भारत में 30 वर्ष पूर्व, वर्ष 1991 में, आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम लागू किए गए थे। उस समय देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंच गई थी। देश में विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 15 दिनों के आयात लायक राशि तक का ही बच गया था। ऐसी स्थिति में देश को सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा की व्यवस्था करनी पड़ी थी। इस ऐतिहासिक खराब आर्थिक स्थिति से उबरने के लिए आर्थिक एवं बैंकिंग क्षेत्रों में कई तरह के सुधार कार्यक्रम लागू किए गए थे। कुछ वर्षों तक तो देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रम ठीक गति से चलते रहे परंतु इसके बाद वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक के कुछ वर्षों के दौरान सुधार कार्यक्रम की गति धीमी हो गई थी। वर्ष 2014 के बाद देश में एक बार पुनः आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देने का प्रयास लगातार किया जा रहा है एवं अब तो आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों ने देश में तेज रफ़्तार पकड़ ली है।
पिछले 30 वर्षों के दौरान मुख्यतः 5 क्षेत्रों में विशेष कार्य हुआ था। देश में राजकोषीय घाटे को कम करने के प्रयास लगातार लगभग सभी केंद्र सरकारों द्वारा किए गए हैं परंतु इस कार्य में भी वर्ष 2014 के बाद से गति आई है। वित्तीय वर्ष 1991 में राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का, 8 प्रतिशत की राशि तक पहुंच गया था। यह वित्तीय वर्ष 2019-20 में 5 प्रतिशत से नीचे ले आया गया था। परंतु, कोरोना महामारी के चलते, बहुत ही विशेष परिस्थितियों में, यह वर्ष 2020-21 में 9.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसे पुनः 3 से 4 प्रतिशत तक नीचे लाने का रोड्मैप केंद्र सरकार ने तैयार कर लिया है एवं इन नीतियों पर अमल भी प्रारम्भ हो गया है। इस प्रकार राजकोषीय घाटे को कम करना केंद्र सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही है।
दूसरे, देश में लाइसेन्स राज लगभग समाप्त हो गया है। एक तरह से संरक्षणवाद का खात्मा कर व्यापार की नीतियों को उदार बनाया गया है। भारतीय उद्योग जगत में तो अब, “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” की नीतियों में लगातार हो रहे सुधार के कारण, हर्ष व्याप्त है। विदेशी निवेशक भी अब इस कारण से भारत में अपना निवेश लगातार बढ़ा रहे हैं।
तीसरे, नरसिम्हन समिति के प्रतिवेदन के अनुसार देश में बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार कार्यकर्मों को लागू किया गया है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा किए गए सुधार कार्यक्रमों को लागू करने के कारण अब न केवल सरकारी क्षेत्र के बैंकों बल्कि निजी क्षेत्र के बैकों में भी गैर निष्पादनकारी आस्तियों का निपटान तेजी से होने लगा है।
चौथे, विदेशों से आयात एवं निर्यात के नियमों को आसान बनाया गया है। साथ ही, विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर आयात कर में भी कमी की गई है। इससे अन्य देशों की नजरों में भारत की साख में सुधार हुआ है। पहिले विदेशी व्यापार में हमारा देश संरक्षणवाद की नीतियों पर चलता था।
पांचवां, देश में मौद्रिक नीतियों में भी सुधार कार्यक्रम लागू करते हुए इसे मुद्रा स्फीति नियंत्रण के साथ जोड़ दिया गया है। इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक एवं केंद्र सरकार राजकोषीय नीति एवं मौद्रिक नीति में तालमेल बिठाते हुए कार्य करते दिखाई दे रहे हैं, जो देश हित में उचित कदम माना जाना चाहिए।
हाल ही के समय में आर्थिक क्षेत्र में तेजी से किए गए सुधार कार्यक्रमों के कारण देश में न केवल आर्थिक विकास की दर तेज हुई है बल्कि रोजगार के भी कई नए अवसर निर्मित हुए हैं। अन्यथा, कल्पना करें वर्ष 1991 के पूर्व की स्थिति की, जब देश में नौजवान केवल सरकारी क्षेत्र में ही नौकरी की तलाश करते नजर आते थे क्योंकि निजी क्षेत्रों में नौकरियों का नितांत अभाव रहता था। अब स्थितियां बहुत बदल गई हैं एवं अब तो निजी क्षेत्र भी रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करता दिखाई दे रहा है।
भारत में अभी तक हालांकि कृषि क्षेत्र एवं सोशल क्षेत्र (स्वास्थ्य क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र एवं पीने का जल, आदि क्षेत्रों सहित) में सुधार कार्यक्रम लगभग नहीं के बराबर लागू किए गए थे इसलिए देश में आज भी लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहते हुए हुए अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है एवं गरीबी में अपना जीवन जीने को मजबूर है। दरअसल, इन कारणों से देश में आर्थिक असमानता की दर में भी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। परंतु, हाल ही के समय में कृषि क्षेत्र एवं सोशल क्षेत्र में लागू किए गए सुधार कार्यक्रमों के कारण एक बड़ा बदलाव देखने में आ रहा है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ता दिखाई दे रहा है। यह एक बहुत अच्छा परिवर्तन है क्योंकि आज भी देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है। यदि इस आबादी की आय में वृद्धि होती है तो गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की संख्या में भी तेज गति से कमी होना दिखाई देगी। दूसरे, कृषि क्षेत्र एवं सोशल क्षेत्र में किए जा रहे सुधारों के कारण विदेशों में भी भारत की छवि में सुधार हुआ है एवं भारत से कृषि क्षेत्र से निर्यात लगातार बहुत तेजी से बढ़ रहा हैं। साथ ही, भारत में विदेशी निवेश भी लगातार नित नई उचाईयां छू रहा है।
हमारे देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने में कुछ राज्य सरकारों का योगदान बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा है। यदि देश में गरीबी को समूल नष्ट करना है तो राज्य सरकारों को भी अपना योगदान बढ़ाना होगा। आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को मिलकर ही लागू करना होगा। सोशल क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, पीने का स्वच्छ जल, प्रत्येक परिवार को बिजली की उपलब्धता आदि ऐसी सेवायें है जिन्हें राज्य सरकारों को ही उपलब्ध कराना होता है। इन क्षेत्रों में कुछ वर्षों पूर्व तक देश में बहुत अधिक उत्साहजनक कार्य नहीं हुआ था परंतु वर्ष 2014 से केंद्र सरकार ने इन क्षेत्रों की ओर भी अपना ध्यान देना प्रारम्भ किया है। जैसे एक नए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है ताकि ग्रामीण इलाकों में प्रत्येक परिवार को स्वच्छ जल उपलब्ध कराया जा सके। अभी हाल ही में एक अन्य नए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया है ताकि देश में सहकारिता आंदोलन को सफल बनाया जा सके। सोशल क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम लागू कर देश के आर्थिक विकास तो गति दी जा सकती है।
आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह भी होता है कि देश में दक्षता का विकास करते हुए उत्पादकता में सुधार किया जा सके ताकि अंततः सभी क्षेत्रों (कृषि, उद्योग एवं सेवा) में उत्पादन बढ़ सके। वर्ष 1991 में भारत में केवल 26,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद होता था जो आज बढ़कर 2 लाख 80,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आस पास पहुंच गया है एवं अब केंद्र सरकार ने इसे वर्ष 2025 तक 5 लाख करोड़ अमेरिक डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इन्हीं कारणों के चलते केंद्र सरकार देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गति देने का प्रयास कर रही है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।