगों को राहत पहुंचाने के लिए 35 अरब डॉलर की मांग की गई थी, जिसके विपरीत आधी से भी कम रकम 17 अरब डॉलर ही जुट सकी थी।
‘ऑक्सफेम’ अमेरिका के अध्यक्ष व मुख्य कार्यकारी अधिकारी एब्बी मैक्समैन का कहना है कि भुखमरी से लोगों की मौत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये आंकड़े उन लोगों की मौत की वजह से बने हैं जो अकल्पनीय पीड़ा से गुजरे हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विश्व में करीब 15.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा के भीषण संकट का सामना कर रहे हैं। प्रभावित लोगों का यह आंकड़ा पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में दो करोड़ अधिक है। इनमें से करीब दो-तिहाई लोग भुखमरी के शिकार हैं। लोगों के भुखमरी से प्रभावित होने की एक अहम वजह उनके देश में चल रहा सैन्य संघर्ष भी है।
मैक्समैन की मानें तो बेरहम संघर्षों तथा विकट होते जलवायु संकट ने 5 लाख 20 हजार से अधिक लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है। वैश्विक महामारी से मुकाबला करने के बजाय परस्पर विरोधी धड़े एक-दूसरे से लड़ रहे हैं, जिसका असर अंतत: उन लाखों लोगों पर पड़ता है जो पहले ही मौसम संबंधी आपदाओं और आर्थिक झटकों से बेहाल हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के बावजूद विश्वभर में सेनाओं पर होने वाला खर्च महामारी काल में 51 अरब डॉलर बढ़ गया है। यह राशि भुखमरी को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को जितने धन की जरूरत है उसके मुकाबले कम से कम छह गुना ज्यादा है।
रिपोर्ट में जिन देशों को भुखमरी से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में रखा गया है, वे हैं : इथोपिया, अफगानिस्तान, सीरिया, दक्षिण सूडान और यमन। इन सभी देशों में संघर्ष के हालात हैं। मैक्समैन का यह कथन ध्यान देने योग्य है कि आम नागरिकों को भोजन-पानी से वंचित रख कर, उन तक मानवीय राहत नहीं पहुंचने देना भी भुखमरी को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने जैसा है।
जिन देशों में भी एक बड़ी आबादी ऐसे गंभीर मानवीय संकटों का सामना कर रही है, नि:संदेह उसके मूल में उन देशों की नीतियां ही अधिक जिम्मेदार हैं। अधिकांश लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देश सत्ता संघर्ष जैसे संकटों से भी जूझ रहे हैं। कई देशों में चल रहे गृहयुद्ध ने नागरिकों को विस्थापित होने पर मजबूर कर दिया है। विकासशील देशों की स्थिति इसलिए भी खराब है क्योंकि गरीब तबके को लेकर सरकारों का रुख और नीतियां उदारवादी नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने साल भर पहले ही यह अंदेशा जताया था कि महामारी की मार से पांच करोड़ लोग और भी अधिक गरीबी में धंस जाएंगे। उनका अंदेशा आज हकीकत के रूप में सामने है। मौजूदा दौर में आधी से अधिक दुनिया भुखमरी से जूझ रही है। जबकि दुनिया का एक बड़ा तबका वैश्विक महामारी और उस पर हो रहे अनाप-शनाप खर्च के बोझ से जूझ रहा है। ऐसे में भुखमरी के संकट से निदान के इंतजाम फौरी तौर पर करने की आवश्यकता है।
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